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Friday, October 27, 2017

चलो पथिक आगे बढ़ जाओ

चलो पथिक आगे बढ़ जाओ,
यहाँ किसी का साथ न होगा।
नियति है तेरी चलना तनहा,
यहाँ कोइ हमराह न होगा।

कुछ पल की रौनक है जीवन,
फिर आगे का सफ़र अकेला।
इक दिन अंत इसे है होना,
हर दिन कहाँ चले है मेला।

कच्चे धागे से सब रिश्ते,
कब तक साथ निभा पायेंगे।
बोझ बढाओ मत कंधों पर,
कितनी दूर उठा पायेंगे।

छांव मिलेगी नहीं राह में,  
मरुथल से है तुम्हें गुज़रना|
अश्क़ रखो अपने संभाल के
अभी बहुत कुछ आगे सहना|      

सक्षम करलो तुम पग अपने,
अभी राह में शूल बहुत हैं।
भ्रमित न हो खुशियों के पल में
अभी तो मंजिल दूर बहुत है।

दुखित न हो पिछली भूलों से,
दे कर गयीं सबक जीवन का।
कौन सदा का साथ यहां है,
चलना यहां अकेला पड़ता।

...©कैलाश शर्मा

Tuesday, January 27, 2015

मुझको दूर बहुत है चलना

थके क़दम कब तक चल पायें, 
मंज़िल नज़र नहीं आती है,
जीवन का उद्देश्य नहीं बस
केवल मील के पत्थर गिनना।

सफ़र हुआ था शुरू ज़हाँ से
कितने साथ मिले राहों में,
कभी काफ़िला साथ साथ था
अब बस सूनापन राहों में।
कैसे जीवन से हार मान लूँ,   
मुझको दूर बहुत है चलना।

बना सीढियां सदा सभी को,
पर मैं खड़ा उसी सीढ़ी पर।
मुड़ कर नहीं किसी ने देखा,
जो पहुंचा ऊपर सीढ़ी पर।
सूरज ढला मगर मैं क्यों ठहरूँ,
मुझे चाँद के साथ है चलना।

जो कुछ बीत गया जीवन में,
उस पर अश्रु बहा क्या होगा।
क्यों अंधियारे से हो समझौता,
जब प्रभात निश्चय ही होगा।
नहीं काफ़िला, मगर रुकूं क्यों,   
सूनापन लगता जब अपना।

...कैलाश शर्मा