जीवन के
अकेलेपन में
और भी गहन
हो जाती
संवेदनशीलता,
होता कभी अहसास
घर के
सूनेपन में
किसी के
साथ होने का,
शायद होता
हो अस्तित्व
सूनेपन का
भी.
***
शायद हुई
आहट
दस्तक
सुनी दरवाज़े पर
पर नहीं
था कोई,
गुज़र गयी
हवा
रुक कर
कुछ पल दर पर,
सुनसान
पलों में हो जाते
कान भी
कितने तेज़
सुनने
लगते आवाज़
हर गुज़रते
मौन की.
***
आंधियां और
तूफ़ान
आये कई
बार आँगन में
पर नहीं
ले जा पाये
उड़ाकर
अपने साथ,
आज भी
बिखरे हैं
आँगन में
पीले पात
बीते पल
की यादों के
तुम्हारे
साथ.
...कैलाश
शर्मा
बहुत खूब
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति संवादहीनता और रिक्तता की
ReplyDeleteस्मृतियों का मौन कितना मुखर !
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteदिनांक 04/08/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
dil ko jhakjhorti rachna .....
ReplyDeleteबहुत खूब। कान भी मौन की आवाज सुनते हैं। कान शायद उस वक्त अवचेतन मन की प्रेरणा होते हैं।
ReplyDeleteअतल गहराइयाँ होती है मौन की. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteवाह , बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteवाह बहुत अच्छा लिखा है आपने. सुन्दर शब्दाभाव
ReplyDeleteअकेलेपन का एहसास बहुत गराई से लिखा है ... शिद्दत से जैसे जी रहे हैं इस पल को ...
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteमौन की बातें ...मौन समझता है जब
ReplyDeleteकितना कुछ कह जाता है
अनुपम भाव लिये बेहतरीन प्रस्तुति
यादों का साथ ऐसे ही लुभाता है...सुंदर भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteek behad hi rochak prastuti.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteमौन की बातें ...मौन समझता है जब
ReplyDeleteकितना कुछ कह जाता है
.............. बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteyatharth ki dhara par bune gayi jeevan chakr ka ek drashy.....ye sirf aap bhi sambhav kar sakte hain.
ReplyDeleteयादों के मौन की मुखर अभिव्यक्ति .... बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteये मौन भी बहुत शोर करता है ...
ReplyDeleteसार्थक लेखन
ReplyDeleteसादर
बहुत ख़ूब!
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
सादर ---
आग्रह है ---
आवाजें सुनना पड़ेंगी -----
बहुत सुन्दरता से भावों के पिरोया है - अनुभूति प्रत्यक्ष हो उठी है .
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव.
ReplyDeleteनई पोस्ट : आमि अपराजिता.....
bahut badhiya ...
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeletesarthak aur sargarbhit prastuti ke liye aabhar sharma ji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी रचना ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteशायद हुई आहट
ReplyDeleteदस्तक सुनी दरवाज़े पर
पर नहीं था कोई,
गुज़र गयी हवा
रुक कर कुछ पल दर पर,
सुनसान पलों में हो जाते
कान भी कितने तेज़
सुनने लगते आवाज़
हर गुज़रते मौन की.
बहुत सुंदर
मौन भी कितना मुखर हो सकता है ,आज इसका एहसास हुआ । मुझे कभी - कभी ऐसा लगता है जैसे मौन ही हमारा सबसे अच्छा हम - सफर है । यह मुझे निर्विकल्प - समाधि की तरह लगता है , यद्यपि मुझे अभी , किसी भी समाधि का अनुभव नहीं हुआ है ।
ReplyDeleteबोध - गम्य - रचना ।