घर नहीं होता बेज़ानदार
छत से घिरी चार दीवारों का,
घर के एक एक कोने में
छुपा इतिहास जीवन का।
छत से घिरी चार दीवारों का,
घर के एक एक कोने में
छुपा इतिहास जीवन का।
खरोंचें संघर्ष की
जीवन के
हर मोड़ की,
सीलन दीवारों पर
बहे हुए अश्क़ों की,
यादें उन अपनों की
जो रह गये बन के
एक तस्वीर दीवार की,
गूंजती खिलखिलाहट
अब भी इस सूने घर में
भूले बिसरे रिश्तों व पल की,
साथ उन टूटे ख़्वाबों का
जो संजोये थे कभी
बिखरे अभी भी हर कोने में।
सीलन दीवारों पर
बहे हुए अश्क़ों की,
यादें उन अपनों की
जो रह गये बन के
एक तस्वीर दीवार की,
गूंजती खिलखिलाहट
अब भी इस सूने घर में
भूले बिसरे रिश्तों व पल की,
साथ उन टूटे ख़्वाबों का
जो संजोये थे कभी
बिखरे अभी भी हर कोने में।
अकेलापन तन का
पर नहीं सूनापन मन का
इस घर की चार दीवारों में,
एक एक ईंट और गारे में
समाहित सम्पूर्ण जीवन इतिहास
देता है सुकून व संतुष्टि,
नहीं महसूस होता अकेलापन
इस सुनसान घर की
चार दीवारों के बीच,
नहीं खलता मौन
बातें करते यादों से
इस जीवन संध्या में।
पर नहीं सूनापन मन का
इस घर की चार दीवारों में,
एक एक ईंट और गारे में
समाहित सम्पूर्ण जीवन इतिहास
देता है सुकून व संतुष्टि,
नहीं महसूस होता अकेलापन
इस सुनसान घर की
चार दीवारों के बीच,
नहीं खलता मौन
बातें करते यादों से
इस जीवन संध्या में।
...कैलाश शर्मा
क्या मालूम फिर कहीं
ReplyDeleteनिकले सूरज सुबह का
रोशनी के साथ
जीवन संध्या के बाद भी :)
बहुत सुंदर रचना ।
बहुत गहन विचार लिए कविता |
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteइस सुनसान घर की
ReplyDeleteचार दीवारों के बीच,
नहीं खलता मौन
बातें करते यादों से
इस जीवन संध्या में।
बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : इच्छा मृत्यु बनाम संभावित मृत्यु की जानकारी
Shandar post Sr
ReplyDeleteयही तो होता है जुड़ाव - एक घर ,कितने संबंधों का लेखा समेटे रहता है.
ReplyDeleteजीवन की अनुभूति का सार्थक अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteविस्मित हूँ !
बेहद गहन भाव लिये सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसच तो यही है इंसान कभी अकेला होता ही नहीं ...कई यादें..बातें .. मन में उमड़ घुमड़ साथ साथ जो रहती हैं ..
ReplyDeleteचिंतन युक्त प्रस्तुति
यादों की ओट से संवेदनाएं प्रकट हो गई जैसे..............
ReplyDeleteदुनिया में जब जब कोई नहीं पहचानता कम से कम ये चारदीवारी जानी पह्चानी तो लगती है ...
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना ...
बहुत गहरे शब्द।
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeletebahut gahre bhaaw..umda rachna....
ReplyDeleteह्रदय को स्पर्श करती रचना के लिए आभार..
ReplyDeleteअकेलापन तन का
ReplyDeleteपर नहीं सूनापन मन का
इस घर की चार दीवारों में,
एक एक ईंट और गारे में
समाहित सम्पूर्ण जीवन इतिहास......जीवन की सांध्य बेला के एकाकीपन को दर्शाती भावपूर्ण कविता
ह्रदय को स्पर्श करती गहन भाव लिए बहुत ही भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteअकेलापन तन का
ReplyDeleteपर नहीं सूनापन मन का
इस घर की चार दीवारों में ,
एक एक ईंट और गारे में
समाहित सम्पूर्ण जीवन इतिहास
देता है सुकून व संतुष्टि ,
नहीं महसूस होता अकेलापन..सजीव पंक्तिया
उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDelete@ नहीं खलता मौन, बातें करते यादों से, इस जीवन संध्या में।
ReplyDelete- बच के चलते हैं सभी खस्ता दरो दीवार से
दोस्तों की बेवफ़ाई का गीला पीरी में क्या?
नहीं महसूस होता अकेलापन
ReplyDeleteइस सुनसान घर की
चार दीवारों के बीच,
bahut achchha
मेरी सोच मेरी मंजिल