Saturday, August 02, 2014

आवाज़ मौन की

जीवन के अकेलेपन में     
और भी गहन हो जाती
संवेदनशीलता,
होता कभी अहसास
घर के सूनेपन में
किसी के साथ होने का,
शायद होता हो अस्तित्व
सूनेपन का भी.
     ***
शायद हुई आहट           
दस्तक सुनी दरवाज़े पर
पर नहीं था कोई,
गुज़र गयी हवा
रुक कर कुछ पल दर पर,
सुनसान पलों में हो जाते
कान भी कितने तेज़
सुनने लगते आवाज़
हर गुज़रते मौन की.
      ***
आंधियां और तूफ़ान       
आये कई बार आँगन में
पर नहीं ले जा पाये
उड़ाकर अपने साथ,
आज भी बिखरे हैं
आँगन में पीले पात
बीते पल की यादों के
तुम्हारे साथ.


...कैलाश शर्मा 

35 comments:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति संवादहीनता और रिक्तता की

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  2. स्मृतियों का मौन कितना मुखर !

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  3. सुंदर प्रस्तुति...
    दिनांक 04/08/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
    हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
    हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर

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  4. बहुत खूब। कान भी मौन की आवाज सुनते हैं। कान शायद उस वक्‍त अवचेतन मन की प्रेरणा होते हैं।

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  5. अतल गहराइयाँ होती है मौन की. सुन्दर रचना.

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  6. हृदयस्पर्शी रचना ! बहुत सुन्दर !

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  7. वाह , बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!

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  8. वाह बहुत अच्छा लिखा है आपने. सुन्दर शब्दाभाव

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  9. अकेलेपन का एहसास बहुत गराई से लिखा है ... शिद्दत से जैसे जी रहे हैं इस पल को ...

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  10. मौन की बातें ...मौन समझता है जब
    कितना कुछ कह जाता है
    अनुपम भाव लिये बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  11. यादों का साथ ऐसे ही लुभाता है...सुंदर भावपूर्ण रचना !

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  12. बेहतरीन प्रस्तुति...

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  13. बेहतरीन अभिव्यक्ति....

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  14. मौन की बातें ...मौन समझता है जब
    कितना कुछ कह जाता है
    .............. बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  15. yatharth ki dhara par bune gayi jeevan chakr ka ek drashy.....ye sirf aap bhi sambhav kar sakte hain.

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  16. यादों के मौन की मुखर अभिव्यक्ति .... बहुत ही सुन्दर

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  17. ये मौन भी बहुत शोर करता है ...

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  18. बहुत सुन्दर रचना
    सादर ---

    आग्रह है ---
    आवाजें सुनना पड़ेंगी -----

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  19. बहुत सुन्दरता से भावों के पिरोया है - अनुभूति प्रत्यक्ष हो उठी है .

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  20. खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  21. sarthak aur sargarbhit prastuti ke liye aabhar sharma ji

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  22. बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी रचना ..

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  23. शायद हुई आहट
    दस्तक सुनी दरवाज़े पर
    पर नहीं था कोई,
    गुज़र गयी हवा
    रुक कर कुछ पल दर पर,
    सुनसान पलों में हो जाते
    कान भी कितने तेज़
    सुनने लगते आवाज़
    हर गुज़रते मौन की.
    बहुत सुंदर

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  24. मौन भी कितना मुखर हो सकता है ,आज इसका एहसास हुआ । मुझे कभी - कभी ऐसा लगता है जैसे मौन ही हमारा सबसे अच्छा हम - सफर है । यह मुझे निर्विकल्प - समाधि की तरह लगता है , यद्यपि मुझे अभी , किसी भी समाधि का अनुभव नहीं हुआ है ।
    बोध - गम्य - रचना ।

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