यूँ तो यह शाम वक़्त से आयी,
क्यूँ है लगता कि दिन नहीं गुज़रा।
क्यूँ है लगता कि दिन नहीं गुज़रा।
रात भर सिल रहा था गम अपने,
उनको पाया था फ़िर सुबह उधरा।
उनको पाया था फ़िर सुबह उधरा।
चांदनी खो गयी थी आँखों की,
चांद भी आज ग़मज़दा गुज़रा।
चांद भी आज ग़मज़दा गुज़रा।
उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
एक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
खो गयी जाने कहाँ लब की हंसी,
आज आँखों में है सन्नाटा पसरा।
(अगज़ल/अभिव्यक्ति)
आज आँखों में है सन्नाटा पसरा।
(अगज़ल/अभिव्यक्ति)
...कैलाश शर्मा
रात भर सिल रहा था गम अपने,
ReplyDeleteउनको पाया था फ़िर सुबह उधरा ...
क्या लाजवाब शेर है ... जीवन का फलसफा लिखा है ...
उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
ReplyDeleteएक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
bahut hi badhiya
बेजोड़ अभिव्यक्ति .... सादर
ReplyDeleteचांदनी खो गयी थी आँखों की,
ReplyDeleteचांद भी आज ग़मज़दा गुज़रा।
बहुत ख़ूब....
खूबसूरत अभिव्यक्ति !!
उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
ReplyDeleteएक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
वाह ! हर शेर एक से बढ़ कर एक है ! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ! बड़े करीने से जज्बातों को पिरोया गया है ! बहुत खूब !
वाह ! बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत खूब...सुन्दर...
ReplyDeleteआभार ...
ReplyDeleteउम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
ReplyDeleteएक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
बहुत सुन्दर
संत -नेता उवाच !
क्या हो गया है हमें?
सुन्दर गज़ल।
ReplyDeleteभावभरी अभिव्यक्ति - बहुत कुछ कहती हुई !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल.
ReplyDeleteनई पोस्ट : तेरी आँखें
प्रेम पल्लवित प्रस्तुति सुन्दर।
ReplyDeleteउम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
ReplyDeleteएक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
सुन्दर गजल
उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
ReplyDeleteएक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
..सच दु:ख का एक एक पल एक उम्र से कई गुना ज्यादा है..
बहुत सुन्दर ..
बहुत ही बढ़िया !
ReplyDeleteसमय निकालकर मेरे ब्लॉग http://puraneebastee.blogspot.in/p/kavita-hindi-poem.html पर भी आना
भावपूर्ण सुंदर रचना।
ReplyDeleteसराहनीय पोस्ट
ReplyDeleteसक्रांति की शुभकामनाएँ।
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteखूबसूरत शेर कहे है कैलाश जी बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteचांदनी खो गयी थी आँखों की,
ReplyDeleteचांद भी आज ग़मज़दा गुज़रा।
बहुत खूब
जो गुज़र गया ,वो अच्छा था
ReplyDeleteजहाँ भी गुज़रा ,जैसे भी गुज़रा .........
शुभकामनायें|
रात भर सिल रहा था गम अपने,
ReplyDeleteउनको पाया था फ़िर सुबह उधरा ...
...............बहुत खूब क्या लाजवाब शेर है
चांदनी खो गयी थी आँखों की,
ReplyDeleteचांद भी आज ग़मज़दा गुज़रा।
वाह, बहुत खूबसूरत।
रात भर सिल रहा था गम अपने,
ReplyDeleteउनको पाया था फ़िर सुबह उधरा।
............लाजवाब!
तुरपाई की कोशिश में ही इतनी सुन्दर बन गई कविता ।
ReplyDeleteप्रशंसनीय - प्रस्तुति ।
बहुत सुन्दर
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