मत मांगो मेरी आँखों के आँसू,
प्यासा मन प्यासा रह जायेगा.कितने सारे स्वप्न संजोये साथ तुम्हारे,
कितने इन्द्रधनुष देखे थे नदी किनारे.
अंधकार ही सिर्फ़ धरोहर आज तुम्हारी,
कैसे सूरज को अर्पित कर दूं मैं अंधियारे.
मत छीनो मुझ से मेरे मन का सूनापन,
खुशियों का कोलाहल ये न सह पायेगा.
साथ निभाने का वादा मैंने कब तुम से चाहा,
पर मेरी आँखों को सपना क्यों दिखलाया.
नहीं दोष दे पाता मन क्यों तुम्हें आज भी,
शायद मेरा ही भ्रम था जिसने मन भटकाया.
ढूँढ लिया है उर ने तुमको इन तारों में,
देख तुम्हें यह भ्रमित कहीं फिर हो जायेगा.
लहर हवाले कर दी अपनी जीवन नैया,
नहीं कोई पतवार चाहिये, नहीं खिवैया.
आँसू के सागर से अब तो प्यार हो गया,
नहीं चाह कोई तट पर यह पहुंचे नैया.
अब फिर खड़ा करो न मुझको दोराहे पर,
शायद कोई राह न अब उर चुन पायेगा.
अब फिर खड़ा करो न मुझको दोराहे पर,
ReplyDeleteशायद कोई राह न अब उर चुन पायेगा.
बहुत बढ़िया बात कही है सर!
सादर
वाह महाशय! कमाल की पंक्तियाँ हैँ।
ReplyDeleteनहीं दोष दे पाता मन क्यों तुम्हें आज भी,
ReplyDeleteशायद मेरा ही भ्रम था जिसने मन भटकाया.
बहुत - बहुत सुन्दर रचना... हर पंक्ति लाजवाब, बेमिसाल...
लहर हवाले कर दी अपनी जीवन नैया,
ReplyDeleteनहीं कोई पतवार चाहिये, नहीं खिवैया ।
आँसू के सागर से अब तो प्यार हो गया,
नहीं चाह कोई तट पर यह पहुंचे नैया ।
सुख से विमोह, दुख से अपनत्व...कविता की भावभूमि से यही स्वर प्रस्फुटित हो रहा है।
इस अनुभूति से सभी का सामना कभी न कभी होता ही है।
भावनामय गीत ने मन को प्रभावित किया।
कितने सारे स्वप्न संजोये साथ तुम्हारे,
ReplyDeleteकितने इन्द्रधनुष देखे थे नदी किनारे.
अंधकार ही सिर्फ़ धरोहर आज तुम्हारी,
कैसे सूरज को अर्पित कर दूं मैं अंधियारे....
Bahut hi bhaavna pradhaan geet hai ... aaj ke samay ka .. ekaaki man ka bhaav hai ...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
साथ निबाने का वादा कब मैंने तुमसे चाहा...
ReplyDeleteमन की व्यथा का बेहतरीन चित्रण ।
priy sharma sahab ,
ReplyDeleterachana karunik bipannata ko dur karti huyi antarman ko udwelit karti hai --
मत मांगो मेरी आँखों के आँसू,
प्यासा मन प्यासा रह जायेगा.--------
utkrisht srijan ke liye hriday se dhanyvad .
आदरणीय कैलाश शर्मा जी..
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
साथ निभाने का वादा मैंने कब तुम से चाहा,
ReplyDeleteपर मेरी आँखों को सपना क्यों दिखलाया.
नहीं दोष दे पाता मन क्यों तुम्हें आज भी,
शायद मेरा ही भ्रम था जिसने मन भटकाया.
ऐसे हालत में अक्सर यही होता है ..लेकिन व्यक्ति वास्तविकता को समझते हुए भी अनजान बना रहता है ....आपने बहुत मार्मिकता से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है ...शुक्रिया
आँसू के सागर से अब तो प्यार हो गया,
ReplyDeleteनहीं चाह कोई तट पर यह पहुंचे नैया ।
यह पंक्तियाँ दिल को छू गयीं बहुत अच्छी सुन्दर रचना, बधाई.....
लहर हवाले कर दी अपनी जीवन नैया,
ReplyDeleteनहीं कोई पतवार चाहिये, नहीं खिवैया.
आँसू के सागर से अब तो प्यार हो गया,
नहीं चाह कोई तट पर यह पहुंचे नैया.
जीवन का निश्चिन्त विचरण।
लहर हवाले कर दी अपनी जीवन नैया,
ReplyDeleteनहीं कोई पतवार चाहिये, नहीं खिवैया.
आँसू के सागर से अब तो प्यार हो गया,
नहीं चाह कोई तट पर यह पहुंचे नैया
वाह ! कैलाश जी ,समर्पण का अहसास दिलाती शानदार भावपूर्ण अभिव्यक्ति की है आपने.यूँ लगता है भाव सागर में मानो बिलकुल डूब ही गएँ हैं आप.इसीलिए हमार दिल भी आंदोलित हो रहा है आपकी इस अनुपम प्रस्तुति से.
मेरे ब्लॉग पर आयें ,रामजन्म पर दूसरी पोस्ट जारी कर दी है.
मन की व्यथा का बेहतरीन चित्रण|बहुत अच्छी सुन्दर रचना|
ReplyDeleteसाथ निभाने का वादा मैंने कब तुम से चाहा,
ReplyDeleteपर मेरी आँखों को सपना क्यों दिखलाया.
नहीं दोष दे पाता मन क्यों तुम्हें आज भी,
शायद मेरा ही भ्रम था जिसने मन भटकाया.
यही तो प्यार है। प्रेम के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति। शानदार।
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ReplyDeleteअब फिर खड़ा करो न मुझको दोराहे पर,
ReplyDeleteशायद कोई राह न अब उर चुन पायेगा.
extremely sentimental......
कितने सारे स्वप्न संजोये साथ तुम्हारे,
ReplyDeleteकितने इन्द्रधनुष देखे थे नदी किनारे.
अंधकार ही सिर्फ़ धरोहर आज तुम्हारी,
कैसे सूरज को अर्पित कर दूं मैं अंधियारे....
प्रेम के भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति को प्रस्तुत किया है आपने इस गीत के माध्यम से. बहुत अच्छी सुन्दर रचना. बधाई.
कितने सारे स्वप्न संजोये साथ तुम्हारे,
ReplyDeleteकितने इन्द्रधनुष देखे थे नदी किनारे.
अंधकार ही सिर्फ़ धरोहर आज तुम्हारी,
कैसे सूरज को अर्पित कर दूं मैं अंधियारे.
बहुत सुन्दर, भावपूर्ण अभिव्यक्ति कैलाश जी।
व्यथा में भी आमन्त्रण .....बेहतरीन भाव ....आभार !
ReplyDeleteआँसू के सागर से अब तो प्यार हो गया,
ReplyDeleteनहीं चाह कोई तट पर यह पहुंचे नैया.
बेहद शानदार लाजवाब गीत.....
कितने सारे स्वप्न संजोये साथ तुम्हारे,
ReplyDeleteकितने इन्द्रधनुष देखे थे नदी किनारे.
अंधकार ही सिर्फ़ धरोहर आज तुम्हारी,
कैसे सूरज को अर्पित कर दूं मैं अंधियारे....
बहुत ही उम्दा ।
अब फिर खड़ा करो न मुझको दोराहे पर,
ReplyDeleteशायद कोई राह न अब उर चुन पायेगा.
गहन भाव........ प्रेम भी मन की वेदना भी..... बहुत सुंदर
बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteढूँढ लिया है उर ने तुमको इन तारों में,
ReplyDeleteदेख तुम्हें यह भ्रमित कहीं फिर हो जायेगा.
खूबसूरत अभिव्यक्ति कैलाश जी!
मन को छूने वाली रचना, बधाई।
ReplyDeleteह्रदय की गहन भावनाओं को उकेरती मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteसाथ निभाने का वादा मैंने कब तुम से चाहा,
ReplyDeleteपर मेरी आँखों को सपना क्यों दिखलाया.
नहीं दोष दे पाता मन क्यों तुम्हें आज भी,
शायद मेरा ही भ्रम था जिसने मन भटकाया.
बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ।
sir
ReplyDeleteprem aur virah ka abhootpoorv sanyojan , aapne shabo ko zindagi de di hai ..
badhayi
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
"मत छीनो मुझ से मेरे मन का सूनापन,
ReplyDeleteखुशियों का कोलाहल ये न सह पायेगा.".
.. बहुत सुन्दर कविता और पंक्तियाँ.. छायावादी कविता के गुणों से संपन्न...
साथ निभाने का वादा मैंने कब तुम से चाहा,
ReplyDeleteपर मेरी आँखों को सपना क्यों दिखलाया....
कभी किसी को झूठे सपने नहीं देने चाहिए।
.
मत मांगो मेरी आँखों के आँसू,
ReplyDeleteप्यासा मन प्यासा रह जायेगा.--------
लाजवाब .....
अब फिर खड़ा करो न मुझको दोराहे पर,
ReplyDeleteशायद कोई राह न अब उर चुन पायेगा.
man ko chhuti hui rachna kailash ji ..........
आँसू के सागर से अब तो प्यार हो गया,
ReplyDeleteनहीं चाह कोई तट पर यह पहुंचे नैया...
adhabhut..
मत छीनो मुझ से मेरे मन का सूनापन,
ReplyDeleteखुशियों का कोलाहल ये न सह पायेगा.
बहुत सुंदर रचना ! कभी कभी मन को अकेलेपन की, दुःख की, या उदासी की आदत हो जाती है ...
आँसू के सागर से अब तो प्यार हो गया,
ReplyDeleteनहीं चाह कोई तट पर यह पहुंचे नैया.
bahut bhavpoorn kavita
jab nirashao ke badal faile ho to aise hi man ke sagar se moti nikalte hain. ekaki man ki samvedansheel abhivyakti.
ReplyDeleteढूँढ लिया है उर ने तुमको इन तारों में,
ReplyDeleteदेख तुम्हें यह भ्रमित कहीं फिर हो जायेगा.
अब फिर खड़ा करो न मुझको दोराहे पर,
शायद कोई राह न अब उर चुन पायेगा.
बहुत सुन्दर लिखा है आपने......
शायद मेरा ही भ्रम था जिसने मुझको भटकाया ...
ReplyDeleteप्रेम का यह निश्छल स्वरुप कि प्रिय पर कोई इलजाम ना आये , अद्भुत है !
वाह!
ReplyDeleteसार्थक रचना।
ReplyDelete............
ब्लॉग समीक्षा की 12वीं कड़ी।
अंधविश्वासी लोग आज भी रत्न धारण करते हैं।
कितने सारे स्वप्न संजोये साथ तुम्हारे,
ReplyDeleteकितने इन्द्रधनुष देखे थे नदी किनारे.
अंधकार ही सिर्फ़ धरोहर आज तुम्हारी,
कैसे सूरज को अर्पित कर दूं मैं अंधियारे.
मत छीनो मुझ से मेरे मन का सूनापन,
खुशियों का कोलाहल ये न सह पायेगा.श्रद्धेय अग्रज शर्माजी बहुत ही सुंदर भावों से सजा यह गीत मन को भा गया बधाई और शुभकामनाएं
"लहर हवाले कर दी अपनी जीवन नैया,
ReplyDeleteनहीं कोई पतवार चाहिये, नहीं खिवैया.
आँसू के सागर से अब तो प्यार हो गया,
नहीं चाह कोई तट पर यह पहुंचे नैया"
दर्दीली पर लाजवाब रचना ।
बहुत भावप्रवण रचना |बधाई
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
आशा
लहर हवाले कर दी अपनी जीवन नैया,
ReplyDeleteनहीं कोई पतवार चाहिये, नहीं खिवैया.
आँसू के सागर से अब तो प्यार हो गया,
नहीं चाह कोई तट पर यह पहुंचे नैया.
.. बहुत सुन्दर कविता !!
मेरी ओर से आपको हार्दिक शुभ कामनाएं
नीरज जी याद आ गए भाई जी ! शुभकामनायें !!
ReplyDeleteमत मांगो मेरी आँखों के आँसू,
ReplyDeleteप्यासा मन प्यासा रह जायेगा...बहुत सुन्दर कविता ....हार्दिक शुभ कामनाएं....