Wednesday, March 27, 2019

शब्दों की चोट


बहुत आसान है फेंकना 
एक कंकड़ शब्द का 
और कर देना पैदा
लहरें अशांति की
अंतस के शांत जल में।

बिखरी हुई अशांत लहरें
यद्यपि हो जातीं शांत 
समय के साथ,
लेकिन कितना कठिन है
लगाना अनुमान गहराई का
जहाँ देकर गया चोट
वह फेंका हुआ कंकड़ झील में।

...©कैलाश शर्मा

13 comments:

  1. बहुत खूब आदरणीय सर | सचमुच जीवन का कडवा सच है जो रचना में पिरोया है आपने |शब्दों की चोट कभी नहीं भूलती ये शब्द कंकड़ हमेशा भीतर कसक देता है | सार्थक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-03-2019) को दोहे "पनप रहा षडयन्त्र" (चर्चा अंक-3289) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सच कहा है ... चोट कहाँ लगती है शब्दों से ये कोई नहीं जानता ... कई बार तो उम्र भर घाव नहीं भरते ...
    गहरा एहसास लिए रचना ...

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  4. मार्मिक रचना..किंतु उस गहराई के भी पार एक गहराई है..जहाँ तक नहीं पहुँच पाता कोई भी कंकड़..जब तक उसकी सुरक्षा नहीं मिली, आज नहीं कल, इसके नहीं उसके..कंकड़ लगते ही रहेंगे..

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    1. बिल्कुल सच कहा है...उस सुरक्षा कवच के बाद असर नहीं होता किसी कंकड़ का...आभार

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  5. एक शब्द कंकड़ अंतस तक अशान्ति फैला देता है...और उस कर्कश शब्द की चोट अंतर्मन को घायल कर देती है...बहुत ही सुन्दर ,सार्थक अभिव्यक्ति...
    वाह!!!

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  6. सही कहा आपने, शब्दों का कंकड़ फेंकनेवाले इस बात का अनुमान भी नहीं लगा सकते कि कंकड़ कितनी गहराई तक पहुँचा और एक शांत मन को कितनी अशांति दे गया।
    सारगर्भित रचना।

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  7. शब्दों की मार अंतस तक घायल करती है
    बहुत ही शानदार और सार्थक अभिव्यक्ति....

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  8. वाह ..... गहराई लिए हुए गहराई की बात

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  9. गहरा एहसास बहुत ही शानदार

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