Monday, April 11, 2011

सपने

पाने को छुटकारा 
मोड़ दिया था रुख
रेतीले मरुधर में,
पर कहाँ सूख पायी
तेज़ धूप में भी
सपनों की नदी,
और उग आयी
छोटी छोटी घास
फिर से किनारों पर.

अब तो 
लगता है ड़र 
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.

53 comments:

  1. सपनो की नदी निरंतर बहती रहती है नित नए सपने ले कर ..अच्छी प्रसतुति

    ReplyDelete
  2. अब तो
    लगता है ड़र
    इस नदी के अस्तित्व से,
    न इसको तैर कर पार कर पाता,
    और न यह डुबा पाती
    मेरे वज़ूद को.

    बहुत अच्छी प्रस्तुति.. सपनो की नदी जो कभी सूख ही नहीं पाती...

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया लिखा है सर!


    सादर

    ReplyDelete
  4. भावों का शबों के साथ तैरना अच्छा लगा

    ReplyDelete
  5. सपने

    पाने को छुटकारा
    मोड़ दिया था रुख
    रेतीले मरुधर में,
    पर कहाँ सूख पायी
    तेज़ धूप में भी
    सपनों की नदी,
    और उग आयी
    छोटी छोटी घास
    फिर से किनारों पर.
    अब तो
    लगता है ड़र
    इस नदी के अस्तित्व से,
    न इसको तैर कर पार कर पाता,
    और न यह डुबा पाती
    मेरे वज़ूद को.

    भावनाओ के पंख लगाए उडती सी लगती है आपकी ये कविता, बहुत बधाई.

    ReplyDelete
  6. पर कहाँ सूख पायी
    तेज़ धूप में भी
    सपनों की नदी
    और उग आयी
    छोटी छोटी घास
    फिर से किनारों पर

    आपकी कविताओं में अनुभव के मोती झिलमिलाते हैं।
    गहन भाव को संप्रेषित करती सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  7. अब तो
    लगता है ड़र
    इस नदी के अस्तित्व से,
    न इसको तैर कर पार कर पाता,
    और न यह डुबा पाती
    मेरे वज़ूद को.
    बहुत बढ़िया.....

    ReplyDelete
  8. पर कहाँ सूख पायी
    तेज़ धूप में भी
    सपनों की नदी,
    और उग आयी
    छोटी छोटी घास
    फिर से किनारों पर.
    Kitna hee maro,sapne kambakht martehee nahee!

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर भावों को पिरोया है आपने

    ReplyDelete
  10. गहन भाव को संप्रेषित करती सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  11. यही जद्दोजहद तो जीवन है।

    ReplyDelete
  12. सपने हमें प्रेरित करते हैं मुबारक हो आपको सपनों की नदी !

    ReplyDelete
  13. Gambir, sochne yogya rachana..

    ReplyDelete
  14. sapno ki nadi hi jeene ka aur aage badhne ka marg prashast karti hai.

    ReplyDelete
  15. जीवन की जद्दोजहद की भावपूर्ण प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  16. अब तो
    लगता है ड़र
    इस नदी के अस्तित्व से,
    न इसको तैर कर पार कर पाता,
    और न यह डुबा पाती
    मेरे वज़ूद को.

    गहन अभिव्यक्ति..... बेहतरीन रचना ...

    ReplyDelete
  17. bhavnapradhan rachna,bahut hi sunder

    ReplyDelete
  18. आपके ब्लॉग पर काव्य का सच्चा रसास्वादन होता है हृदय से बधाई आपकी साहित्य सेवा के लिए

    ReplyDelete
  19. गहन भाव संप्रेषित करतीं बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ ! बधाई एवं शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  20. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

    ReplyDelete
  21. आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,

    ReplyDelete
  22. सपने तो अपने होते है . सच हो ना हो, फिर भी गुनने होते है .

    ReplyDelete
  23. सपनों की नदी कभी नहीं सूखती ! बहुत अच्छी रचना !

    ReplyDelete
  24. अब तो
    लगता है ड़र
    इस नदी के अस्तित्व से,
    न इसको तैर कर पार कर पाता,
    और न यह डुबा पाती
    मेरे वज़ूद को.
    bahut badhiyaa

    ReplyDelete
  25. सपनों की नदी में डुबते उतराते ही जीवन कटता है, अच्‍छी सशक्‍त रचना।

    ReplyDelete
  26. मुझे तो डुबा दिया आपने इस नदी में.

    ReplyDelete
  27. पर कहाँ सूख पायी
    तेज़ धूप में भी
    सपनों की नदी
    और उग आयी
    छोटी छोटी घास
    फिर से किनारों पर


    बहुत ही सुन्दर भाव, आभार

    ReplyDelete
  28. अब तो
    लगता है ड़र
    इस नदी के अस्तित्व से,
    न इसको तैर कर पार कर पाता,
    और न यह डुबा पाती
    मेरे वज़ूद को.
    बहुत सुंदर कविता /संदेश देती कविता /बधाई सर

    ReplyDelete
  29. shrma sahab
    namskar
    aapke darshanik andaj ka kayal main bas itana hi
    kah sakta hun ki vichrmayi kavita atmavlokan hetu kafi hai .sundar shilp. sadhuvad .

    ReplyDelete
  30. गहन भावमय करते शब्‍द ।

    ReplyDelete
  31. अपनी भूमिका निर्वहन करने में सक्षम बहुत सशक्त रचना!

    ReplyDelete
  32. बहुत सुन्दर, जीवन-दर्शन कराती कविता.

    ReplyDelete
  33. बहुत सुन्दर...

    अब तो
    लगता है ड़र
    इस नदी के अस्तित्व से,
    न इसको तैर कर पार कर पाता,
    और न यह डुबा पाती
    मेरे वज़ूद को.
    मनोवैज्ञानिक रचना.....दर्शन से जोड़ती रचना

    ReplyDelete
  34. सपनों की नदी अति दुरूह है.चंद शब्दों से ही गहराई में उतर जाते हैं आप. सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
    राम-जन्म के शुभ उपलक्ष पर मेरे ब्लॉग पर आपको सादर निमंत्रण है.
    कृपया,अपने पावन विचारों से अवगत कराएँ.

    ReplyDelete
  35. जीवन इसी का नाम है यह संघर्ष तो सदा चलता रहता है .....आपका आभार

    ReplyDelete
  36. aadarniy sir
    kya khoob likha hai aapne bahut abhut shandar avam gahan bhvon ki sampurnta liye aapki is prastuti ke liye
    hardik abhinandan avam dhanyvaad
    poonam

    ReplyDelete
  37. शर्मा जी, आज दुबारापढी कविता और बिना तारीफ किए रहा नहीं गया। सचमुच बहुत खूब लिखते हैं आप।

    ---------
    भगवान के अवतारों से बचिए!
    क्‍या सचिन को भारत रत्‍न मिलना चाहिए?

    ReplyDelete
  38. आ.शर्मा जी
    आप यूँ न भूलियें हमें
    रामजन्म पर आपको सादर बुलावा है
    कृपया,आ ही जाईये.
    रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन-१ मेरी नई पोस्ट है.

    ReplyDelete
  39. अब तो
    लगता है ड़र
    इस नदी के अस्तित्व से,
    न इसको तैर कर पार कर पाता,
    और न यह डुबा पाती
    मेरे वज़ूद को.
    बहुत सुंदर कविता
    सचमुच बहुत खूब लिखते हैं आप.
    बहुत बहुत धन्यवाद आपका

    ReplyDelete
  40. अब तो
    लगता है ड़र
    इस नदी के अस्तित्व से,
    न इसको तैर कर पार कर पाता,
    और न यह डुबा पाती
    मेरे वज़ूद को.
    bahut sundar rachna hai aapki

    ReplyDelete
  41. अब तो
    लगता है ड़र
    इस नदी के अस्तित्व से,
    न इसको तैर कर पार कर पाता,
    और न यह डुबा पाती
    मेरे वज़ूद को.

    :-) gehri panktiyan!

    ReplyDelete
  42. बहुत खुबसूरत रचना अतीत की यादों को लेकर चलती |

    ReplyDelete
  43. चित्ताकर्षक लगी आपकी रचना .जीवन की जद्दोजहद को संप्रेषित करती सुंदर रचना।
    .आभार

    ReplyDelete
  44. इतनी सुंदर कविता के लिये बधाई!
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  45. बहुत गहरे भाव लिए हुए अच्छी कविता.

    ReplyDelete
  46. एक दम जीवंत अभिव्यक्ति ! शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  47. जीवन की जद्दोजहद को संप्रेषित करती सुंदर रचना।

    ReplyDelete