समस्यायें अनेक
रूप अनेक
लेकिन व्यक्ति केवल एक।
नहीं होता स्वतंत्र अस्तित्व
किसी समस्या या दुःख का,
नहीं होती समस्या
कभी सुप्तावस्था में,
जब जाग्रत होता 'मैं'
घिर जाता समस्याओं से।
रूप अनेक
लेकिन व्यक्ति केवल एक।
नहीं होता स्वतंत्र अस्तित्व
किसी समस्या या दुःख का,
नहीं होती समस्या
कभी सुप्तावस्था में,
जब जाग्रत होता 'मैं'
घिर जाता समस्याओं से।
मेरा 'मैं'
देता एक अस्तित्व
मेरे अहम् को
और कर देता आवृत्त
मेरे स्वत्व को।
मैं भुला देता मेरा स्वत्व
और धारण कर लेता रूप
जो सुझाता मेरा 'मैं'
अपने अहम् की पूर्ती को।
देता एक अस्तित्व
मेरे अहम् को
और कर देता आवृत्त
मेरे स्वत्व को।
मैं भुला देता मेरा स्वत्व
और धारण कर लेता रूप
जो सुझाता मेरा 'मैं'
अपने अहम् की पूर्ती को।
नहीं होती कोई सीमा
अहम् जनित इच्छाओं की,
अधिक पाने की दौड़ देती जन्म
ईर्ष्या, घमंड और अवसाद
और घिर जाते दुखों के भ्रमर में।
अहम् जनित इच्छाओं की,
अधिक पाने की दौड़ देती जन्म
ईर्ष्या, घमंड और अवसाद
और घिर जाते दुखों के भ्रमर में।
'मैं' नहीं है
स्वतंत्र शरीर या सोच,
जब हो जाता तादात्म्य 'मैं' का
किसी भौतिक अस्तित्व से
तो हो जाता आवृत्त अहम् से
जब हो जाता तादात्म्य 'मैं' का
किसी भौतिक अस्तित्व से
तो हो जाता आवृत्त अहम् से
और बन जाता कारण दुखों
और समस्याओं का.
कर्म से नहीं मुक्ति मानव की
लेकिन अहम् रहित कर्म
नहीं है वर्जित 'मैं'.
हे ईश्वर! तुम ही हो कर्ता
मैं केवल एक साधन
और समर्पित सब कर्म तुम्हें
कर देता यह भाव
मुक्त कर्म बंधनों से,
और हो जाता अलोप 'मैं'
और अहम् जनित दुःख।
नहीं है वर्जित 'मैं'.
हे ईश्वर! तुम ही हो कर्ता
मैं केवल एक साधन
और समर्पित सब कर्म तुम्हें
कर देता यह भाव
मुक्त कर्म बंधनों से,
और हो जाता अलोप 'मैं'
और अहम् जनित दुःख।
जब हो जाता तादात्म्य
अहम् विहीन ‘मैं’ का
अहम् विहीन ‘मैं’ का
निर्मल स्वत्व से,
हो जाते मुक्त दुखों से
और होती प्राप्त परम शांति।
हो जाते मुक्त दुखों से
और होती प्राप्त परम शांति।
….कैलाश शर्मा
कर्म से नहीं मुक्ति मानव की
ReplyDeleteलेकिन अहम् रहित कर्म
नहीं है वर्जित 'मैं'.वाह!!! बेहतरीन गहन भाव अभिव्यक्ति ....
नहीं होता स्वतंत्र अस्तित्व
ReplyDeleteकिसी समस्या या दुःख का,
नहीं होती समस्या
कभी सुप्तावस्था में,
जब जाग्रत होता 'मैं'
घिर जाता समस्याओं से।...... कितनी गारी बात कही है आपने .. मैं की जाग्रति ही समस्याओं को उत्पन्न करती है
हे ईश्वर! तुम ही हो कर्ता
मैं केवल एक साधन
और समर्पित सब कर्म तुम्हें
कर देता यह भाव
मुक्त कर्म बंधनों से,
और हो जाता अलोप 'मैं'
और अहम् जनित दुःख।.... सही में .. यह विचारधारा हो तो समस्त कष्टों का स्वतः ही अंत हो जाए .. कैलाश जी आपकी कविता तो मनो गीता का सार है .. उत्तम उत्कृष्ट अभिव्यक्ति!
एक अंतहीन सिलसिला जो अनवरत चलता रहता गीता के भावों का संचार करती उत्किष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteएकात्म करती मन:स्थिति
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा,उत्कृष्ट प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: एक बूँद ओस की.
मैं का विस्तार... बस समझ आ जाए तो परम शांति प्राप्त हो जाती है !!
ReplyDeleteआभार सुंदर प्रस्तुति के लिए ...!!
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteवाह बहुत बढिया...
ReplyDeleteजब हो जाता तादात्म्य
ReplyDeleteअहम् विहीन ‘मैं’ का
निर्मल स्वत्व से,
हो जाते मुक्त दुखों से
और होती प्राप्त परम शांति।
दार्शनिक चिंतन से परिपूर्ण एक गहन रचना ! जिस दिन हमारे मन पर अधिकार जमाने वाला 'अहम्' विलीन हो जायेगा हमारा 'मैं' पूरी तरह से निष्काम एवँ निर्मल हो जायेगा !
सारी बीमारी की जड़ मै ही तो है...सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बात कही है आपने.
ReplyDeleteAdvanced Merry Christmas & Happy New Year greetings and also Thanks and Smiles:) for ur support till now Dear Kailash Sharmaji God<3U:)
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति -
ReplyDeleteआभार आपका-
कर्म से नहीं मुक्ति मानव की
ReplyDeleteलेकिन अहम् रहित कर्म
नहीं है वर्जित 'मैं'.
हे ईश्वर! तुम ही हो कर्ता
मैं केवल एक साधन
और समर्पित सब कर्म तुम्हें
कर देता यह भाव
मुक्त कर्म बंधनों से,
और हो जाता अलोप 'मैं'
और अहम् जनित दुःख।
गीता का कर्मयोग ..मैं नहीं करता हूँ...आप करवाते हो -बहुत अच्छा
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य (भाग १)
नई पोस्ट चंदा मामा
जब हो जाता तादात्म्य
ReplyDeleteअहम् विहीन ‘मैं’ का
निर्मल स्वत्व से,
हो जाते मुक्त दुखों से
और होती प्राप्त परम शांति।
बहुत गहन अनुभूति...आभार !
कल 19/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
शुक्रिया...
DeleteWaah....bahut sundar
ReplyDeletePuri 'tu-tu-me-me' hi is "main" ki hai :-)
गहन अनुभूति......
ReplyDeleteहर परिस्थिति में स्वयं को यथारूप स्थापित ही करना होता है।
ReplyDeleteस्वयं के लोप की समस्त संभावनाएं क्षीण हो गईं प्रतीत होती हैं, लेकिन तब भी आत्म-टंकार जगा ही देती है अपने विचलन पर। समस्याओं की जड़ पर प्रहार है यह कवितामयी प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteकर्म से नहीं मुक्ति मानव की
ReplyDeleteलेकिन अहम् रहित कर्म
नहीं है वर्जित 'मैं'.
हे ईश्वर! तुम ही हो कर्ता
मैं केवल एक साधन
और समर्पित सब कर्म तुम्हें
कर देता यह भाव
मुक्त कर्म बंधनों से,
और हो जाता अलोप 'मैं'
और अहम् जनित दुःख।
गीता सार। सुन्दर भाव मोक्ष का नुस्खा।
बहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteमैं अहम् और हम का दोनों का बोध देता है , मगर दोनों में ही है फर्क बहुत !
ReplyDeleteसुन्दर भाव !
umda prastuti
ReplyDeleteये परम शान्ति जितनी जल्दी आए ... उतना ही सहज हो जाता है जीवन ...
ReplyDeleteसुन्दर चिंतन!
ReplyDelete***
जन्मदिवस की अनंत शुभकामनाएं!
सादर!
अत्यंत गहन और सुन्दर |
ReplyDeleteजीवन के दर्शन को कहती सुन्दर रचना ..... गहन प्रस्तुति
ReplyDeletesanatan saty baat ki aham ke naash ke bina hamara sahi satva prakat nahi hota hai
ReplyDelete"Kailash ji,
ReplyDelete"Aham rahit karm." Bhut sundar Gita ka saar.
Vinnie