सूना सूना मन लगता है,
कहीं न अपनापन लगता है।
घर के जिस कोने में झाँकूं,
वहां अज़ानापन लगता है।
कहीं न अपनापन लगता है।
घर के जिस कोने में झाँकूं,
वहां अज़ानापन लगता है।
क्यूँ खुशियों के चहरे पर भी
अनजानी सी झिझक देखता।
हाथ बढाता जिधर प्यार से,
उधर ही खालीपन लगता है।
अनजानी सी झिझक देखता।
हाथ बढाता जिधर प्यार से,
उधर ही खालीपन लगता है।
मायूसी बिखरी हर पथ पर,
मंज़िल है बेजान सी लगती।
क़दम नहीं इक पग भी बढ़ते,
थका थका सा मन लगता है।
मंज़िल है बेजान सी लगती।
क़दम नहीं इक पग भी बढ़ते,
थका थका सा मन लगता है।
बिस्तर तरसे है सलवट को,
नींद खडी है अंखियन द्वारे।
कसक रहे सपने पलकों में,
जीवन सिर्फ़ घुटन लगता है।
नींद खडी है अंखियन द्वारे।
कसक रहे सपने पलकों में,
जीवन सिर्फ़ घुटन लगता है।
उजड़ा उजड़ा लगे है उपवन,
फूलों का रंग लगे है फीका।
गुज़रा जीवन संघर्षों में,
अब सोने को मन करता है।
फूलों का रंग लगे है फीका।
गुज़रा जीवन संघर्षों में,
अब सोने को मन करता है।
...कैलाश शर्मा
सूनेपन और अकेलेपन से सिमटी बहुत ही भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteसुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुतत खूब, शर्माजी एकाककीपन का आपने बसूबी चित्रण किया है, सादर बधाई
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteअकेलापन फीका जहर है जो मारता जरुर है लेकिन बड़ी अदब से धीरे धीरे.
ReplyDeleteखुबसुरत रचना
अकेलेपन की व्यथा यूँ व्यक्त हुई मानो खुद भोगी गयी
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteरचनाकार के अकेलेपन की ...रचना ??
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..मन की तो यही कहानी है..मन यानि अभाव..और आत्मा यानि आनन्द..मन यानि मनुष्य ..आत्मा यानि परमात्मा...
ReplyDeleteसूनापन जीवन में कभी न कभी आता है ! सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteतुझे मना लूँ प्यार से !
सुंदर भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteअकेलेपन में अकसर सूनापन आ घेरता है ... फिर कुछ भी अच्छा नहीं लगता ....
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना है ...
अद्भुत रचना , मंगलकामनाएं आपको भाई जी !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! एक तरह की थकन और वीतराग की खनक सी ध्वनित हो रही है आपकी कविता में ! उत्कृष्ट अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteloneliness..your words portray it well sir :)
ReplyDeleteमायूसी बिखरी हर पथ पर,
ReplyDeleteमंज़िल है बेजान सी लगती।
क़दम नहीं इक पग भी बढ़ते,
थका थका सा मन लगता है।
सुंदर भावपूर्ण रचना.श्री शर्मा जी
एकाकीपन से उत्पन्न अवसादपूर्ण मनस्थिति का सुन्दर चित्रण ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति है ...सर
ReplyDeleteमन के एकाकीपन का बखूबी चित्रण किया है आपने ...
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण
ReplyDeleteमन अकेला क्या क्या न सोचे।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति.... आभार।
ReplyDeleteउचाट मन मेरा तेरा या आपाधापी जीवन की क्या कहूँ तू ही बता -अब लौटने को मन करता है। साँझ हुई घर दुआरे -बहुत सुन्दर रचना है जीवन में पसरी अन्यमनस्कता का सुन्दर लेखा।
ReplyDeleteमनोहारी कविता !
ReplyDeleteभावमय करते शब्द व प्रस्तुति
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