बहुत खूब आदरणीय सर | सचमुच जीवन का कडवा सच है जो रचना में पिरोया है आपने |शब्दों की चोट कभी नहीं भूलती ये शब्द कंकड़ हमेशा भीतर कसक देता है | सार्थक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-03-2019) को दोहे "पनप रहा षडयन्त्र" (चर्चा अंक-3289) पर भी होगी। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। -- सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मार्मिक रचना..किंतु उस गहराई के भी पार एक गहराई है..जहाँ तक नहीं पहुँच पाता कोई भी कंकड़..जब तक उसकी सुरक्षा नहीं मिली, आज नहीं कल, इसके नहीं उसके..कंकड़ लगते ही रहेंगे..
सही कहा आपने, शब्दों का कंकड़ फेंकनेवाले इस बात का अनुमान भी नहीं लगा सकते कि कंकड़ कितनी गहराई तक पहुँचा और एक शांत मन को कितनी अशांति दे गया। सारगर्भित रचना।
बहुत खूब आदरणीय सर | सचमुच जीवन का कडवा सच है जो रचना में पिरोया है आपने |शब्दों की चोट कभी नहीं भूलती ये शब्द कंकड़ हमेशा भीतर कसक देता है | सार्थक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-03-2019) को दोहे "पनप रहा षडयन्त्र" (चर्चा अंक-3289) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteसच कहा है ... चोट कहाँ लगती है शब्दों से ये कोई नहीं जानता ... कई बार तो उम्र भर घाव नहीं भरते ...
ReplyDeleteगहरा एहसास लिए रचना ...
आभार...
ReplyDeleteमार्मिक रचना..किंतु उस गहराई के भी पार एक गहराई है..जहाँ तक नहीं पहुँच पाता कोई भी कंकड़..जब तक उसकी सुरक्षा नहीं मिली, आज नहीं कल, इसके नहीं उसके..कंकड़ लगते ही रहेंगे..
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा है...उस सुरक्षा कवच के बाद असर नहीं होता किसी कंकड़ का...आभार
Deleteएक शब्द कंकड़ अंतस तक अशान्ति फैला देता है...और उस कर्कश शब्द की चोट अंतर्मन को घायल कर देती है...बहुत ही सुन्दर ,सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteवाह!!!
सही कहा आपने, शब्दों का कंकड़ फेंकनेवाले इस बात का अनुमान भी नहीं लगा सकते कि कंकड़ कितनी गहराई तक पहुँचा और एक शांत मन को कितनी अशांति दे गया।
ReplyDeleteसारगर्भित रचना।
शब्दों की मार अंतस तक घायल करती है
ReplyDeleteबहुत ही शानदार और सार्थक अभिव्यक्ति....
वाह ..... गहराई लिए हुए गहराई की बात
ReplyDeleteगहरा एहसास बहुत ही शानदार
ReplyDeletethanks from
ReplyDeletemi note 4 battery website