**श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं**
ऊधो,
कहाँ
गये मेरे श्याम।
श्याम
बिना कैसे मन लागे, अश्रु बहें अविराम।
कछू न भावत है जग माहीं, बिन सूरत अभिराम।
ज्ञान लगे नीरस इस मन को, ढूंढ रहा मन श्याम।
अब तो आन मिलो हे कान्हा, सूना है बृज धाम।
निकस न पायें प्राण हमारे, बिना दरस के श्याम।
हुआ कठोर तुम्हारा मन क्यों, ऐसे कब थे श्याम।
कछू न भावत है जग माहीं, बिन सूरत अभिराम।
ज्ञान लगे नीरस इस मन को, ढूंढ रहा मन श्याम।
अब तो आन मिलो हे कान्हा, सूना है बृज धाम।
निकस न पायें प्राण हमारे, बिना दरस के श्याम।
हुआ कठोर तुम्हारा मन क्यों, ऐसे कब थे श्याम।
...©कैलाश शर्मा
वाह ! अति सुन्दर।
ReplyDeleteवाह ! अति सुन्दर।
ReplyDeleteवाह अति सुन्दर ... कृष्ण अष्टमी के दिन श्याम चरण वंदन ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-09-2015) को "मुझे चिंता या भीख की आवश्यकता नहीं-मैं शिक्षक हूँ " (चर्चा अंक-2090) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तथा शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteबहुत सुंदर भाव ।
ReplyDeleteदेख संसार की करतूते मौन हैं भगवान ..
ReplyDeleteसामयिक चिंतन प्रस्तुति हेतु आभार !
जन्माष्टमी की हार्दिक मंगलकामनाएं
अब तो आन मिलो हे कान्हा, सूना है बृज धाम।
ReplyDeleteनिकस न पायें प्राण हमारे, बिना दरस के श्याम।
सुंदर वंदना. जन्माष्टमी की शुभकामनायें.
भक्ति रस में ओतप्रोत सुंदर रचना ..
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteकैलाश जी ! आपने तो बिल्कुल सूरदास जैसा लिख दिया है । आपकी भावना प्रणम्य है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे आदरणीय कैलाश शर्मा जी ! श्री कृष्णा जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कैलाश शर्मा जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
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