छा गयी मन में उदासी,
भाव क्यों मृत हो गये.
लेखनी भी थक गयी है,
शब्द क्यों गुम हो गये.
अश्क कोरों पर थमे हैं,
नयन देते न विदाई.
नेह चुकता जा रहा पर
आस की लौ बुझ न पायी.
देहरी थक कर खड़ी है,
पर कदम गुम हो गये.
चांदनी सी शुभ्र चादर
एक सलवट को तरसती.
मिलन का वादा नहीं था
आँख पर पथ से न हटती.
मौन हो पाया मुखर न,
पर बयन क्यों खो गये.
मोड़ हमने खुद चुना था
राह सीधी छोड़ कर.
आज पीछे झांकते जब
कोई आता न नज़र.
दोष न प्रारब्ध का था,
हम ही खुद में खो गये.
कैलाश शर्मा
भाव क्यों मृत हो गये.
लेखनी भी थक गयी है,
शब्द क्यों गुम हो गये.
अश्क कोरों पर थमे हैं,
नयन देते न विदाई.
नेह चुकता जा रहा पर
आस की लौ बुझ न पायी.
देहरी थक कर खड़ी है,
पर कदम गुम हो गये.
चांदनी सी शुभ्र चादर
एक सलवट को तरसती.
मिलन का वादा नहीं था
आँख पर पथ से न हटती.
मौन हो पाया मुखर न,
पर बयन क्यों खो गये.
मोड़ हमने खुद चुना था
राह सीधी छोड़ कर.
आज पीछे झांकते जब
कोई आता न नज़र.
दोष न प्रारब्ध का था,
हम ही खुद में खो गये.
बहुत दिनों बाद कुछ अच्छा पढने को मिला |
ReplyDeleteमोड़ हमने खुद चुना था
ReplyDeleteराह सीधी छोड़ कर.
आज पीछे झांकते जब
कोई आता न नज़र....
जब राह स्वयं ही चुनी है तो किसी की प्रतीक्षा भी क्यों हो ...
बहुत लाजवाब काहव है पर आज कुछ उदासी की छाया लिए है ...
बहुत ही खूबसूरती से सजी हुई बेहतरीन ग़ज़ल.
ReplyDeleteमोड़ हमने खुद चुना था
ReplyDeleteराह सीधी छोड़ कर.
आज पीछे झांकते जब
कोई आता न नज़र.,,,
बहुत बढ़िया प्रस्तुती, आपकी रचना अच्छी लगी ,,,,,बधाई
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
अच्छी रचना
ReplyDeleteमोड़ हमने खुद चुना था
ReplyDeleteराह सीधी छोड़ कर.
आज पीछे झांकते जब
कोई आता न नज़र... yahi hai moh ka ant
वाह: कैलाश जी बहुत खुबसूरत रचना..बधाई
ReplyDeleteमौन हो पाया मुखर न,
ReplyDeleteपर बयन क्यों खो गये.bahut sundar ..
bahut sundar .......jab ham khud hi mod mud jaten to bhi mud kar dekhne ko jee to chahta hai......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगी पोस्ट।
ReplyDeleteदेहरी थक कर खड़ी है,
ReplyDeleteपर कदम गुम हो गये.
भावमय करते शब्द ...
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २४/७/१२ मंगल वार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं
ReplyDeleteआभार..
Deleteवाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
बेहतरीन भावाव्यक्ति...
सादर
अनु
बहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
bahoot khub..dosh na prarabdh ka hai
ReplyDeletehum hi khud mai kho gaye.,
waah. ,kitni saralta hai in shabdo mai.
padhkar man udas ho k bhi fir se kuch dhundne lagta hai
अश्क कोरों पर थमे हैं,
ReplyDeleteनयन देते न विदाई.
नेह चुकता जा रहा पर
आस की लौ बुझ न पायी.
बहुत भावपूर्ण रचना !!!
बहुत बढ़िया प्रस्तुती, रचना अच्छी लगी ,बधाई...........
ReplyDeletekuchh apne se man ki halat kah di. bahut jabardast rachna.
ReplyDeleteAapke shabd to gum nahee hue hain!
ReplyDeleteशब्दों का गुम होना एक विकट परिस्थिति है.आपने इसे अपने शब्दों से बयान की है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन भावाभिव्यक्ति...
:-)
देहरी थक कर खड़ी है,
ReplyDeleteपर कदम गुम हो गये
Great Lines.. Loved them.
wah bahut sunder bhav......
ReplyDeleteआस रहेगी, शब्द राह तकते ही होंगे..
ReplyDeleteबेहतरीन भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteदोष न प्रारब्ध का था,
ReplyDeleteहम ही खुद में खो गये.
कैलाश जी यही कुछ मेरे साथ भी हो रहा है .... बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
सार्थक बात कही है आपने .आभार
ReplyDeleteमौन हो पाया मुखर न,
ReplyDeleteपर बयन क्यों खो गये.
बढ़िया नवगीत
उदास करती बड़ी उत्कृष्ट प्रस्तुति शब्दों को बैसाखी लगे तो आगे क्या हो ?
ReplyDeleteअश्क कोरों पर थमे हैं,
ReplyDeleteनयन देते न विदाई.
नेह चुकता जा रहा पर
आस की लौ बुझ न पायी.
.. बहुत सुन्दर...
शब्द निकल तो रहें हैं
ReplyDeleteखूबसूरत से बहुत
कहाँ गुम हुऎ हैं
इतना कुछ कह गये आप
फिर ऎसा कैसे कह रहे हैं!!!
जब मोड़ स्वयं चुना तो प्रारब्ध का दोष क्या !
ReplyDeleteकभी यह भी सही लगता है !
बहुत बढ़िया भाव ।
ReplyDeleteआकर्षक प्रस्तुति ।।
बहुत भावपूर्ण दिल से निकली हुई रचना...
ReplyDeleteमोड़ हमने खुद चुना था
ReplyDeleteराह सीधी छोड़ कर.
आज पीछे झांकते जब
कोई आता न नज़र.
दोष न प्रारब्ध का था,
हम ही खुद में खो गये.वाह सर बहुत खूब सार्थक भावभिव्यक्ति...
बहुत उम्दा जी
ReplyDeleteवाह बेहद भावप्रवण रचना
ReplyDeleteSAHAJ BHAVABHIKTI KE LIYE BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA KAILASH JI
ReplyDeleteSAHAJ BHAVABHIVYAKTI KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
ReplyDeleteछा गयी मन में उदासी,
ReplyDeleteभाव क्यों मृत हो गये.
लेखनी भी थक गयी है,
शब्द क्यों गुम हो गये
अनुभूतियों की चादर से आच्छादित कर देती यह रचना अंतस को .गहरी विछोह वेदना से उपजी पीर लिए है रचना निस्संग रूक्ष परिवेश से रुष्ट भी .
छा गयी मन में उदासी,
ReplyDeleteभाव क्यों मृत हो गये.
लेखनी भी थक गयी है,
शब्द क्यों गुम हो गये.....सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
bhawpoorna wa adwitiya rachana
ReplyDeleteहम ही खुद मे गुम हो गये --- सुन्दर रचना। बधाई।
ReplyDeleteशब्द-शब्द बहुत कुछ कह रहा है..जब गुम हो तो और कितना कहेगा..
ReplyDeleteबहुत गहन भाव...
ReplyDeleteदोष न प्रारब्ध का था,
हम ही खुद में खो गये.
भावपूर्ण रचना के लिए बधाई.