आ जाए जब
जीना और मरना
जीवन के प्रत्येक पल
में,
हर आती जाती श्वास
दे अहसास
मृत्यु और पुनर्जन्म
का,
पहचान लें अपनी
कमियाँ
निरपेक्ष भाव से
जो मिटा दे कलुष
अंतर्मन का,
देखें केवल द्रष्टा
भाव से
सभी अच्छे और बुरे कर्मों
को,
बिना किसी
पूर्वाग्रह के
झांकें दूसरों के
अंतर्मन में
और कर पायें
तादात्म्य आत्मा से,
लगती है सहज तब
मृत्यु भी
जीवन में घटित घटनाओं
की तरह,
नहीं होता अनुभूत कोई
अंतर
तब जीवन और मृत्यु
में.
...कैलाश शर्मा
सुंदर एवं सार्थक अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteबहुत ही दर्शनपरक कविता। जीवन-मृत्यु के सर्वोपरि पहलुओं के साथ मानुसिक वेदना के तादात्म्य की अनोखी रचना।
ReplyDeleteगहन दर्शन को समेटे सुन्दर पंक्तियाँ......बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....सही कहा आपने
ReplyDeleteवाह जीवन और मृत्यु के मर्म को आपने बखूबी उकेर दिया । प्रभावित करने वाली पंक्तियां
ReplyDeleteबेहद गहन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दर्शन.............
सादर
अनु
वाह!!! बहुत बढ़िया | आनंदमय | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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gahan jeevan darshan piroya hai aapne sundar shaj shabdon me..saadar..
ReplyDeleteबहुत उम्दा गहन भाव अभिव्यक्ति,,,,आभार कैलाश जी,,,
ReplyDeleteRecent Post : अमन के लिए.
अर्थपूर्ण .....
ReplyDeleteदेखें केवल द्रष्टा भाव से.... bahut badi baat kahi hai kailash ji .. par bahut kathin hota hai matr drishta bhav se dekhna
ReplyDeleteएक पल उसका, शेष जीवन मेरा..
ReplyDeleteबहुत गहरे विचार. शायद जब ऐसे ही समभाव से हर्ष और विषाद को देखने की शक्ति आ जाती है तब जा के जीवन का असल आनंद मिल पाता है.
ReplyDeleteगहन चिन्तन से उपजी सात्विक रचना कैलाश जी ! जीवन में यदि सभी इस मार्ग का अनुसरण करें तो सांसारिक मोह के बंधनों से मुक्ति पा सकेंगे और मन निर्मल हो जाएगा ! बहुत ही सुंदर रचना ! आभार आपका !
ReplyDeleteजीवन-मृत्यु के के सार्थक मर्म को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुति.
ReplyDeleteजीवन के अर्थों को समझने का प्रयास है यह कविता.
ReplyDeleteनवसंवत्सर की शुभकामनाएँ.
सार्थक रचना
ReplyDeleteगहरा दर्शन लिए ...
ReplyDeleteशायद गहन योग की स्थिति यही होती है ... हर पल को जीना ओर इसी में मरना ...
कमाल का लिखा है ...
जेहि मरने से जग दुखी,सो मेरो आनन्द,
ReplyDeleteकब मरिहौं कब पाइहौं पूरन परमानन्द.
-कबीर.
सार्थक चिंतन।
ReplyDeleteबहुत उम्दा .अर्थपूर्ण,सार्थक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteकहाँ मुमकिन होता है द्रष्टा भाव जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के लिए. पर किसी भी क्षणों में अगर ऐसे भाव आ जाएँ तो निः संदेह मृत्यु से डर और जीवन के प्रति मोह ख़त्म हो जाए. चिंतनशील रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteऔर रहता है सिर्फ मोक्ष
ReplyDeleteगहन अनुभूति
ReplyDeleteसुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
soch bahut accha rakhte ho,
Deleteisi tarah likhte jao.
gyan prasar karo jag me,
nav sutradhar bante jao.
- shyam bihari "saral"
(krishan ganj pohri)