कल
खरोंची उँगलियों से
दीवारों पर जमी यादों की परतें,
हो गयीं घायल उंगलियाँ
रिसने लगा खून
डूब गयीं यादें कुछ पल को
उँगलियों के दर्द के अहसास में।
दीवारों पर जमी यादों की परतें,
हो गयीं घायल उंगलियाँ
रिसने लगा खून
डूब गयीं यादें कुछ पल को
उँगलियों के दर्द के अहसास में।
कितनी गहरी हैं परतें यादों की,
आज फ़िर उभर आया अक्स
दीवारों पर यादों का,
नहीं कोई कब्रगाह
जहाँ दफ़्न कर सकें यादें,
शायद चाहतीं साथ आदमी का
दफ़्न होने को क़ब्र में।
दीवारों पर यादों का,
नहीं कोई कब्रगाह
जहाँ दफ़्न कर सकें यादें,
शायद चाहतीं साथ आदमी का
दफ़्न होने को क़ब्र में।
...कैलाश शर्मा
वाह !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteतेरी यादों के कफ़न में इक जाँ उलझ गई है
फ़रियाद क्या करें हम उन पर्दा नशीनों से
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (28.11.2014) को "लड़ रहे यारो" (चर्चा अंक-1811)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteआभार...
Deleteयादें भी इंसान के साथ जी दफ़न होती हैं ... वरना छुपी रहती हैं सांस लेती ...
ReplyDeleteaisa hi hota hai .....yade marne par hi khatm hoti hai ....bahut sundar rachna
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण रचना..मार्मिक भी...
ReplyDeleteसच कहा आपने यादों की कोई कब्रगाह नहीं होती ये सदैव हमारे साथ ही होती हैं !
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति ! अति सुंदर !
ReplyDeleteबेहद सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहृदय से निकली कविता !
ReplyDeleteनहीं कोई कब्रगाह
ReplyDeleteजहाँ दफ़्न कर सकें यादें,
शायद चाहतीं साथ आदमी का
दफ़्न होने को क़ब्र में।
काश, कोई ऐसा क़ब्रगाह होता तो जि़ंदगी ज़्यादा सुकून भरी होती...!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति शर्माजी ,कहना चाहूंगा -
ReplyDeleteमै तेरा ही बुत बनाऊँगा ,तेरी यादों की मजार पर ,
बेशक ज़माना मुझे पागल दीवाना कहे
सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteकल 30/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
आभार...
Deleteबहुत बढ़िया ....
ReplyDeleteइंसान भले ही ख़त्म हो जाए लेकिन उसकी याद कभी खत्म नहीं होती ..वे किसी न किसी रूप में यही जिन्दा रहती हैं ..
बहुत ख़ूब।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.........अच्छा लगा पढ़कर!
ReplyDeleteबिल्कुल ...यही जीवन की सच्चाई है ......जीवंत कविता ...!
ReplyDeleteइतना भी आसान न होता, गुमसुम दर्द भुला पाना !
ReplyDeleteबहतीं और सूखती रहतीं,कितनी नदियां आँखों में !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति भावों और यादों की .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ....यादें मरती हैं क्या कभी .....सादर नमस्ते भैया
ReplyDeletebahut khub likha apne app mera blog bhi check kijiye main ache stories likhi hai hope appko pasand aye
ReplyDeletehttp://the-livingtreasure.blogspot.com/
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह बहुत गहरी बात ब्यान करती रचना ।
ReplyDeleteबहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें
यादों के दरीचे देते रहतें हैं जब तब आवाज़ ,
ReplyDeleteकरता रहता हूँ मैं सुनी अनसुनी।
बढ़िया बिम्ब लिए आई है ये रचना :
दीवारों पर यादों का,
नहीं कोई कब्रगाह
जहाँ दफ़्न कर सकें यादें,
शायद चाहतीं साथ आदमी का
दफ़्न होने को क़ब्र में।
भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteमुकेश की याद में@जिस दिल में बसा था प्यार तेरा
waah behad lajawaab.....
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति....
ReplyDeleteयादें होती ही ऐसी है