दसवां अध्याय
(विभूति-योग -१०.२९-४२)
नागों में मैं शेषनाग हूँ,
और वरुण जलचरों में हूँ.
पितरों में अर्यमा है जानो
नियमपालकों में मैं यम हूँ. (१०.२९)
दैत्यों में प्रहलाद है जानो,
और समयगणकों में काल हूँ.
सिंह सभी पशुओं में जानो,
और गरुण सभी पक्षियों में हूँ. (१०.३०)
पावन करने वालों में वायु हूँ,
राम शस्त्रधारियों में जानो.
मगर हूँ मैं सभी मत्स्यों में,
नदियों में गंगा तुम जानो. (१०.३१)
आदि, अंत, मध्य सृष्टि का
मुझको ही अर्जुन तुम जानो.
विद्या में अध्यात्म ज्ञान हूँ,
वाद-विवाद में वाद है जानो. (१०.३२)
मैं ही अकार अक्षरों में हूँ,
द्वंद्व समास समासों में हूँ.
अक्षय काल मुझे ही जानो,
सर्वतोमुखी विधाता मैं हूँ. (१०.३३)
सर्व संहारक मृत्यु भी मैं हूँ,
और भविष्य का उद्गम भी मैं.
कीर्ती, श्री, वाणी, मेघा नारी में,
स्मृति, धृति और क्षमा भी मैं. (१०.३४)
व्रहत्साम साम मन्त्रों में,
छंदों में गायत्री भी मैं हूँ.
मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ,
मैं वसन्त ऋतुओं में हूँ. (१०.३५)
द्यूत हूँ मैं छल करनेवालों में,
तेजस्वियों का तेज भी मैं हूँ.
मैं ही विजय और उद्यम हूँ,
सात्विकजन का सत्व भी मैं हूँ. (१०.३६)
मैं यादवों में वासुदेव हूँ
और धनञ्जय पांडवों में.
मुनियों में व्यासमुनि मैं,
शुक्राचार्य हूँ मैं कवियों में. (१०.३७)
दंड दमन करने वालों का,
नीति विजय इक्षुक में हूँ.
गुह्यभाव में मौन हूँ मैं,
ज्ञान ज्ञानियों का मैं हूँ. (१०.३८)
जो भी बीज सर्व प्राणी का
मुझको ही वह अर्जुन जानो.
नहीं चराचर जग में कुछ भी
मेरे बिना जो रह सकता हो. (१०.३९)
दिव्य विभूतियों का मेरी
कोई अंत नहीं है अर्जुन.
जो कुछ मैंने तुम्हें बताया,
वह तो है संक्षेप में वर्णन. (१०.४०)
ऐश्वर्य, सोंदर्य और शक्ति से
देखो संपन्न है जिस प्राणी को.
उत्पन्न मेरे तेजस्वी अंश से
समझो तुम उस उस प्राणी को. (१०.४१)
इससे अधिक और कुछ ज्यादा
जान करोगे क्या तुम अर्जुन?
मैं हूँ स्थित सम्पूर्ण विश्व में
करके व्याप्त एक अपना कण. (१०.४२)
**दसवां अध्याय समाप्त**
.....क्रमशः
(आप सब मित्रों की प्रेरणा और प्रोत्साहन से अब 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' पुस्तक रूप में भी प्रकाशित होगई है. किताब को ऑनलाइन ऑर्डर करने के लिए यहाँ क्लिक करें - http://www.infibeam.com/Books/shrimadbhagavadgita-bhav-padyanuvaad-hindi-kailash-sharma/9789381394311.html जहां पर 144 पृष्ठों की पुस्तक 20% डिस्काउंट के बाद Rs.156 में उपलब्ध है.)
कैलाश शर्मा
इससे अधिक और कुछ ज्यादा
ReplyDeleteजान करोगे क्या तुम अर्जुन?
मैं हूँ स्थित सम्पूर्ण विश्व में
करके व्याप्त एक अपना कण.
सारे ब्रह्मांड को अपने एक अंश में धारण किये वह परम कितना विराट है..नमन है उसको !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहुत ज्ञानवर्धक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई इस पुस्तक के लिए...
ReplyDeleteशुभकामनाएँ...
:-)
बहुत ही सुन्दर व सरल अनुवाद जो कि ह्रदय को छूता है ..
ReplyDeleteश्रीमद्भगवद्गीता(भाव पद्यानुवाद)पुस्तक के प्रकासन के लिए बहुत२ बधाई स्वीकारें,,,,
ReplyDeleterecent post : समाधान समस्याओं का,
पुस्तक प्रकाशन के लिए बहुत-बहुत बधाई ...शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteसुन्दर ज्ञानवर्धक अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteआदि, अंत, मध्य सृष्टि का
मुझको ही अर्जुन तुम जानो.
विद्या में अध्यात्म ज्ञान हूँ,
वाद-विवाद में वाद है जानो. (१०.३२)
विराट स्वरूप का सहज वर्रण .भाव और अर्थ में अनुपम .शुक्रिया भाई साहब आपकी टिप्पणियों का .
ReplyDeleteख़ुशी की बात है यह जान बाज़ युवती (फिजियो )आज चंद कदम चली है अब उसे ज़रुरत है Intestinal implant की आंत्र प्रत्यारोपण की उसकी छोटी आंत संक्रमण की वजह से काटनी पड़ी है .कल दिल्ली रैप पर पढ़िए किरण बेदी के विचार राम राम भाई पर हिंदी में .
ReplyDeleteख़ुशी की बात है यह जाँ बाज़ युवती (फिजियो )आज चंद कदम चली है अब उसे ज़रुरत है Intestinal implant की आंत्र प्रत्यारोपण की उसकी छोटी आंत संक्रमण की वजह से काटनी पड़ी है .कल दिल्ली रैप पर पढ़िए किरण बेदी के विचार राम राम भाई पर हिंदी में .
अरे वाह! हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई कैलाश जी. जरुर यह एक संकलन योग्य पुस्तक होगी.
ReplyDeleteमैं ही मैं हूं ... मैं ही मैं हूं ...
ReplyDeleteजवान कृष्ण हैं वहाँ सब कुछ कृष्णमय है ...
लाजवाब ...
सुन्दर कृति
ReplyDeleteकृष्ण की माया कृष्ण ही जाने....खूबसूरत...
ReplyDeleteकृष्ण रूप में सर्वसमाहित।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteशायद इसे पसन्द करें-
कवि तुम बाज़ी मार ले गये!
नागों में मैं शेषनाग हूँ,
ReplyDeleteऔर वरुण जलचरों में हूँ.
पितरों में अर्यमा है जानो
नियमपालकों में मैं यम हूँ. (१०.२९)
इस बिंदु तक आते आते भाव अर्थ दोनों ने आवेग पकड लिया है सुन्दर अन्विति हुई है दोनों की एक ने दुसरे में डु -बकी लगा ली है .
नागों में मैं शेषनाग हूँ,
ReplyDeleteऔर वरुण जलचरों में हूँ.
पितरों में अर्यमा है जानो
नियमपालकों में मैं यम हूँ. (१०.२९)
इस बिंदु तक आते आते भाव अर्थ दोनों ने आवेग पकड लिया है सुन्दर अन्विति हुई है दोनों की एक ने दुसरे में डु -बकी लगा ली है .
(आप सब मित्रों की प्रेरणा और प्रोत्साहन से अब 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' पुस्तक रूप में भी प्रकाशित होगई है. किताब को ऑनलाइन ऑर्डर करने के लिए यहाँ क्लिक करें - http://www.infibeam.com/Books/shrimadbhagavadgita-bhav-padyanuvaad-hindi-kailash-sharma/9789381394311.html जहां पर 144 पृष्ठों की पुस्तक 20% डिस्काउंट के बाद Rs.156 में उपलब्ध है.)
इस कार्य के लिए आप बधाई के पात्र हैं आइन्दा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सौगात होगा यह काव्य -भावा -नू -वाद .पुनश्चय बधाई .
नागों में मैं शेषनाग हूँ,
ReplyDeleteऔर वरुण जलचरों में हूँ.
पितरों में अर्यमा है जानो
नियमपालकों में मैं यम हूँ. (१०.२९)
इस बिंदु तक आते आते भाव अर्थ दोनों ने आवेग पकड लिया है सुन्दर अन्विति हुई है दोनों की एक ने दुसरे में डु -बकी लगा ली है .
(आप सब मित्रों की प्रेरणा और प्रोत्साहन से अब 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' पुस्तक रूप में भी प्रकाशित होगई है. किताब को ऑनलाइन ऑर्डर करने के लिए यहाँ क्लिक करें - http://www.infibeam.com/Books/shrimadbhagavadgita-bhav-padyanuvaad-hindi-kailash-sharma/9789381394311.html जहां पर 144 पृष्ठों की पुस्तक 20% डिस्काउंट के बाद Rs.156 में उपलब्ध है.)
इस कार्य के लिए आप बधाई के पात्र हैं आइन्दा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सौगात होगा यह काव्य -भावा -नू -वाद .पुनश्चय बधाई .
sir! maine dekhi ye book Shailesh ke pass.. ek behtareen pustak.. bahut bahut badhai..!!
ReplyDeleteआपकी यह कविता मन को आंदोलित कर गई । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
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