गीत लिखे माँ की ममता पर,
प्यार पिता का किसने देखा,
माँ के आंसू सबने देखे,
दर्द पिता का किसने देखा.
माँ की ममता परिभाषित है,
पितृ प्रेम को शब्द नहीं है,
कितने अश्क छुपे पलकों में,
वहां झाँक कर किसने देखा.
उंगली पकड़ सिखाया चलना,
छिटक दिया है उन हाथों को,
तन की चोट सहन हो जाती,
मन का घाव न भरते देखा.
दर्द छुपा कर बोझ उठाया,
झुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा.
विस्मृत हो जायें कटु यादें,
मंजिल पर जाने से पहले,
हो जायें ये साफ़ हथेली,
मिट जायें रिश्तों की रेखा.
बहुत मर्मस्पर्शी कविता लिखी है सर! सच को बयां करती हुई.
ReplyDeleteसादर
कैलाश जी अभी थोड़ी देर पहले मन में उद्देलित हो रहे थे येही विचार की आपकी पोस्ट दिखी मन भर आया क्या भावभीनी अभिव्यक्ति की है , कही कोने में दबे छिपे पिता के दर्द को खूबसूरत अश्रुपूरित शब्दों के लिए बधाई
ReplyDeleteगीत लिखे माँ की ममता पर,
ReplyDeleteप्यार पिता का किसने देखा,
माँ के आंसू सबने देखे,
दर्द पिता का किसने देखा.
@
नज़रें सबकी डेस्कटोप पर,
मदर बोर्ड को किसने देखा.
फीदर मोर शोभता सर पर
मदर मोरनी डांस न देखा.
माँ की ममता परिभाषित है,
ReplyDeleteपितृ प्रेम को शब्द नहीं है,
कितने अश्क छुपे पलकों में,
वहां झाँक कर किसने देखा.
@
कोकिल नर का शब्द मधुर है,
मादा कोकिल का कटु किक-किक.
'घड़ा' प्यास से सबने देखा.
'घड़ी' समय क्षय करती टिक-टिक.
उंगली पकड़ सिखाया चलना,
ReplyDeleteछिटक दिया है उन हाथों को,
तन की चोट सहन हो जाती,
मन का घाव न भरते देखा.
@ कितना दर्द भर दिया है आपने इस अभिव्यक्ति में... कुछ सूझ ही नहीं रहा.
दर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा.
@ शायद पिता दायित्व निभाते-निभाते अपने चेहरे और शरीर को इतना कठोर व आकर्षणहीन बना लेता है कि उसकी अपनी संतान ही उसकी तृषा-क्षुधा को नहीं देख पाती जो उसके शब्दहीन व्यक्तित्व की खुराक हैं.
विस्मृत हो जायें कटु यादें,
ReplyDeleteमंजिल पर जाने से पहले,
हो जायें ये साफ़ हथेली,
मिट जायें रिश्तों की रेखा.
@ .......... पिता अपनी अंतिम यात्रा पर जाने से पहले अपनों से मिली सब कड़वाहट भुला देना चाहता है.
हथेलियों से रिश्तों की रेखा मिटा देने की इच्छा ......... यूँ ही नहीं पनपती... जरूर उसकी संतान ने उसके विश्वास और अपेक्षाओं को तार-तार किया है.
कल 20/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है-
ReplyDeleteआपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
पिता की भावनाओं को समझती सुन्दर कविता... फादर्स डे की हार्दिक शुभकामना !
ReplyDeleteदर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा.
इस दिवस पर यह मर्मस्पर्शी कविता बहुत ही ख़ास लगी.
कितने अश्क छुपे पलकों में,
ReplyDeleteवहां झाँक कर किसने देखा.
पितृत्व का मर्मस्पर्शी चित्रण ।
आपने बहुत अच्छा लिखा है, हम केवल माँ माँ करते हैं। पिता का अमूल्य योगदान कोई स्मरण नहीं करता। बहुत अच्छा।
ReplyDeleteकुछ भी कहने के लिए शब्दों का वस्तुतः आभाव सा महसूस कर रही हूँ बेहद मार्मिक और सजीव चित्रण पितृ दिवस पर
ReplyDeleteआभार
जीवन पात्र मेरा खाली रह जाता , पिता के रूप में जो तुम्हें नहीं पाता ... इसे लिखा मेरी दीदी ने , गाया हम सबने . माँ के साथ और पिता के साथ में फर्क होता है ...दोनों की अभिव्यक्ति अलग होती है , आंसू एक से होते हैं
ReplyDeleteठीक कहा आपने ! मदर डे वाला fanfare कहीं नज़र नहीं आया ! पर इस का अर्थ यह भी नहीं कि बच्चे पिता को ले कर भाव शून्य हैं. कैसा भी डे मनाना तो बाज़ार वाद और उपभोक्ता वाद का आवश्यक हिस्सा हो गया है ताकि कुछ लोग भावात्मकता भुना कर चाँदी कूट सकें !
ReplyDeleteदर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा.
मार्मिक और सजीव चित्रण, धन्यवाद....
अद्भुत रचना है आपकी, पिता का हृदय स्वतः ही बोल उठा।
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी,
ReplyDeleteपिता होने के भावों को और छिपी हुई पीड़ा को सामने लाकर रख दिया ज्यों-ज्यों पंक्तियों के साथ सफर करता गया।
पितृ-दिवस एक मर्मस्पर्शी कविता........
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
उंगली पकड़ सिखाया चलना,
ReplyDeleteछिटक दिया है उन हाथों को,
तन की चोट सहन हो जाती,
मन का घाव न भरते देखा.
पितृ दिवस पर इस भावपूरित प्रस्तुति के लिए आभार। उपर्युक्त पंक्तियों ने तो निःशब्द कर दिया है।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
दर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
शब्दश: नि:शब्द्श:
बहुत मर्मस्पर्शी कविता|
ReplyDeleteफादर्स डे की हार्दिक शुभकामना|
विस्मृत हो जायें कटु यादें,
ReplyDeleteमंजिल पर जाने से पहले,
हो जायें ये साफ़ हथेली,
मिट जायें रिश्तों की रेखा.
Haan...yahee ichha kee jaa saktee hai.
इस रचना के हर शब्द में पिता के लिए संवेदना ही संवेदना है ...बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी, बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना पेश किया आपने!
ReplyDeleteपितृ दिवस पर इस भावपूरित प्रस्तुति के लिए आभार।
बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteदर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा
Bemisal panktiyan....
पिता का प्रेम भी माँ की ममता से कही कम नहीं है ....
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति !
atyant maarmik..
ReplyDeletebhaavuk karti panktiyaan..
बेमिशाल भावों को शब्द देकर पितृत्व को बांचने का ममस्पर्शी कार्य
ReplyDeleteसुंदर है .मनोहारी सृजन .......सर .
बहुत -२ आभार /
माँ की ममता परिभाषित है,
ReplyDeleteपितृ प्रेम को शब्द नहीं है,
कितने अश्क छुपे पलकों में,
वहां झाँक कर किसने देखा.
बहुत भावमय रचना। सच कहा आपने पिता का प्यार बादाम की तरह है ऊपर से कठोर लेकिन व्यक्तित्व निर्माण मे गुणकारी। मर्मस्पर्शी रचना के लिये बधाई।
विस्मृत हो जायें कटु यादें,
ReplyDeleteमंजिल पर जाने से पहले,
हो जायें ये साफ़ हथेली,
मिट जायें रिश्तों की रेखा.
bahut sundar
माँ की ममता परिभाषित है,
ReplyDeleteपितृ प्रेम को शब्द नहीं है,
कितने अश्क छुपे पलकों में,
वहां झाँक कर किसने देखा....
बहुत खूब ... निःशब्द कर दिया इन पंक्तियों ने आपकी ... पितृ दिवस की शुभकामनाएं ...
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना!
ReplyDeleteबहुत भावमयी रचना....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कैलाश जी.......पिता का दर्जा बहुत ऊँचा है .....शानदार पोस्ट है|
ReplyDeleteदर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा.
bahut sunder rachna hai ...
pita ki bhavnaon ko sunderta se ukera hai ....
bahut bahut badhai aapko itni sunder rachna ke. liye ..!!
उंगली पकड़ सिखाया चलना,
ReplyDeleteछिटक दिया है उन हाथों को,
तन की चोट सहन हो जाती,
मन का घाव न भरते देखा
गहन और शानदार पोस्ट है| पितृ दिवस की शुभकामनाएं ...
पिता की भावनाओं को समझती सुन्दर कविता... फादर्स डे की हार्दिक शुभकामना !
ReplyDeleteदर्द छुपा कर बोझ उठाया,
ReplyDeleteझुकने दिया नहीं कन्धों को,
कोई रख दे हाथ प्यार से,
इन्हें तरसते किसने देखा.
दिल को छूती रचना...
jyada kuchh na keh kar yahi kahungi....aaj ki sabse sarvshreshth rachna mujhe yahi lagi. 16 aane sach.
ReplyDeleteपितृ दिवस पर बहुत सुन्दर, भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ! माँ पिताजी दोनों हमारे लिए भगवान समान हैं!
ReplyDeleteकैलाश जी ,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है , पिताजी की याद गहरा गयी । माँ की तरह ही भावुक और प्यार करने वाले होते हैं पिता भी ।
पितृ दिवस पर अद्भुत और संग्रहनीय रचना . आभार .
ReplyDeleteमाँ की ममता परिभाषित है,
ReplyDeleteपितृ प्रेम को शब्द नहीं है,
कितने अश्क छुपे पलकों में,
वहां झाँक कर किसने देखा.
पिता के मार्मिक पक्ष को पूरी संवेदना से उकेरा है आपने.
आदरणीय कैलाश जी,बहुत सुन्दर रचना है!
ReplyDeleteतन की चोट सहन हो जाती,
ReplyDeleteमन का घाव न भरते देखा.
साबुन - बट्टी |
मरहम पट्टी |
घर की भट्टी
रत्ती-रत्ती
तन के दाग मिटेंगे भैया ||
दिया जलाव
खोजो, लाव
चलो बुलाव
पूरा गाँव
वैद्य दिखाव
मन के घाव
बिलकुल भी न, घटेंगे भैया ||
गीत लिखे माँ की ममता पर,
ReplyDeleteप्यार पिता का किसने देखा,
भाई कैलाश जी ,
साधुवाद
वाकयी आपने बिलकुल सही लिखा .
पिता बस पिस्रता रहता है.
प्यार जो पिता करता है
ऊतना माँ भी नहीं करती .
जिन्दगी भर ओंलाद के ही लगा रहता है .
नाम, इज्जत ,धन दौलत ,
सब कुछ पिता ही तो देता है
यह तो पिता का प्यार है की
वो माँ को सम्मान , प्यार
दिलाने के लिए सब कुछ ऊसको
आगे रख कर ही करता है
पर प्यार जो वह करता है
ऊसको कौन देखता है.
दुबारा साधुवाद .
pita ki anchhui bhavnaon ko shabd de diye aapne ...sunder..
ReplyDeleteपूरी लयात्मकता के साथ प्रस्तुत आपका गीत सामयिक और बहुत प्यारा है.
ReplyDeleteये तो सच ही है कि मानव सभ्यता के सरोकारों ने माँ के बनिस्बत पिता को कम आँका है, पर हमारे संस्कारों में पिता का ही वर्चस्व है|
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी
ReplyDeleteसादर नमस्कार !
मां के आंसू सबने देखे,
दर्द पिता का किसने देखा …
मां की ममता परिभाषित है,
पितृ प्रेम को शब्द नहीं है,
कितने अश्क छुपे पलकों में,
वहां झांक कर किसने देखा …
बहुत भावुक कर देने वाली रचना ! बहुत संवेदनशील !!
आभार के शब्द नहीं हैं … … …
# समय निकाल कर निम्नांकित इस लिंक पर मेरी रचना अवश्य पढ़ें , सुनें भी … और अपनी बहुमूल्य राय भी दें …
आए न बाबूजी
- राजेन्द्र स्वर्णकार
भावभीनी अभिव्यक्ति ,शानदार पोस्ट है|
ReplyDeleteBeautiful..It really express the feelings for father's love truely.
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