की बर्बरता
है केवल एक इतिहास
जिसे सिर्फ़ पढ़ा
और महसूस किया था.
यह सही है
इतिहास दोहराता है
अपने आप को,
लेकिन किसने सोचा
कि स्वतंत्र भारत में
वह बर्बरता फिर जीवंत होगी
राम लीला मैदान में,
लेकिन इस बार
लाठी खाने वाले
और लाठी उठाने वाले
होंगे अपने ही देश के.
maarmik rachna
ReplyDeleteलेकिन इस बार
ReplyDeleteलाठी खाने वाले
और लाठी उठाने वाले
होंगे अपने ही देश के.
बढ़िया प्रस्तुति. देश को बचाने में सबका योगदान जरूरी है. शुभकामनायें.
बढ़िया प्रस्तुति शुभकामनायें.
ReplyDeletebilkul sahi likha hai aapne........
ReplyDeleteसच ... बहुत ही सार्थक लेखन ... आज के दौर का सफल चित्रण है ये रचना ...
ReplyDeleteइस घटना से कांग्रेस का छल पूरी तरह उजागर हो चुका है भारत के संविधान ने हर भारतीय को शांतिपूर्वक विरोध करने का अधिकार दिया है. इसे निर्ममता पूर्वक कुचलना कांग्रेस की तानाशाही को ही प्रकट करता है !
हिन्दुस्तान के नकारा सरकार ने सोते हुवे निहत्थे लोगों पर लाठी चार्ज कर के जो बर्बर कार्यवाही की उसकी जीतनी निंदा की जाया कम ही है | आधी रात को दिल्ली पुलिस बल ने आक्रमण किया और सत्याग्रहियों को मैदान से बाहर निकाल फेंका ! कितने घायल हुए , कुछ गायब , बाबा रामदेव को सलवार - समीज में छुप कर भागना पडा ! वाह रे देश की धर्म निरपेक्ष सरकार ! ये कैसी नकारा सरकार है यह ! जिसे मानवीय संवेदना का ज़रा भी एहसास भी नहीं है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता...सम सामयिक पोस्ट....
ReplyDeleteसही कहा .. दोनों ही होंगे अपने देश के।
ReplyDeleteAfsos...magar sach hai!
ReplyDeleteमैं भी इस बर्बरता और अंधे राज के सख्त खिलाफ हूँ..जहाँ लोकतंत्र की ह्त्या की गयी... आपकी कविता उस दर्द को बताने में सक्षम है फिर भी इस से जुड़े पहलुवों में अभि कितनी आहें है और क्या क्या होना बाकी है... दिल थाम के देख रहे हैं... और खुद पे लानत समझ रहे हैं कि ये हमारा देश है..
ReplyDeleteमन आहत है ..
ReplyDeleteलेकिन इस बार
ReplyDeleteलाठी खाने वाले
और लाठी उठाने वाले
होंगे अपने ही देश के.
दुखद ...... पूरे देश के लिए अफसोसजनक .....
वे विदेशी लुटेरे थे, ये देसी ठग हैं।
ReplyDeleteखो गया है न्याय का पन्ना, साहस की कलम नैतिकता ,अपने खून का इतहास ,वर्ना कुछ मदहोश भटके लोग रहनुमाई का छल- छद्म कैसे करते
ReplyDeleteमुखर अभिव्यक्ति का पुरजोर समर्थन . साधुवाद जी /
बर्बरता की मिसाल ये घटना । अत्यंत व्यथित करने वाली एवं निंदनीय । शर्म आती है ये सोचकर की इस घटना को अंजाम देने वाले कोई गैर नहीं , सब अपने ही हैं।
ReplyDeleteसरकार द्वारा नींद में सोये हुए लोगों पर किए गए बल प्रौयोग का हर तरफ घोर विरोध हो रहा है लोग खुल कर इस की निंदा कर रहे हैं
ReplyDeleteइस घटना की जितनी निंदा की जाये कम है !
ReplyDeleteमनुष्य में सत्ता की भूख इस कदर है कि उसे जब भी खतरा महसूस होता है तब वह दूसरों पर वार करता है। सत्ता के लोभी लोग कभी नहीं देखते कि कौन अपना है और कौन पराया। यह हमारा भ्रम है कि अपने वार नहीं करते, या दूसरे हैं इसलिए वार किया है।
ReplyDeleteइसी बात का तो दुख था की लाठी खाने वाले भी अपने और उठाने वाले भी अपने।
ReplyDeleteसटीक लेख है आपका.....बर्बरता दिनोदिन बढती ही जाती है......क्रांति ही एकमात्र उपाय बचा है |
ReplyDeleteलेकिन इस बार
ReplyDeleteलाठी खाने वाले
और लाठी उठाने वाले
होंगे अपने ही देश के.
इसी बात का तो दुख है.... .. सटीक लेख है .... धन्यवाद……
लेकिन इस बार
ReplyDeleteलाठी खाने वाले
और लाठी उठाने वाले
होंगे अपने ही देश के.
बहुत सही एवं सार्थक प्रस्तुति ... इस घटना की जितनी भी
निंदा की जाये वह कम है।
बहुत बढ़िया ...... अपनों की दी हुई चोट अधिक कष्ट देती है ,इसीलिये हतप्रभ हूँ ..... सादर !
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (11.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
शर्मा जी , शत प्रतिशत सत्य अब तो लोकतंत्र के मायने बेमानी लगते है बहुत सुंदर भावाव्यक्ति , बधाई
ReplyDeleteसुंदर भावाव्यक्ति , बधाई - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ReplyDeleteएक और जालियांवाला बाग .. सही कहा !!
ReplyDeletebat ek dam sahi kahi hai aapne
ReplyDeletehan bas is pure prakaran me ek hi bat GALAT huyi
aur jisame yah darshaya ki BABA ji bhale hi GANDHI Vichardahara ka dam bhare par Andar se hai wo ekdam KHOKHALE
Akhir SALWAR_Kurta pahan kar JANANE ROOP me nikal bhagane ki kya jaroorat thi...jab aap SATYAGRA kar rahe ho tab ?
GHURKI dena SASHAN ka kam hai aur wo dega bhi , magar asali styagrahi ka kam bhagana nahi hai.
तब भी देश का नुक्सान था, आज भी देश का नुक्सान है
ReplyDeleteyathart batati hui saarthak rachanaa.is desh main abhi kab KYA HO JAAYE .kuch samjh nahi aata.badhaai.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks.
शत प्रतिशत सत्य अब तो लोकतंत्र के मायने बेमानी लगते है बहुत सुंदर भावाव्यक्ति , बधाई|
ReplyDeleteजब भी स्वतंत्रता की बात हिगी, सत्य की बात होगी, हक और अधिकार की बात होगी: बर्बर हाथ इसे सहन नहीं करेंगे. यह मानसिकता है.... देशी और विदेशी दोनों में होती है. हाँ विदेशी यदि ऐसा करता तो एक बार समझ में आ भी जाता लेकिन अपने देशवासी और रास्त्र के कर्णधार कहे-समझे वालों से यह उम्मीद तो नहीं थी. आखिर क्या गलत था? क्या देश का धन वापस लाने की माँग करना गलत है? लेकिन है क्योकि कुंडली मारने वालों में दंदेवालों के ही आका और रिश्तेदार .. भरे पड़े हैं. उन्हें यह सहन नहीं......
ReplyDeleteबहुत मनको छूती रचना |बहुत सही लिखा है
ReplyDelete"लाठी खाने वाले और लाठी उठाने वाले --अपने देश के "
सुंदर पंक्तियाँ
आशा
राम लीला मैदान में,
ReplyDeleteलेकिन इस बार
लाठी खाने वाले
और लाठी उठाने वाले
होंगे अपने ही देश के.......
kahan gai lok kalyankari rajya ki sthapna??
kaha gaye maulik adhikaar??
kaha gayi samwidhaan ki mool bhawna???
jo kuchh ramleela maidan me ghataa, bas kamjori aur bebasi ka prateek hai ki unhe bal prayog karna pada...
सच को दर्शाति बहुत ही मार्मिक और सार्थक अभिव्यक्ति ...... आभार ।
ReplyDelete