कुछ दर्द अभी तो सहने हैं,
कुछ अश्क़ अभी तो बहने हैं।
कुछ अश्क़ अभी तो बहने हैं।
मत हार अभी मांगो खुद से,
मरुधर में बोने सपने हैं।
मरुधर में बोने सपने हैं।
बहने दो नयनों से यमुना,
यादों को ताज़ा रखने हैं।
यादों को ताज़ा रखने हैं।
नींद दूर है इन आंखों से,
कैसे सपने अब सजने हैं।
कैसे सपने अब सजने हैं।
बहुत बचा कहने को तुम से,
गर सुन पाओ, वह कहने हैं।
गर सुन पाओ, वह कहने हैं।
कुछ नहीं शिकायत तुमने की,
यह दर्द हमें भी सहने हैं।
यह दर्द हमें भी सहने हैं।
हमने मिलकर जो खाब बुने,
अब दफ़्न अकेले करने हैं।
अब दफ़्न अकेले करने हैं।
...©कैलाश शर्मा
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २३५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteतेरा, तेरह, अंधविश्वास और ब्लॉग-बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आभार..
Deleteवाह लाजवाब उम्दा ।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार...
Deleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteकुछ नहीं शिकायत तुमने की,
ReplyDeleteयह दर्द हमें भी सहने हैं।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब...।
बहुत बचा कहने को तुम से,
ReplyDeleteगर सुन पाओ, वह कहने हैं।
बहुत खूब आदरणीय .....लाजवाब
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/03/113.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमत हार अभी मांगो खुद से,
ReplyDeleteमरुधर में बोने सपने हैं।
बहुत ही सुंदर ,सादर नमस्कार
आपके ब्लॉग पर आकर, मुझे बेहतरीन अनुभूति हुई। आपकी रचनाओं में तथ्य परक कुछ बातें हैं जो बार-बार पाठकों को यहाँ खींच लाएगी। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय । शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteनयी पोस्ट; शाहरुख खान मेरे गाँव आये थे।
बहुत खूब कुछ उम्मीद और आने वाले समय को निमंत्रण देते शेर हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर लिखा है ...
बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,कैलाश जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और बेहतरीन रचना....आप को होली की शुभकामनाएं...
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब
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