पाने को छुटकारा मोड़ दिया था रुख रेतीले मरुधर में, पर कहाँ सूख पायी तेज़ धूप में भी सपनों की नदी, और उग आयी छोटी छोटी घास फिर से किनारों पर. अब तो लगता है ड़र इस नदी के अस्तित्व से, न इसको तैर कर पार कर पाता, और न यह डुबा पाती मेरे वज़ूद को.
भावनाओ के पंख लगाए उडती सी लगती है आपकी ये कविता, बहुत बधाई.
shrma sahab namskar aapke darshanik andaj ka kayal main bas itana hi kah sakta hun ki vichrmayi kavita atmavlokan hetu kafi hai .sundar shilp. sadhuvad .
सपनों की नदी अति दुरूह है.चंद शब्दों से ही गहराई में उतर जाते हैं आप. सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार. राम-जन्म के शुभ उपलक्ष पर मेरे ब्लॉग पर आपको सादर निमंत्रण है. कृपया,अपने पावन विचारों से अवगत कराएँ.
अब तो लगता है ड़र इस नदी के अस्तित्व से, न इसको तैर कर पार कर पाता, और न यह डुबा पाती मेरे वज़ूद को. बहुत सुंदर कविता सचमुच बहुत खूब लिखते हैं आप. बहुत बहुत धन्यवाद आपका
वाह क्या बात है !
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteसपनो की नदी निरंतर बहती रहती है नित नए सपने ले कर ..अच्छी प्रसतुति
ReplyDeleteअब तो
ReplyDeleteलगता है ड़र
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.
बहुत अच्छी प्रस्तुति.. सपनो की नदी जो कभी सूख ही नहीं पाती...
बहुत बढ़िया लिखा है सर!
ReplyDeleteसादर
भावों का शबों के साथ तैरना अच्छा लगा
ReplyDeleteसपने
ReplyDeleteपाने को छुटकारा
मोड़ दिया था रुख
रेतीले मरुधर में,
पर कहाँ सूख पायी
तेज़ धूप में भी
सपनों की नदी,
और उग आयी
छोटी छोटी घास
फिर से किनारों पर.
अब तो
लगता है ड़र
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.
भावनाओ के पंख लगाए उडती सी लगती है आपकी ये कविता, बहुत बधाई.
पर कहाँ सूख पायी
ReplyDeleteतेज़ धूप में भी
सपनों की नदी
और उग आयी
छोटी छोटी घास
फिर से किनारों पर
आपकी कविताओं में अनुभव के मोती झिलमिलाते हैं।
गहन भाव को संप्रेषित करती सुंदर रचना।
अब तो
ReplyDeleteलगता है ड़र
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.
बहुत बढ़िया.....
पर कहाँ सूख पायी
ReplyDeleteतेज़ धूप में भी
सपनों की नदी,
और उग आयी
छोटी छोटी घास
फिर से किनारों पर.
Kitna hee maro,sapne kambakht martehee nahee!
बहुत सुन्दर भावों को पिरोया है आपने
ReplyDeleteगहन भाव को संप्रेषित करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteयही जद्दोजहद तो जीवन है।
ReplyDeleteसपने हमें प्रेरित करते हैं मुबारक हो आपको सपनों की नदी !
ReplyDeleteGambir, sochne yogya rachana..
ReplyDeletesapno ki nadi hi jeene ka aur aage badhne ka marg prashast karti hai.
ReplyDeleteजीवन की जद्दोजहद की भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteअब तो
ReplyDeleteलगता है ड़र
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.
गहन अभिव्यक्ति..... बेहतरीन रचना ...
bhavnapradhan rachna,bahut hi sunder
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर काव्य का सच्चा रसास्वादन होता है हृदय से बधाई आपकी साहित्य सेवा के लिए
ReplyDeleteगहन भाव संप्रेषित करतीं बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ReplyDeleteआपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,
ReplyDeleteसपने तो अपने होते है . सच हो ना हो, फिर भी गुनने होते है .
ReplyDeleteबेहतरीन!!
ReplyDeleteसपनों की नदी कभी नहीं सूखती ! बहुत अच्छी रचना !
ReplyDeleteअब तो
ReplyDeleteलगता है ड़र
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.
bahut badhiyaa
सपनों की नदी में डुबते उतराते ही जीवन कटता है, अच्छी सशक्त रचना।
ReplyDeleteमुझे तो डुबा दिया आपने इस नदी में.
ReplyDeleteपर कहाँ सूख पायी
ReplyDeleteतेज़ धूप में भी
सपनों की नदी
और उग आयी
छोटी छोटी घास
फिर से किनारों पर
बहुत ही सुन्दर भाव, आभार
अब तो
ReplyDeleteलगता है ड़र
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.
बहुत सुंदर कविता /संदेश देती कविता /बधाई सर
shrma sahab
ReplyDeletenamskar
aapke darshanik andaj ka kayal main bas itana hi
kah sakta hun ki vichrmayi kavita atmavlokan hetu kafi hai .sundar shilp. sadhuvad .
शर्मा जी, बहुत गहरी बात कह दी आपने इसकविता में। बधाई।
ReplyDelete............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
गहन भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteअपनी भूमिका निर्वहन करने में सक्षम बहुत सशक्त रचना!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, जीवन-दर्शन कराती कविता.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteअब तो
लगता है ड़र
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.
मनोवैज्ञानिक रचना.....दर्शन से जोड़ती रचना
सपनों की नदी अति दुरूह है.चंद शब्दों से ही गहराई में उतर जाते हैं आप. सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteराम-जन्म के शुभ उपलक्ष पर मेरे ब्लॉग पर आपको सादर निमंत्रण है.
कृपया,अपने पावन विचारों से अवगत कराएँ.
जीवन इसी का नाम है यह संघर्ष तो सदा चलता रहता है .....आपका आभार
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeletekya khoob likha hai aapne bahut abhut shandar avam gahan bhvon ki sampurnta liye aapki is prastuti ke liye
hardik abhinandan avam dhanyvaad
poonam
शर्मा जी, आज दुबारापढी कविता और बिना तारीफ किए रहा नहीं गया। सचमुच बहुत खूब लिखते हैं आप।
ReplyDelete---------
भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
आ.शर्मा जी
ReplyDeleteआप यूँ न भूलियें हमें
रामजन्म पर आपको सादर बुलावा है
कृपया,आ ही जाईये.
रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन-१ मेरी नई पोस्ट है.
प्रभावकारी
ReplyDeleteबस इतनी सी .....
अब तो
ReplyDeleteलगता है ड़र
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.
बहुत सुंदर कविता
सचमुच बहुत खूब लिखते हैं आप.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
अब तो
ReplyDeleteलगता है ड़र
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.
bahut sundar rachna hai aapki
अब तो
ReplyDeleteलगता है ड़र
इस नदी के अस्तित्व से,
न इसको तैर कर पार कर पाता,
और न यह डुबा पाती
मेरे वज़ूद को.
:-) gehri panktiyan!
बहुत खुबसूरत रचना अतीत की यादों को लेकर चलती |
ReplyDeleteचित्ताकर्षक लगी आपकी रचना .जीवन की जद्दोजहद को संप्रेषित करती सुंदर रचना।
ReplyDelete.आभार
इतनी सुंदर कविता के लिये बधाई!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत गहरे भाव लिए हुए अच्छी कविता.
ReplyDeleteएक दम जीवंत अभिव्यक्ति ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteजीवन की जद्दोजहद को संप्रेषित करती सुंदर रचना।
ReplyDelete