Sunday, January 11, 2015

आज ये दिन उदास सा गुज़रा

आज ये दिन उदास सा गुज़रा,
एक साया इधर से था गुज़रा।

यूँ तो यह शाम वक़्त से आयी,
क्यूँ है लगता कि दिन नहीं गुज़रा।

रात भर सिल रहा था गम अपने,
उनको पाया था फ़िर सुबह उधरा।

चांदनी खो गयी थी आँखों की,
चांद भी आज ग़मज़दा गुज़रा।

उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे, 
एक पल उम्र से लंबा गुज़रा

खो गयी जाने कहाँ लब की हंसी,
आज आँखों में है सन्नाटा पसरा।

          (अगज़ल/अभिव्यक्ति)
...कैलाश शर्मा 

29 comments:

  1. रात भर सिल रहा था गम अपने,
    उनको पाया था फ़िर सुबह उधरा ...
    क्या लाजवाब शेर है ... जीवन का फलसफा लिखा है ...

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  2. उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
    एक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
    bahut hi badhiya

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  3. बेजोड़ अभिव्यक्ति .... सादर

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  4. चांदनी खो गयी थी आँखों की,
    चांद भी आज ग़मज़दा गुज़रा।
    बहुत ख़ूब....
    खूबसूरत अभिव्यक्ति !!

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  5. उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
    एक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
    वाह ! हर शेर एक से बढ़ कर एक है ! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ! बड़े करीने से जज्बातों को पिरोया गया है ! बहुत खूब !

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  6. वाह ! बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  7. भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  8. बहुत खूब...सुन्दर...

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  9. उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
    एक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
    बहुत सुन्दर
    संत -नेता उवाच !
    क्या हो गया है हमें?

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  10. भावभरी अभिव्यक्ति - बहुत कुछ कहती हुई !

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  11. बहुत सुन्दर गजल.
    नई पोस्ट : तेरी आँखें

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  12. प्रेम पल्‍लवित प्रस्‍तुति सुन्‍दर।

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  13. उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
    एक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
    सुन्दर गजल

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  14. उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे,
    एक पल उम्र से लंबा गुज़रा।
    ..सच दु:ख का एक एक पल एक उम्र से कई गुना ज्यादा है..
    बहुत सुन्दर ..

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  15. ​बहुत ही बढ़िया ​!
    ​समय निकालकर मेरे ब्लॉग http://puraneebastee.blogspot.in/p/kavita-hindi-poem.html पर भी आना ​

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  16. भावपूर्ण सुंदर रचना।

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  17. सराहनीय पोस्ट
    सक्रांति की शुभकामनाएँ।

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  18. भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  19. खूबसूरत शेर कहे है कैलाश जी बधाई

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  20. चांदनी खो गयी थी आँखों की,
    चांद भी आज ग़मज़दा गुज़रा।
    बहुत खूब

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  21. जो गुज़र गया ,वो अच्छा था
    जहाँ भी गुज़रा ,जैसे भी गुज़रा .........
    शुभकामनायें|

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  22. रात भर सिल रहा था गम अपने,
    उनको पाया था फ़िर सुबह उधरा ...
    ...............बहुत खूब क्या लाजवाब शेर है

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  23. चांदनी खो गयी थी आँखों की,
    चांद भी आज ग़मज़दा गुज़रा।
    वाह, बहुत खूबसूरत।

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  24. रात भर सिल रहा था गम अपने,
    उनको पाया था फ़िर सुबह उधरा।

    ............लाजवाब!

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  25. तुरपाई की कोशिश में ही इतनी सुन्दर बन गई कविता ।
    प्रशंसनीय - प्रस्तुति ।

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