हे कृष्ण !
द्रोपदी की पुकार
कब तक रहोगे मौन,
आज मैं दामिनी
आगयी स्वयं
अपने प्रश्नों का उत्तर मांगने.
द्रोपदी की पुकार
सुनकर आये तुरंत
और बचाई उसकी लाज,
शायद वह आपकी
सखी थी,
वर्ना क्यों नहीं सुनी
मेरी चीख और पुकार
जब कर रही थी मैं संघर्ष
उन वहशियों से.
कहो क्यों न लगाऊं
आरोप भेद भाव का?
चारों और बढ़ रहा है
अत्याचार, व्यभिचार,
त्रस्त कर रहा मानस को
बढ़ता भ्रष्टाचार,
नहीं सुरक्षित नारी
घर में या बाहर,
रोज होते बलात्कार.
तुम्हीं ने कहा था गीता में
जब जब होगा धर्म का नाश
मैं लूँगा अवतार
अधर्म विनाश हेतु.
अधर्म विनाश हेतु.
हे कृष्ण !
दो मुझे उत्तर
कौन सा धर्म है बचा
धरती पर?
कौन सा बचा है
अधर्म होने को?
क्यों न कहूँ
तुम्हारे आश्वासन भी
नहीं रहे अलग
धरती के नेताओं से.
क्या है तुम्हारा मापदंड
अधर्म के आंकलन का?
कितनी और दामिनियों का दर्द
चाहिये आप की तराज़ू को
झुकाने के लिए
अन्याय का पलड़ा?
कैलाश शर्मा
कैलाश शर्मा
...अब हम शिकायत भी ईश्वर से ही कर सकते हैं :-(
ReplyDeleteसच कह रहे हैं आप..
Deleteab kaliyug aa gaya hai ab samy hai har damini ko swayam krushn banane ka
ReplyDeleteजी हाँ..हमें कृष्ण का इंतजार नहीं करना है, स्वयं ही मुकाबला करना इस व्यवस्था का..
Deletebhagvan avshy aaayenge ab samay aa gaya hain ......
ReplyDeleteइंतजार है उनके आने का..
Deleteतुम्हारे लिए मैं सबकी रगों में बहने लगा हूँ ....
ReplyDeleteतुम्हारे लिए एक नहीं कई कृष्ण आज खड़े हैं ....
मैं न मौन था न हूँ
मैं यलगार हूँ - विरोध का बीज हूँ
घर से मुझे यही संस्कार मिले कि इश्वर पर भरोसा, आस्था रखनी चाहिए, लेकिन आज के इस दुनिया में जो कुछ हो रहा है, पता नहीं क्यूँ, ये आस्था डगमगा रही है, ये विश्वास खोता जा रहा है ..
ReplyDeleteसच कहा है मधुरेश..अब यह आस्था डगमगाने लगी है..
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ReplyDeleteSir, Nice to have come across your profile.
ReplyDeleteliked your poems very much
ये सवाल श्रीकृष्ण को निरुत्तर कर देगा मेरा यही विश्वास है. लेकिन जैसे कहा गया है "अति सर्वत्र वर्जयेत".....अब हद पार करने लगा है ये वहशीपन. और भारतवर्ष में असुरो का राज कभी नहीं रहा है.अब इनकी उलटी गिनती का वक़्त आ गया है. सुन्दर भाव.
ReplyDeleteकहाँ हो कृष्ण , सवाल हम सबका है !!
ReplyDeletepata nhi..hm kya the, kya hain aur kya honge abhi.................
ReplyDeletehey krishna kahan gayi teri geeta..yada yada hi dharmasya............
ReplyDeleteहर नज़र न्याय की उम्मीद में ...
सार्थकता लिये सशक्त लेखन
सादर
AAJ KE IS YUG ME KHUD HI DURGA BANNA HOGA OR SAMNA KARNA HOGA IN RAKSHSO KA.
ReplyDeleteKEHTE HAI BHAGWAN BHI UNKI HELP KARTA HO JO KHUD KI HELP KARTE HAI.
अपना आशीष दीजिये मेरी नयी पोस्ट
मिली नई राह !!
सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteनया साल जाते जाते एक टीस दे गया
कितनी और दामिनियों का दर्द
ReplyDeleteचाहिये आप की तराज़ू को
झुकाने के लिए
अब तो सुन लो ...बेबसों की पुकार ~
सटीक लेखन
ReplyDeleteलोक अपनी सत्ता को पहचानेगा .व्यर्थ न जायेगी यह शहादत यह जंग जीवन की मौत के संग ,मौत के निजाम के संग .श्रृद्धांजलि निर्भया .हाँ !प्रलय बाकी है .इस रचना का वजन तब से अब और भी
ReplyDeleteबढ़ गया है दिनानुदिन बढ़ेगा .
कब तक रहोगे मौन?
हे कृष्ण !
कब तक रहोगे मौन,
आज मैं दामिनी
आगयी स्वयं
अपने प्रश्नों का उत्तर मांगने.
टूटेगा यह मौन ,जल्दी टूटेगा .
प्रतीक्षा है सूर्योदय की... नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ....
ReplyDeleteबहुत सही कहा ।
ReplyDeleteदिन तीन सौ पैसठ साल के,
ReplyDeleteयों ऐसे निकल गए,
मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
ज्यों कहीं फिसल गए।
कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
कुछ आकुल,विकल गए।
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए।।
शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
इस उम्मीद और आशा के साथ कि
ऐसा होवे नए साल में,
मिले न काला कहीं दाल में,
जंगलराज ख़त्म हो जाए,
गद्हे न घूमें शेर खाल में।
दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
ऐसा होवे नए साल में।
Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.
May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!
शानदार........झकझोरती पोस्ट.........हैट्स ऑफ इसके लिए।
ReplyDeleteक्या है तुम्हारा मापदंड
ReplyDeleteअधर्म के आंकलन का?
कितनी और दामिनियों का दर्द
चाहिये आप की तराजू को
झुकाने के लिए
अन्याय का पलड़ा?
इस आक्रोश को अनसुना नहीं कर सकेगा कोई।
नव-वर्ष की अशेष शुभकामनाएं।
ummid hai ki 2012 ke samapti ke sath naya suraj nayi aasha lekar aayegaa.
ReplyDeletenav varsh ji shubh kamnayen;http://kpk-vichar.blogspot.in
दामिनी शब्द ही अपने आप में जवाब है इस बात का कि क्यूँ नहीं आए कृष्ण, दामिनी जैसे अन्य दमिनियों को सार्थक कर दिखाना होगा अपने नाम को कि उनकी गरज मात्र चमक से काँप जाये दूषित मन...
ReplyDeleteमन खोलो हे कान्हा, रह रह समय बुलाता है।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना।
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