कहाँ गयी है सत्य अहिंसा?
कहाँ हुई है गुम मानवता?
बढती जाती है क्यों हिंसा?
जितना ज्यादा जो धनवाला,
उतनी धन की भूख बड़ी है.
रिश्वत से क्या टाल सकोगे,
अगर सामने मौत खड़ी है.
सेवा करने का वादा कर,
वोट माँगने घर पर आये.
सत्ता मिलते ही पल भर में,
सब उसूल ताक धर आये.
सब उसूल ताक धर आये.
जनता जब इंसाफ मांगती,
तुमको सहन नहीं हो पाता.
धन की चकाचौंध से अंधे,
भूल गये गांधी से नाता.
लेकर शपथ अहिंसा की तुम,
अब हिंसा को गले लगाते.
सोये हुए पुरुष, नारी पर,
तुम लाठी से वार कराते.
नहीं हमारे शास्त्र सिखाते,
करना वार निहत्थे जन पर.
यह तो एक निशाचरवृति है,
हाथ उठाये सोते जन पर.
जनता को कमजोर न समझो,
सोते शेरों को नहीं जगाओ.
सत्ता मद में चूर न हो तुम,
कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.
समसामयिक और ओज पूर्ण अच्छी रचना
ReplyDeleteजनता को कमजोर न समझो,
ReplyDeleteसोते शेरों को नहीं जगाओ.
सत्ता मद में चूर न हो तुम,
कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.
सही आह्वाहन. शाशक को कर्तव्यों के प्रति सचेत करता सुंदर गीत.
जनता जब इंसाफ मांगती,
ReplyDeleteतुमको सहन नहीं हो पाता।
धन की चकाचौंध से अंधे,
भूल गये गांधी से नाता।
सभी सत्ताधारी धनलोलुप हो गए हैं।
गांधी जी के सपनों को तार-तार कर रहे हैं ये लोग।
Last verse is the crux !!!
ReplyDeleteExcellent write up.
बेहतरीन , ओजमयी रचना । शायद सत्ता में चूर लोगों को होश आ जाए।
ReplyDeleteसेवा करने का वादा कर,
ReplyDeleteवोट माँगने घर पर आये.
सत्ता मिलते ही पल भर में,
सब उसूल ताक धर आये.
बहुत ही बढ़िया....
ओजपूर्ण रचना.... सही कहा आपने। बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन के साथ विचारणीय प्रश्न भी ..
ReplyDeleteलेकर शपथ अहिंसा की तुम,
ReplyDeleteअब हिंसा को गले लगाते.
सोये हुए पुरुष, नारी पर,
तुम लाठी से वार कराते... sahi dhikkara hai
A brilliant poem whats happening in a country of non-violence preachers.Impeachment is going on ---
ReplyDeleteA real story telling mind blowing creation .
Thanks a lot .
nice
ReplyDeleteसेवा करने का वादा कर,
ReplyDeleteवोट माँगने घर पर आये.
सत्ता मिलते ही पल भर में,
सब उसूल ताक धर आये.
सच्चाई बयां करते शब्द...बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन के साथ विचारणीय प्रश्न भी ..
सच्चाई को दर्शाती दिल को छू लेने वाली कविता !
ReplyDeleteआपकी भावपूर्ण,दिल को कचोटती अनुपम अभिव्यक्ति को मेरा सादर नमन.आभार!
आपके आक्रोश ने राष्ट्रीयता के बीज बोना शुरू कर दिया है | यह कार्य तो ऐसा है कि जितना भी धिक्कारा जाए कम है |
बाबा के साथ जो हो रहा है बो बाबा और पूरे भारत की जनता के साथ ग़लत हो रहा | जो अंग्रेज करते थे बो आज केंद्र सरकार कर रही है|
मुझे लगता है की भारत मे किसी को सरकार से कुछ पूछने और उनको मनमानी करने से रोकने का हक है ही नही |
इस प्रकरण ने दो बात सॉफ कर दी है | राजनीति एक दलदल है इस नही कूदना चाहिए दूसरा ब्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ मत उठाओ नही तो बर्बाद हो जाओगे और दुर्भाग्यवश बाबा ने दोनो ग़लतिया कर दी | ये देश हमेशा गुलाम रहा आज भी यहा रोमन हुक्म चला रहे है | आज़ादी से आजतक ये देश गाँधी परिवार की मिल्कियत रहा है और आगे भी रहेगा |
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
लेकर शपथ अहिंसा की तुम,
ReplyDeleteअब हिंसा को गले लगाते.
सोये हुए पुरुष, नारी पर,
तुम लाठी से वार कराते.
bilkul sahi kaha hai aapne .aabhar
आज के हालात पर बहुत सुन्दर चित्रण किया है।….. धन्यवाद
ReplyDeleteवाह ! कितनी सार्थक और ओजपूर्ण रचना. परन्तु क्या उन बहरों, लोभियों और सत्ता के मद में चूर दम्भियों को होश आयेगा? उन्हें सता चाहिए, सिद्धांत नहीं. बधाई इस भावपूर्ण रचना के लिए.
ReplyDeleteओजपूर्ण आह्वान ...... सादर !
ReplyDeleteराजनीति कई बार मानवनीति पर खरी नहीं उतरी है।
ReplyDeleteआदरणीय भाईसाहब
ReplyDeleteसादर वंदे मातरम्!
मैंने आपकी कविता पतंग पढ़ने के बाद लिखा था कि भाईजी , पूरा हिंदुस्तान हिल गया 4 जून की काली रात के बाद ।
आपकी समर्थ लेखनी ने अवश्य कुछ लिखा होगा , वही पढ़ने आया था ।
आभारी हूं , आपने मेरे आग्रह की रक्षा की ।
सोये हुए पुरुष, नारी पर,
तुम लाठी से वार कराते.
नहीं हमारे शास्त्र सिखाते,
करना वार निहत्थे जन पर.
यह तो एक निशाचरवृति है,
हाथ उठाये सोते जन पर.
पिछली प्रविष्टि एक और जालियांवाला बाग के लिए भी शुक्रिया !
मेरे यहां आ'कर समर्थन देने , आवाज़ में आवाज़ मिलाने के लिए भी कृतज्ञ हूं !
अब तक तो लादेन-इलियास
करते थे छुप-छुप कर वार !
सोए हुओं पर अश्रुगैस
डंडे और गोली बौछार !
बूढ़ों-मांओं-बच्चों पर
पागल कुत्ते पांच हज़ार !
सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
ऐ दिल्ली वाली सरकार !
पूरी रचना के लिए उपरोक्त लिंक पर पधारिए…
आपका हार्दिक स्वागत है
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जनता को कमजोर न समझो,
ReplyDeleteसोते शेरों को नहीं जगाओ.
सत्ता मद में चूर न हो तुम,
कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.
वीर रस से परिपूर्ण समसामयिक कविता !
ati sunder
ReplyDeleteआज के हालात पर बहुत सुन्दर चित्रण किया है। धन्यवाद|
ReplyDeleteजनता की ताकत से सत्ताधीशों को आगाह कराती सुंदर रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही ओजमयी सचेतक -प्रेरक रचना के लिए आपको अनंत बधाई
ReplyDeleteओजमयी रचना
ReplyDeleteबधाई - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
जनता तो बेचारी प्रजा बन कर रह जाती है , चुनाव के दिनों में कुछ दिनों के लिए राजा ....चार दिन की चांदनी , फिर अँधेरी रात ...
ReplyDeleteवर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों पर अच्छी कविता !
समसामयिक और ओजपूर्ण पंक्तियाँ
ReplyDeleteजनता को कमजोर न समझो,
ReplyDeleteसोते शेरों को नहीं जगाओ.
सत्ता मद में चूर न हो तुम,
कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.
बिलकुल सही बता कही है सर! कविता में.
ReplyDeleteसादर
जनता को कमजोर न समझो,
ReplyDeleteसच तो ये है कि जनता खुद अपनी ताकत का आकलन नहीं कर पा रही है.
सार्थक चेतावनी
बहुत ओजपूर्ण एवं प्रेरक रचना !
ReplyDeleteजितना ज्यादा जो धनवाला,
उतनी धन की भूख बड़ी है.
रिश्वत से क्या टाल सकोगे,
अगर सामने मौत खड़ी है.
इनका बस चले तो ये मौत को भी रिश्वत देकर अपना गुलाम बना लें ! प्रभावशाली रचना ! अभिनन्दन !
अजी जनता कमजोर है, यह नेतागण अच्छी तरह से जानते हैं इसलिए ही हो सोते हुए पर लाठी चलाते हैं।
ReplyDeleteओजपूर्ण रचना.... सही कहा आपने। बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और जाग्रत करने वाली पोस्ट है....प्रशंसनीय|
ReplyDeleteजनता को कमजोर न समझो,
ReplyDeleteसोते शेरों को नहीं जगाओ.
सत्ता मद में चूर न हो तुम,
कहीं न फिर ठोकर खा जाओ....
काश जनता जल्दी जागे ... कहीं देर न हो जाए ... बहुत ओज़स्वी रचना है ....
राजनीति में अब दरिंदों का राज है ... बहुत सुन्दर कटाक्ष !
ReplyDeletejago janata jago gulzar ji ne sahi kaha hai guthli-guthli choosa gaya aam admi
ReplyDeleteजितना ज्यादा जो धनवाला,
ReplyDeleteउतनी धन की भूख बड़ी है.
रिश्वत से क्या टाल सकोगे,
अगर सामने मौत खड़ी है.
wah kamal hai
vyakti fir bhi nahi sochta .kash aapki baat logon ke samajh me aajati
saader
rachana
जनता को कमजोर न समझो,
ReplyDeleteसोते शेरों को नहीं जगाओ.
सत्ता मद में चूर न हो तुम,
कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.
सही चेतावनी फिर ना कहना हमने समझाया नहीं
सशक्त आव्हान करती ओजपूर्ण कविता.
ReplyDeleteहमारे नेताओं ने जनता को टेकन फॉर ग्रंटेड ले रखा है ............
ReplyDeleteअच्छी लगी ओजपूर्ण कविता . आभार .
ReplyDeleteलेकर शपथ अहिंसा की तुम,
ReplyDeleteअब हिंसा को गले लगाते.
सोये हुए पुरुष, नारी पर,
तुम लाठी से वार कराते.
नहीं हमारे शास्त्र सिखाते,
करना वार निहत्थे जन पर.
यह तो एक निशाचरवृति है,
हाथ उठाये सोते जन पर...
बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! शानदार, लाजवाब और प्रेरणादायक रचना! उम्दा प्रस्तुती!
जनता को कमजोर न समझो,
ReplyDeleteसोते शेरों को नहीं जगाओ.
सत्ता मद में चूर न हो तुम,
कहीं न फिर ठोकर खा जाओ.
ओजपूर्ण रचना. सार्थक लेखन .
नहीं हमारे शास्त्र सिखाते,
ReplyDeleteकरना वार निहत्थे जन पर.
यह तो एक निशाचरवृति है,
हाथ उठाये सोते जन पर.dil ko jhakjhorati,oajpoorn saarthak rachanaa badhaai sweekaren.
please visit my blog.thanks.
ओजपूर्ण कटाक्ष...
ReplyDeleteआम आदमी के क्षोभ और आक्रोश को स्वर दे रही है आपकी ओजपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteसत्तानशीन ये दुर्दांत दस्यु शीघ्र ही अपनी सच्ची गति प्राप्त करेंगे , इसमें कोई संदेह नहीं
"जनता को कमजोर न समझो,
ReplyDeleteसोते शेरों को नहीं जगाओ.
सत्ता मद में चूर न हो तुम,
कहीं न फिर ठोकर खा जाओ."
ओजस्वी रचना के लये साधुवाद