सपने सब धूल हुए
आश्वासन भूल गया,
शहर अज़नबी रहा
और गाँव भूल गया,
एक वर्ष और गया।
आश्वासन भूल गया,
शहर अज़नबी रहा
और गाँव भूल गया,
एक वर्ष और गया।
तन पर न कपड़े थे
पर अलाव जलता था,
तन तो न ढक पाये
पर अलाव छूट गया,
एक वर्ष और गया।
तन तो न ढक पाये
पर अलाव छूट गया,
एक वर्ष और गया।
खुशियाँ बस स्वप्न रहीं
अश्क़ न घर छोड़ सके,
जब भी सपना जागा
जाने क्यों टूट गया,
एक वर्ष और गया।
अश्क़ न घर छोड़ सके,
जब भी सपना जागा
जाने क्यों टूट गया,
एक वर्ष और गया।
आश्वासन घट भर पाये
निकले घट सब रीते,
कल कल की आशा में
जीवन है बीत गया,
एक वर्ष और गया।
निकले घट सब रीते,
कल कल की आशा में
जीवन है बीत गया,
एक वर्ष और गया।
फ़िर आश्वासन आयेंगे
सपने कुछ जग जायेंगे,
लेकिन कब ठहरा है
अश्क़ जो ढुलक गया,
एक वर्ष और गया।
सपने कुछ जग जायेंगे,
लेकिन कब ठहरा है
अश्क़ जो ढुलक गया,
एक वर्ष और गया।
जब अभाव ज़ीवन हो
वर्ष बदलते कब हैं,
गुज़र दिन एक गया
समझा एक वर्ष गया,
एक वर्ष और गया।
वर्ष बदलते कब हैं,
गुज़र दिन एक गया
समझा एक वर्ष गया,
एक वर्ष और गया।
...कैलाश शर्मा
आशा , दिलासा और आश्वासन यही तो जीवन की कहानी है और यूँ ही सब बीत भी जाता है .
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteजब अभाव ज़ीवन हो
ReplyDeleteवर्ष बदलते कब हैं,
गुज़र दिन एक गया
समझा एक वर्ष गया,
एक वर्ष और गया।......bahut sahi kaha....aise hi baras beet jate hain
nav varsh ki shubhkaanmaye
बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण.
ReplyDeleteनई पोस्ट : रात बीता हुआ सवेरा है
नई पोस्ट : पीता हूं धो के खुसरबे – शीरीं सखुन के पांव
जब अभाव ज़ीवन हो
ReplyDeleteवर्ष बदलते कब हैं,
गुज़र दिन एक गया
समझा एक वर्ष गया,
एक वर्ष और गया।
बिलकुल सच कहा आपने... अभाव में एक-एक दिन वर्ष से कम नहीं होता... .
गंभीर चिंतन भरी रचना। ....
सबका नव वर्ष मंगलमय हो यही कामना है।
सच है दुख और सुख के अनुभव लिए एक वर्ष और बीत गया सुन्दर रचना...
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteसुंदर भाव की सुंदर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteमन को किसी न किसी तरह से आश्वासन, दिलासा चाहिए ... और मन खुद ही ढूंढ भी लेता है ...
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति ... नव वर्ष की शुभकामनायें ...
मन को ढांढस देते रहना
ReplyDeleteमन की ही तो एक कला है
मन ही मन की भाषा समझे
मन का मन तो मन में पला है।
नव वर्ष मंगलमय हो।
खट्टी-मीठी यादों से भरे साल के गुजरने पर दुख तो होता है पर नया साल कई उमंग और उत्साह के साथ दस्तक देगा ऐसी उम्मीद है। नवर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
ReplyDeleteआदमी मुसाफिर है आता है जाता है और रास्ते में याडे छोड़ जाता है। ठीक इसी तरह वक्त भी अच्छा हो या बुरा आता जाता रहता है। एक उम्मीद टूटी तो दूसरी जग जाती है शायद जीवन इसी का नाम है। इस नए साल से भी कुछ ऐसी ही उम्मीदें हैं। इसी उम्मीद के साथ आपको एवं आपके समस्त परिवार को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteगंभीर चिंतन भरी रचना। ....
ReplyDeleteसबका नव वर्ष मंगलमय हो यही कामना है।
फ़िर आश्वासन आयेंगे
ReplyDeleteसपने कुछ जग जायेंगे,
लेकिन कब ठहरा है
अश्क़ जो ढुलक गया,
एक वर्ष और गया।
खूबसूरत शब्द आदरणीय कैलाश जी
नववर्ष कहने-मनाने की रीति को दर्पण दिखाकर आवश्यक संवेदना सामग्री को बिखराती हिलाती-कुछ महसूस कराती सुन्दर कविता।
ReplyDeleteLajawaab rachna ek saal beet gya chalo iss varsh kuch nya kartein hain...nav vrsh ki dhero mangalkamnayein
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति...नव वर्ष की मंगलकामनाएँ
ReplyDeleteसमय किसकी ज़द में रहा है. बहरहाल नए साल की शुभकामनायें.
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