Friday, October 15, 2010

हार कैसे मान लूं ....

            जानता हूँ आंधी में जलाना दीप व्यर्थ है,
            रिसती हो नाव तो सागर न पार होता है.
            हार कैसे मान लूं , संघर्ष ही किये  बिना,
            माना बिना सिक्के के व्यापार नहीं होता है.


पैर तो उठा, शूल  चुभने  दे  पाँव  में,
बिना कांटे के तो सिर्फ राजपथ होता है.
धूप में निकल, कुछ आने दे स्वेद बिंदु,
फिर भी न मिले तो नसीब वह होता है.


            चाँद दिखलाये राह, सबका  नसीब  कहाँ,
            एक तारे का भी क्या सहारा नहीं होता है.
            आंधी है तो क्या?ओट हाथ की ज़लाले दीप,
            कुछ क्षण का ही क्या उजाला नहीं होता है.



23 comments:

  1. हार माननी भी नही चाहिये……………बेहद सुन्दर रचना।

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  2. बहुत सुन्दर... हिम्मत-ऐ मर्दा मर्द-ऐ -खुदा |
    और हिम्मत से काम करने वालो को ही खुदा साथ देता है.. सोच में हिम्मत जगाने वाली रचना

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  3. आंधी है तो क्या?ओट हाथ की ज़लाले दीप,
    कुछ क्षण का ही क्या उजाला नहीं होता है.

    बहुत सुन्दर रचना.

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  4. बेहद सुन्दर रचना।

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  5. @उस्ताद जी
    @वन्दना जी
    @दीप्ति जी
    @डॉ.नूतन जी
    @वर्मा जी
    आपके प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद...आभार..

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  6. पैर तो उठा, शूल चुभने दे पाँव में,
    बिना कांटे के तो सिर्फ राजपथ होता है.
    धूप में निकल, कुछ आने दे स्वेद बिंदु,
    फिर भी न मिले तो नसीब वह होता है.

    बहुत खूब ....!!

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  7. बड़ी प्रेरणादायी और सकारात्मक रचना है....हौसला देने वाली पंक्तियाँ.....आभार

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  8. .

    हार कैसे मान लूं , संघर्ष ही किये बिना,...

    This should be the spirit !

    .

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  9. वाह बहुत उत्साहवर्धन करने वाली रचना के लिए आभार.

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  10. बहुत सशक्त रचना ....आभार

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  11. @Patali-The-Village
    @हरकीरत जी
    @डॉ.मोनिका जी
    @डॉ.दिव्या जी
    @अनामिका जी
    @रानी जी
    आपकी प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद...आभार.

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  12. जिंदगी तो तमाम पराजयों के पार जाने का नाम है. समूची रचना इस प्रेरणादायक संदेश को बेहद खूबसूरती से उकेरती है. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  13. .

    ....हार कैसे मान लूं , संघर्ष ही किये बिना,....

    जितनी बार पढ़ती हूँ, ये पक्ति बार-बार मेरा ध्यान आकृष्ट करती है। बहुत ही प्रेरक।

    .

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  14. मन में किये संकल्प को
    निभाते रहने की सीख सिखाती हुई
    यह अनुपम गीतिका
    सच में मन-भावन है
    बधाई .

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  15. धूप में निकल, कुछ आने दे स्वेद बिंदु,
    फिर भी न मिले तो नसीब वह होता है.

    नसीब की ऐसी परिभाषा दुनिया के किसी किताब में नहीं मिलेगी.बहुत बड़ी बात कैलाश जी.

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  16. हिम्मत बढ़ाने वाली रचना ।

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  17. अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं

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  18. कल 01/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  19. बहुत सुन्दर रचना...

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  20. संघर्ष केलिए प्रेरणा देती उत्तम रचना !
    : रिश्तेदार सारे !

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  21. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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