रश्मि प्रभा जी और किशोर खोरेन्द्र जी द्वारा संपादित काव्य-संग्रह 'बालार्क' में सामिल मेरी रचनाओं में से एक रचना
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डोर से कटी पतंग
बढ़ती स्वच्छंद
अनंत गगन में
अनभिज्ञ अपनी नियति
से
कहाँ गिरेगी जाकर,
जीने दो कुछ पल
बिना डोर के बंधन
के.
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भागते साथ भीड़ के
आता है याद
वो बरगद का पेड़,
संतुष्टि की घनी
पगडंडियों
चेहरों पर,
ताकती उदास आँखों से
शहर को जाती सड़क.
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कितना खोया
कुछ पाने की चाहत में,
ताकता हसरत से
खुशियों से भरी सड़क
जाती गाँव को,
जो बन गयी
आज अज़नबी.
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कल की तलाश में
निकल जाता आज,
मुट्ठी से
रेत की तरह.
....कैलाश शर्मा
(हिन्द-युग्म द्वारा प्रकाशित 'बालार्क' अधिकांश ई-स्टोर्स पर उपलब्ध)
जाने क्या पाना चाहते हैं हम जो हमेशा कल की चाहत में आज खो देते हैं और जब तक बात समझ में आती है वक्त निकल चुका होता है ...बहुत बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebahut sundar rachna kailash ji , behad sanjidagi hai abhivyakti me , hardik badhai aapkko
Deleteजीवन मुट्ठी से गिरती रेत का विचित्र ताना-बाना है। बधाई। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबढ़िया है आदरणीय -
ReplyDeleteआभार-
बहुत ही सुंदर , आदरणीय धन्यवाद
ReplyDeleteनया प्रकाशन -: अपने ब्लॉग के लेख को कॉपी होने से कैसे बचाएं !
बहुत सुंदर रचनाऐं !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : आंसुओं के मोल
कल की तलाश में
ReplyDeleteनिकल जाता आज,
मुट्ठी से
रेत की तरह.बढ़िया......
बेहतरीन अभिव्यक्ति...!
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Recent post -: वोट से पहले .
बहुत सुन्दर रचनाएं....
ReplyDeleteबालार्क के सभी रचनाकारों को बधाई....
सादर
अनु
आभार...
ReplyDeleteछन्द-मुक्त भाव-प्रधानता के लिये साधुवाद !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना बधाई .....!!.
ReplyDeleteएहसासों में डूबी पंक्तियाँ होती है आपकी पंक्तियाँ. अति सुन्दर. 'बालार्क' के लिए बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteडोर से कटी पतंग
ReplyDeleteबढ़ती स्वच्छंद
अनंत गगन में
अनभिज्ञ अपनी नियति से
कहाँ गिरेगी जाकर,
जीने दो कुछ पल
बिना डोर के बंधन के
बहुत सुन्दर !
नई पोस्ट नेता चरित्रं
नई पोस्ट अनुभूति
कल की तलाश में आज निकल जाता है।
ReplyDeleteसच्ची हैं रचनाएं !
सच की बानगी लिए भाव ..... बहुत उम्दा
ReplyDeleteवाह क्या बात! बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteइसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं
मानवीय संवेदनाओं को जगातीं बहुत ही सुन्दर रचनायें ! शुभकामनायें कैलाश जी !
ReplyDeleteमृगतृष्णा है ये जीवन .......गहरे अहसास !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना महोदय.. बधाई आपको..
ReplyDeleteजीवन की सचाइयों को कुछ ही शब्दों में लिखा है आपने ... गहरा जीवन दर्शन ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ,बधाई ...!
ReplyDeleteSACH KO BAYAAN KARTI RACHNA ,,,,,
ReplyDeleteकल की तलाश में
ReplyDeleteनिकल जाता आज,
मुट्ठी से
रेत की तरह.
बहुत गहरे भाव !
Behatarin rachana
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई आपको..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचनाएं है...
:-)
सुन्दर रचनाएं है...बहुत-बहुत बधाई आपको.
ReplyDeleteबधाई हो। ……। सुन्दर रचना |
ReplyDeleteकल की तलाश में
ReplyDeleteनिकल जाता आज,
मुट्ठी से
रेत की तरह.
सुन्दर अभिव्यक्ति
antartam gaharai se nikalti hui panktiyan
ReplyDeleteवाह...उत्तम...इस प्रस्तुति के लिये आप को बहुत बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
अच्छी प्रगतिवादी रच्क्ना !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन है यह।
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई आपको......
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