दसवां अध्याय
(विभूति-योग -१०.१९-२८)
श्री भगवान :
मेरी दिव्य विभूतियाँ जो हैं,
उनका अब करता हूँ वर्णन.
मेरे विस्तार का अंत नहीं है,
जो विशेष कहता हूँ अर्जुन. (१०.१९)
समस्त प्राणियों में स्थित,
गुणाकेश जो आत्मा मैं हूँ.
और समस्त प्राणी जन का,
आदि, मध्य, अंत भी मैं हूँ. (१०.२०)
आदित्यों में मैं विष्णु हूँ,
सूर्य अंशुमाली ज्योति में.
हूँ मरीच मैं मरुद्गणों मैं,
और शशि मैं सब तारों में. (१०.२१)
वेदों में मैं सामवेद हूँ,
और इंद्र देवताओं में.
मन इन्द्रियों में जानो,
व चेतना प्राणीजन में. (१०.२२)
रुद्रों में हूँ मैं शिवशंकर,
यक्ष, राक्षसों में कुबेर हूँ.
वसुओं में हूँ मैं अग्नि,
और पर्वतों में मैं मेरु हूँ. (१०.२३)
पुरोहितों में मुख्य पुरोहित
मुझे ब्रहस्पति तुम जानो.
कार्तिकेय सेनापतियों में,
जलाशयों में सागर जानो. (१०.२४)
भृगु हूँ मैं महर्षियों में,
ॐ शब्द हूँ मैं शब्दों में.
हूँ जपयज्ञ सभी यज्ञों में,
और हिमालय स्थावर में. (१०.२५)
मैं हूँ पीपल सब वृक्षों में,
देवर्षियों में मैं नारद हूँ.
मैं चित्ररथ हूँ गंधर्वों में,
सिद्धों में कपिलमुनी हूँ. (१०.२६)
अमृत से उत्पन्न उच्चै:श्रवा,
अश्वों में तुम मुझे ही जानो.
सभी हाथियों में हूँ ऐरावत,
व मनुजों में तुम राजा जानो. (१०.२७)
शस्त्रों में हूँ वज्र भी मैं ही,
गायों में मैं कामधेनु हूँ.
सर्पों में वासुकी भी मैं ही,
प्रजनन में मैं कामदेव हूँ. (१०.२८)
.......क्रमशः
कैलाश शर्मा
(विभूति-योग -१०.१९-२८)
श्री भगवान :
मेरी दिव्य विभूतियाँ जो हैं,
उनका अब करता हूँ वर्णन.
मेरे विस्तार का अंत नहीं है,
जो विशेष कहता हूँ अर्जुन. (१०.१९)
समस्त प्राणियों में स्थित,
गुणाकेश जो आत्मा मैं हूँ.
और समस्त प्राणी जन का,
आदि, मध्य, अंत भी मैं हूँ. (१०.२०)
आदित्यों में मैं विष्णु हूँ,
सूर्य अंशुमाली ज्योति में.
हूँ मरीच मैं मरुद्गणों मैं,
और शशि मैं सब तारों में. (१०.२१)
वेदों में मैं सामवेद हूँ,
और इंद्र देवताओं में.
मन इन्द्रियों में जानो,
व चेतना प्राणीजन में. (१०.२२)
रुद्रों में हूँ मैं शिवशंकर,
यक्ष, राक्षसों में कुबेर हूँ.
वसुओं में हूँ मैं अग्नि,
और पर्वतों में मैं मेरु हूँ. (१०.२३)
पुरोहितों में मुख्य पुरोहित
मुझे ब्रहस्पति तुम जानो.
कार्तिकेय सेनापतियों में,
जलाशयों में सागर जानो. (१०.२४)
भृगु हूँ मैं महर्षियों में,
ॐ शब्द हूँ मैं शब्दों में.
हूँ जपयज्ञ सभी यज्ञों में,
और हिमालय स्थावर में. (१०.२५)
मैं हूँ पीपल सब वृक्षों में,
देवर्षियों में मैं नारद हूँ.
मैं चित्ररथ हूँ गंधर्वों में,
सिद्धों में कपिलमुनी हूँ. (१०.२६)
अमृत से उत्पन्न उच्चै:श्रवा,
अश्वों में तुम मुझे ही जानो.
सभी हाथियों में हूँ ऐरावत,
व मनुजों में तुम राजा जानो. (१०.२७)
शस्त्रों में हूँ वज्र भी मैं ही,
गायों में मैं कामधेनु हूँ.
सर्पों में वासुकी भी मैं ही,
प्रजनन में मैं कामदेव हूँ. (१०.२८)
.......क्रमशः
कैलाश शर्मा
sundar aur bhav purn prastuti,अमृत से उत्पन्न उच्चै:श्रवा,
ReplyDeleteअश्वों में तुम मुझे ही जानो.
सभी हाथियों में हूँ ऐरावत,
व मनुजों में तुम राजा जानो. (१०.२७)
शस्त्रों में हूँ वज्र भी मैं ही,
गायों में मैं कामधेनु हूँ.
सर्पों में वासुकी भी मैं ही,
प्रजनन में मैं कामदेव हूँ. (१०.२८)
शब्दश: उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteआभार सहित
सादर
शस्त्रों में हूँ वज्र भी मैं ही,
ReplyDeleteगायों में मैं कामधेनु हूँ.
सर्पों में वासुकी भी मैं ही,
प्रजनन में मैं कामदेव हूँ.
बहुत उम्दा सृजन,,,, बधाई।
recent post हमको रखवालो ने लूटा
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन, आभार..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, आभार!
ReplyDeleteBahut dinon se padha nahee tha...ab dheere padh loongee.
ReplyDeleteउत्कृष्ट अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसभी श्रेष्ठ में ईश्वर बसता
ReplyDelete
ReplyDeleteसमस्त प्राणियों में स्थित,
गुणाकेश जो आत्मा मैं हूँ.
और समस्त प्राणी जन का,
आदि, मध्य, अंत भी मैं हूँ. (१०.२०)
vaah kathaatmak shaili kaa apnaa mohak andaaz .sundar ,manohar .
अति सुन्दर और मनोहर प्रस्तुति कथात्मक शैली में .
ReplyDeleteकृष्ण की अनुपम माया ओर उसके रूप ....
ReplyDeleteआनदित ...
ज्ञानवर्धक एवं उत्कृष्ट लेखन ...
ReplyDeleteआभार।
ReplyDeleteआदित्यों में मैं विष्णु हूँ,
सूर्य अंशुमाली ज्योति में.
हूँ मरीच मैं मरुद्गणों मैं,
और शशि मैं सब तारों में.
सुन्दर प्रवाह