मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश:
चौदहवां अध्याय
(गुणत्रयविभाग-योग-१४.९-२०)
सतगुण जन को सुख में अर्जुन
रजगुण कर्मों में संसक्त है करता.
और तमोगुण ज्ञान को ढककर
जन को प्रमाद आसक्त है करता. (१४.९)
रज, तम दबा सत्वगुण होता,
सत, तम दबा रजोगुण बढता.
इसी तरह तमोगुण भी अर्जुन
दमित सत्व, रजस् गुण करता. (१४.१०)
जब शरीर इन्द्रिय द्वारों में
ज्ञान प्रकाश उज्वलित होता.
तब ऐसा समझो तुम अर्जुन,
सत् गुण प्राप्त वृद्धि है होता. (१४.११)
जब राजस गुण बढता भारत,
कर्म प्रवृति, लोभ बढ़ जाते.
भौतिक वस्तु पाने की इच्छा
व उद्वेग उत्पन्न हो जाते. (१४.१२)
तामस गुण जब बढता है
है विवेक भ्रष्ट हो जाता.
उद्यम का अभाव है होता
मोह प्रमाद पैदा हो जाता. (१४.१३)
जब बाहुल्य सत्व का जन में
तदा मृत्यु जो प्राप्त है होता.
निर्मल उत्तम ज्ञानीजन के
लोकों को वह प्राप्त है होता. (१४.१४)
रज गुण प्रधान मृत्यु पाने पर
लेता जन्म कर्म आसक्त जनों में.
तम गुण बाहुल्य काल में मृत्यु
लेता जन्म पशु कीट मूढ़ योनि में. (१४.१५)
श्रेष्ठ कर्म का फल हे अर्जुन!
निर्मल व सात्विक है होता.
राजस कर्म हैं दुख फल देते,
अज्ञान तमस कर्मफल होता. (१४.१६)
सतगुण ज्ञान प्रदायी होता
राजस गुण से लोभ है होता.
अज्ञान मोह प्रमाद हैं अर्जुन
तामस गुण से ही पैदा होता. (१४.१७)
ऊर्ध्वलोक सतगुण जन जाते
रज गुण जन्म पृथ्वी पर लेते.
जो जघन्य तमोगुण में स्थित
वे जन्म निम्न योनि में लेते. (१४.१८)
जब मनुष्य इन त्रिगुणों से
भिन्न अन्य न समझे कर्ता.
त्रिगुण परे उसे भी समझे,
मेरे स्वरुप को प्राप्त है करता. (१४.१९)
जो शरीर उत्पत्ति कारक
इन त्रिगुणों से ऊपर उठता.
जन्म मृत्यु जरा दुक्खों से
होकर मुक्त है अमृत लभता. (१४.२०)
..............क्रमशः
....कैलाश शर्मा
चौदहवां अध्याय
(गुणत्रयविभाग-योग-१४.९-२०)
सतगुण जन को सुख में अर्जुन
रजगुण कर्मों में संसक्त है करता.
और तमोगुण ज्ञान को ढककर
जन को प्रमाद आसक्त है करता. (१४.९)
रज, तम दबा सत्वगुण होता,
सत, तम दबा रजोगुण बढता.
इसी तरह तमोगुण भी अर्जुन
दमित सत्व, रजस् गुण करता. (१४.१०)
जब शरीर इन्द्रिय द्वारों में
ज्ञान प्रकाश उज्वलित होता.
तब ऐसा समझो तुम अर्जुन,
सत् गुण प्राप्त वृद्धि है होता. (१४.११)
जब राजस गुण बढता भारत,
कर्म प्रवृति, लोभ बढ़ जाते.
भौतिक वस्तु पाने की इच्छा
व उद्वेग उत्पन्न हो जाते. (१४.१२)
तामस गुण जब बढता है
है विवेक भ्रष्ट हो जाता.
उद्यम का अभाव है होता
मोह प्रमाद पैदा हो जाता. (१४.१३)
जब बाहुल्य सत्व का जन में
तदा मृत्यु जो प्राप्त है होता.
निर्मल उत्तम ज्ञानीजन के
लोकों को वह प्राप्त है होता. (१४.१४)
रज गुण प्रधान मृत्यु पाने पर
लेता जन्म कर्म आसक्त जनों में.
तम गुण बाहुल्य काल में मृत्यु
लेता जन्म पशु कीट मूढ़ योनि में. (१४.१५)
श्रेष्ठ कर्म का फल हे अर्जुन!
निर्मल व सात्विक है होता.
राजस कर्म हैं दुख फल देते,
अज्ञान तमस कर्मफल होता. (१४.१६)
सतगुण ज्ञान प्रदायी होता
राजस गुण से लोभ है होता.
अज्ञान मोह प्रमाद हैं अर्जुन
तामस गुण से ही पैदा होता. (१४.१७)
ऊर्ध्वलोक सतगुण जन जाते
रज गुण जन्म पृथ्वी पर लेते.
जो जघन्य तमोगुण में स्थित
वे जन्म निम्न योनि में लेते. (१४.१८)
जब मनुष्य इन त्रिगुणों से
भिन्न अन्य न समझे कर्ता.
त्रिगुण परे उसे भी समझे,
मेरे स्वरुप को प्राप्त है करता. (१४.१९)
जो शरीर उत्पत्ति कारक
इन त्रिगुणों से ऊपर उठता.
जन्म मृत्यु जरा दुक्खों से
होकर मुक्त है अमृत लभता. (१४.२०)
..............क्रमशः
....कैलाश शर्मा
श्रेष्ठ कर्म का फल हे अर्जुन!
ReplyDeleteनिर्मल व सात्विक है होता.
राजस कर्म हैं दुख फल देते,
अज्ञान तमस कर्मफल होता ...
जीवन में फल कार्मानुसार ही मिलता है ...
बहुत ही उत्तम भाव हैं गीता में ओर आप सरल भाषा में सब तक ला रहे हैं ... आभार ...
सरल भाषा में सुंदर अनुवाद ...
ReplyDeleteमैं तो पढ़ ही रहा हूँ श्रीमान।
ReplyDeleteसुंदर अनुवाद
ReplyDeleteबहुत कीमती है ....
आभार ....
जो पढ़ा आज वह बहुत ही उत्कृष्ट एवँ प्रभावशाली है ! इसे आरम्भ से पढ़ने से वंचित रहने का बहुत अफ़सोस है मुझे ! समय मिलते ही बिलकुल शुरू से पढ़ना चाहती हूँ ! आपने बहुत बढ़िया अनुवाद किया है ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteसरल भाषा में सुंदर अनुवाद ...
ReplyDeleteजब राजस गुण बढता भारत,
ReplyDeleteकर्म प्रवृति, लोभ बढ़ जाते.
भौतिक वस्तु पाने की इच्छा
व उद्वेग उत्पन्न हो जाते. (१४.१२)
तामस गुण जब बढता है
है विवेक भ्रष्ट हो जाता.
उद्यम का अभाव है होता
मोह प्रमाद पैदा हो जाता. (१४.१३)
सुन्दर अनुवाद !!
गुणों में बद्ध जीवनक्रम, सुन्दर अनुवाद
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अनुवाद..शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteक्या बात वाह!
ReplyDeleteगीता ज्ञान पढने में मनहर है पर इस पर चलना लोहे के चने चबाना है..
ReplyDeleteपरम ज्ञान की बातें. बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteuttam karya ..badhayi :)
ReplyDeleteहमेशा की तरह सुन्दर अनुवाद
ReplyDeleteBahut Sundar anuwad pathk saral evm saras bhasha mein geeta ke ras ka pan kar rahe hain
ReplyDeleteबहुत ही सरल शब्दों में गीता का सुंदर अनुवाद !!
ReplyDeleteसहज ही कोई समझ सके ऐसा अनुवाद -आभार !
ReplyDeleteसहज ही कोई समझ सके ऐसा अनुवाद -आभार !
ReplyDeleteसुन्दर अनुवाद!
ReplyDeleteसाधुवाद!!