मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश:
पंद्रहवां अध्याय
(पुरुषोत्तम-योग-१५.१-१०) जिसकी जड़ ऊपर शाखाएं नीचे फैलीं
पीपल अव्यय विश्वरूप वृक्ष है होता.
वेद हैं पत्ते इस विश्व रूप वृक्ष के
जो यह जानता, वेदों का ज्ञाता होता. (१५.१)
ऊपर नीचे फ़ैली शाखायें
वृद्धि गुणों से प्राप्त हैं करतीं.
विषयों के अंकुर हैं फूटते
जड़ें कर्म बंधन में हैं बांधती. (१५.२)
रूप है इसका देख न पाते,
आदि, अंत, आधार न दिखता.
अति दृढ मूलों वाला पीपल
दृढ अनासक्ति शस्त्रों से कटता. (१५.३)
उस स्थिति को प्राप्त करो तुम
जाकर नहीं इस लोक में आते.
आदि पुरुष की शरण में जाओ
जिससे विस्तार संसार है पाते. (१५.४)
जो है अभिमान व मोह विहीना
आसक्ति दोष पर जीत है पायी.
आत्म ज्ञान में नित्य है स्थित
मुक्ति सर्व कामनाओं से पायी. (१५.५)
मुक्त है सुख दुःख के द्वंद्वों से
निवृत्त अविद्या से जो हो जाते.
ऐसे उत्तम जो ज्ञानी जन हैं
उस अविनाशी पद को हैं वे पाते. (१५.५)
वही परम धाम है मेरा
पाकर जन है नहीं लौटता.
नहीं सूर्य शशि या अग्नि
मेरा धाम प्रकाशित करता. (१५.६)
जग के समस्त देहधारी प्राणी में
अंश मेरा ही जीवात्मा रहता.
प्रकृति में स्थित इन्द्रिय व मन
भोगों में है आकर्षित करता. (१५.७)
जिस शरीर को त्यागे जीवात्मा
उससे इन्द्रियां ग्रहण है करता.
नव शरीर में उनको ले जाता
जैसे वायु सुगंध ग्रहण है करता. (१५.८)
कान नेत्र त्वचा रसना से
गंध व मन का ले आश्रय.
वह जीवात्मा ही है भोगता
सभी इन्द्रियों के विषय. (१५.९)
एक शरीर त्याग जब दूजे में जाते
या उसमें स्थित हो विषय भोगते.
ज्ञानचक्षु से देखें हैं ज्ञानी यह सब
पर विमूढ़ जीवात्मा है देख न पाते. (१५.१०)
......क्रमशः
....कैलाश शर्मा
Bahut hi sarahniya prayas aapke dwara,meri hardik shubhkamanaye w badhai aapko......
ReplyDeleteश्रेष्ठ रचना , प्रसंशनीय श्रृजन ,सादर
ReplyDeleteअति उत्तम व मन को आकर्षित करती रचना सर
ReplyDeleteनया प्रकाशन --: जानिये क्या है "बमिताल"?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (09-11-2013) गंगे ! : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1424 "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteहाँ इस उलटे झाड़ का बीज ऊपर है स्व्यं परमात्मा है। बहुत सुन्दर भावानुवाद सहज सुभाउ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आपका-
गीता के मूल भाव को सरल भाषा में जन जन तक ले जाने का कार्य ... सच में बहुत ही सराहनीय कार्य कर रहे हैं आप ... आभार है आपका ...
ReplyDeleteबहुत सार्थक।
ReplyDeleteबेहद सराहनीय कार्य किया है आपने सरलीकृत करके
ReplyDeleteहमेशा की तरह सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteनई पोस्ट : फिर वो दिन
वही परम धाम है मेरा
ReplyDeleteपाकर जन है नहीं लौटता.
नहीं सूर्य शशि या अग्नि
मेरा धाम प्रकाशित करता
परम धाम को नमन !
bahut sundar .....namste bhaiya
ReplyDeleteगीता का सरल रूप मन के अंदर जाता हुआ ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना !!
bahut hi saral shabdon mein sunder anuwad
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