रमी का
खेल
रोके रखते
कुछ पत्ते
इंतजार
में आने के
बीच या
साथी पत्ते के,
नहीं आता
वह
और फेंक
देते
हाथ के
पत्ते को.
लेकिन
अगला पत्ता
होता वही
जिसकी थी
ज़रुरत
हाथ का
पत्ता
फेंकने से
पहले.
होता है
अफ़सोस
कुछ पल
को,
लेकिन आ
जाती मुस्कान
कुछ पल
बाद
इच्छित
पत्ता आने पर.
यह
अनिश्चितता ही
बनाये
रखती रोमांच
और उत्साह
खेल और
जीवन के
हर अगले
पल का.
...कैलाश शर्मा
पपलू आने पर तो और मज़ा .... ज़िन्दगी भी यूँ ही कभी इंतज़ार,कभी खुद के हौसले पर चलती है .... हार-जीत हिस्से में होते ही हैं
ReplyDeleteकविता खेल खेल में....
ReplyDeleteसुन्दर!!!!
सादर
अनु
खेल खेल में बेहतरीन सन्देश,आभार.
ReplyDeleteमुझे तो रमी बेहद पसंद है... कोई था जिसके साथ यह खेल बहुत बढ़िया लगता था पर अब सब पहले जैसा नहीं रहा .... खैर आपकी कविता पढ़कर आनंद आया और रमी के वो पुराने दिन भी याद हो आये | सादर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर......हमें तो ताश का कोई भी खेल नहीं आता ।
ReplyDeleteबाह सुन्दर ,सरस रचना . बधाई .
ReplyDeleteसमय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आने का कष्ट करें .
यह अनिश्चितता ही बनाये रखती खेल का रोमांच!!!
ReplyDeleteRECENT POST: जुल्म
jindagi bhi ek khel hai sarthak rachna khel khel mai
ReplyDeletekhel or jeevan ki anishchintata hi romanch banaye rakhti hai..
ReplyDeleteyh romanch hi to mazaa hai khel ka fir chaahe khel rami ka ho ya zindagi ka ...:)
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! सीक्वेंस या ट्रेल बनाने वाले पत्तों का ही इंतज़ार रहता है रमी में ! और सारा रोमांच हर बंद पत्ते के पीछे छिपा होता है ! जीवन में भी रोमांच और भविष्य के प्रति अनिश्चय की मानसिकता हर नयी सुबह के साथ शुरू हो जाती है और कदाचित यही ड्राइविंग फ़ोर्स बन हमें आगे बढ़ने में भी सहायक सिद्ध होती है ! बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteसच है..... आशा और उत्साह बनाये रखती है ये अनिश्चितता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! वास्तव में जीवन ताश के पत्ते के खेल से अधिक या कम कुछ नहीं। प्राप्ति और खोने का सुख दुख पल पल रंग बदल के आते हैं। बधाई आपको इस सुन्दर रचना के लिए!
ReplyDeleteवाह खेल खेल में कविता वह भी जीवन से जुडी
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
हमें तो यह और भी अच्छा लगा कि आपकी ताश में इक्के के बाद बेगम है। खेल का यही तो मजा है, हर क्षण हार होती है और हर क्षण जीत।
ReplyDeleteअनिश्चितता के रोमांच के बारे में पूर्णतः सहमत हूँ. पंक्तियाँ पढ़कर याद आये रमी खेले बरसो बीत गए.
ReplyDeleteउत्सुकता का हर पल रोमांचित कर जाता है!
ReplyDeleteजीवन भी ऐसे ही खेल खिलाता है...
ReplyDeleteसच कहा हा .. जीवन भी तो रमी का खेल है ... आने वाले पल में क्या हो पता नहीं .. बस रोमांच बना रहता है ...
ReplyDeleteऐसी जिंदगी भी होती है .....बहुत बढ़िया जी
ReplyDeleteबढ़िया।
ReplyDeleteन जाने कितने लोग उसी पत्ते की प्रतीक्षा में हैं।
ReplyDeleteक्या खूब मिलाया है रमी और ज़िंदगी को सर!:-)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
~सादर!!!
नवसंवत्सर की शुभकामनायें
ReplyDeleteआपको आपके परिवार को हिन्दू नववर्ष
की मंगल कामनायें
और ना जाने कितनी बार वो पत्ता पास होते हुये भी पहुँच से दूर ही बना रहता है ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जी.