कितना कठिन है
प्रतिदिन सामना करना
एक नयी परीक्षा का,
बिना किसी पूर्व सूचना
विषय या पाठ्यक्रम के.
निरंतर देते परीक्षाएं
थक गया तन व मन,
नहीं चाहता देना
कोई और परीक्षा
पर नहीं कोई उपाय
बचने का इससे.
स्वीकार है अपनी नियति
नहीं शिकायत किसी परीक्षा से
और न ही कोई आकांक्षा
किसी अपेक्षित परिणाम की,
केवल है इंतज़ार
उस अंतिम परीक्षा का
मिलेगी जब मुक्ति
सब परीक्षाओं से.
लेकिन अनिश्चित सदैव की तरह
दिन उस अंतिम परीक्षा का भी.
.....कैलाश शर्मा
वाह क्या मर्म संजोया है आपने इस कविता में। अन्तिम परीक्षा जब मिलेगी मुक्ति परीक्षाओं से लेकिन अनिश्चित है यह भी। सुन्दर।
ReplyDeleteजीवन में है नित्य परीक्षा
ReplyDeleteआपके जिंदगी में वो पल कभी न आए
ReplyDeleteसादर
सहमत हूँ आपके विचारों से और एक रचना बन पड़ी -
ReplyDeleteछोड़ इन झमेलों को
ये मेरे -तेरे रूपी वेलों को ।
हे प्रभु मुझे ले चलो
बस मुझे विश्राम दो ॥
bahut sundar likha ...sach hain har pal pariksha hi to hain ...namste bhaiya
ReplyDeleteशायद ये अनिश्चितता ही सही है...दिन निश्चित हो जाए तो जीने का रोमांच ही न ख़तम हो जाए....
ReplyDeleteबढ़िया भाव...
सादर
अनु
जब तक जीवन है नित नई परीक्षाओं से गुजरना ही पड़ेगा,,,
ReplyDeleteसुंदर सृजन ! बेहतरीन प्रस्तुति,
RECENT POST : बिखरे स्वर.
परीक्षा या परिणाम .......??? ...सुन्दर सृजन
ReplyDeleteनैराश्य पूर्ण भाव लिए यथार्थ को कहती अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!बढ़िया भाव...
ReplyDeleteयह ज़िंदगी की परीक्षा इतनी नहीं आसान
ReplyDeleteएक आग का दरिया है और डूब क जानना है...ज़रा बिगड़ दिया हमने ग़ालिब का यह शेर माफी चाहते है :)
लेकिन सच तो यही है। सुंदर भाव अभिव्यक्ति ...
जीवन के सत्य और एक इंसान की विवशता की कहानी कहती सी बहुत ही सारगर्भित रचना ! अति सुंदर !
ReplyDeleteगहरी रचना.
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअनिश्चित दिन उस प्रतीक्षा का !
ReplyDeleteइसलिए कह गए श्रीकृष्ण बस कर्म पर ही तुम्हारा वश है !
श्रेष्ठ चिंतन !
बहुत ही सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुती,धन्यबाद।
ReplyDeleteसच है अब रोज-रोज के संघर्ष और परीक्षाओं से मन उक्ताने लगा है। बहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteसुन्दर. परीक्षाएं तो निरंतर चलती रहती हैं
ReplyDeleteबढ़िया है
ReplyDeleteये तो जीवन का खेल है ... सांसों की आँख मिचौली जो चलती रहेगी उम्र भर ...
ReplyDeleteकभी न खत्म होने वाली परीक्षा उसके दरबार पे जा के ही खत्म होती है ... भाव मय रचना ...
gahan abhivyakti.. bohat sundar likha hai dada
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteअंतिम परीक्षा भी अंतिम नहीं है..एक नया दौर अगले ही क्षण शुरू हो जाता है..
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteये सारी परीक्षाएं सिलेबस के बाहर की हैं...और हमेशा हमें चाक-चौबंद रखतीं हैं...
ReplyDeleteshayad jeenay ka maza hai in parichaon say....sundar rachna
ReplyDeleteबहुत ही गहन भाव के साथ अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteलेकिन अनिश्चित सदैव की तरह
ReplyDeleteदिन उस अंतिम परीक्षा का भी.
Kitna sach kaha hai!Us antim dintak har roz hame na jane kitne imtehanon se guzarna padta hai!
true..
ReplyDeleteeveryday a new test
new enemy and new opponent.
मर्म को झंकृत करता कविता का मर्म..
ReplyDeleteमुक्ति प्रभु की शरण में जाने से मिलेगी इंतज़ार करने से
ReplyDeleteनहीं मन बुद्धि उसके अर्पण कर दो।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लागर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शनिवार हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल :007 http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर ..
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