ढूँढ रहा हूँ आजादी को, नज़र उठा कर चारों ओर,
कहते सब आज़ाद देश है, ढूँढ रहा मैं उसका छोर.
भूखा मरने की आज़ादी, रोक मगर हक़ को अनशन पर,
जीवन भर था रहा नग्न, अब कफ़न चुराने बैठे चोर.
मेहनतकश इंसान लटकता, हर पल फांसी के फंदे पर,
इंतज़ार में भ्रष्टाचारी, कब खींचूँ में इसकी डोर.
रोटी, घर, शिक्षा के सपने, क़ैद दफ्तरों की फ़ाइल में,
कितनी बार आयेगा गांधी, खोल सके जो उसकी डोर.
सहने की भी एक सीमा है , मत मज़बूर करो जनता को,
जब आवाज़ उठेगी उसकी, सह न पाओगे वह शोर.
स्विस बैंकों में क़ैद करो मत, तुम भारत माता की अस्मत,
उठ जायेगा एक सुनामी, भीगा गर माँ आँखों का कोर.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
स्विस बैंकों में क़ैद करो मत, तुम भारत माता की अस्मत,
ReplyDeleteउठ जायेगा एक सुनामी, भीगा गर माँ आँखों का कोर.
प्रासंगिक आवाह्न सुंदर कविता के माध्यम से.
स्वतंत्रता दिवस की बहुत शुभकामनायें.
sateek bat kahi है आपने पर जब tak हम आम आदमी हैं हम सत्तासीन को भ्रष्ट कहते रहते हैं पर जैसे ही हमारे हाथ में सत्ता आती है हम भी वही सब करते हैं .सबसे पहले जनता को स्वयं इमानदार होना होगा .आभार
ReplyDeletedevi chaudhrani
सिर्फ छद्म आज़ादी मे हम आज जी रहे हैं।
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ सर।
सादर
आपने देश का पूरा नक्शा ही खींच दिया है.
ReplyDeleteहालात तो चिंताजनक हैं ही,फिर भी:-
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
कल 15/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आज देश का हर शख्स बारुद के ढेर पर बैठा है चिंगारी कब शोलो मे तब्दील हो जायेगी पता भी ना चलेगा……………शायद ये बात आज के कर्णधार भूल गये हैं……………बेहद संवेदनशील और प्रभावशाली रचना।
ReplyDeleteमेहनतकश इंसान लटकता, हर पल फांसी के फंदे पर,
ReplyDeleteइंतज़ार में भ्रष्टाचारी, कब खींचूँ में इसकी डोर.
एक जीवंत सच्चाई को उजागर करती आपकी यह रचना मन को उद्वेलित करती है ......!
मन को छु लेने वाली कविता ....
ReplyDeleteढूँढ रहा हूँ आजादी को, नज़र उठा कर चारों ओर,
ReplyDeleteकहते सब आज़ाद देश है, ढूँढ रहा मैं उसका छोर.
मन को छू लेने वाली बहुत सुन्दर कविता ....
भूखा मरने की आज़ादी, रोक मगर हक़ को अनशन पर,
ReplyDeleteजीवन भर था रहा नग्न, अब कफ़न चुराने बैठे चोर.
bahut khoob ! padhkar achha laga !!
खूबसूरत काव्य, सटीक भी . स्वतंत्रता दिवस की बधाई. शहीदों की कुर्बानी याद रखें और स्वतंत्रता दिवस मनाएं
ReplyDeleteदेश आज जिस हालात से गुजर रहा है उसका सटीक वर्णन अपने किया है, स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteगंभीर ... देश के हालात का सही जायजा लिया है आपने ... स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना , सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
भूखा मरने की आज़ादी, रोक मगर हक़ को अनशन पर,
ReplyDeleteजीवन भर था रहा नग्न, अब कफ़न चुराने बैठे चोर.
Swatantrata diwas kee anek shubh kamnayen!
बहुत सुन्दर रचना,बहुत ही उम्दा प्रस्तुती
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की बहुत शुभकामनायें.
यह दुर्दशा देख हर साल दो बार आँखें नम हो जाती हैं।
ReplyDeleteबहुत सशक्त रचना। भूखे नंगे देशावासियों की चिन्ता नहीं और अनशन की चिन्ता सता रही है।
ReplyDeleteसहने की भी एक सीमा है , मत मज़बूर करो जनता को,
ReplyDeleteजब आवाज़ उठेगी उसकी, सह न पाओगे वह शोर.
intzaar hai us shor ka ... varna hum khud ko dhoondhte rah jayenge
बहुत सुन्दर सशक्त सामयिक रचना सर,
ReplyDeleteसादर...
बेहतरीन ...प्रभावित करती रचना ......
ReplyDeleteस्वतंत्रता पर सवाल उठाती कविता....बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteसच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
आज की व्यवस्था पर प्रहार करती सार्थक रचना ..
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें और बधाई
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 15-08-2011 को चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDelete"भूखा मरने की आज़ादी, रोक मगर हक़ को अनशन पर,
ReplyDeleteजीवन भर था रहा नग्न, अब कफ़न चुराने बैठे चोर".
फिर भी.......
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteस्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteभूखा मरने की आजादी , रोक मगर हक को अनशन पे ... आपके इस सुंदर सी प्रस्तुति से हमारी वार्ता भी समृद्ध हुई है !!
ReplyDeleteGandhi ko baar baar ana hi padega kyunki abhi ham aajad nahi hain...
ReplyDeleteJai hind jai bharatGandhi ko baar baar ana hi padega kyunki abhi ham aajad nahi hain...
Jai hind jai bharat
"भूखा मरने की आज़ादी, रोक मगर हक़ को अनशन पर,
ReplyDeleteजीवन भर था रहा नग्न, अब कफ़न चुराने बैठे चोर."
.............आजादी के बाद भी समाज में फैली विडंबना का अति सुंदर चित्रण.......
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाईयां
ReplyDeletebahut sarthak, prabhavshali rachna. aaj ke halaat par chot karti prastuti.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति के साथ भावपूर्ण कविता लिखा है आपने!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सार्थक और सशक्त प्रस्तुति. आभार. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
bhaut hi khubsurat rachna...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....
ReplyDeleteआभार
रोटी, घर, शिक्षा के सपने, क़ैद दफ्तरों की फ़ाइल में,
ReplyDeleteकितनी बार आयेगा गांधी, खोल सके जो उसकी डोर.
अरे वह आपने तो भारत माता के उपर देशप्रेम से ओतप्रोत बहुत अच्छे भाव लिए सुंदर गीत लिख डाला यथार्थ को बताती हुई सार्थक रचना /बधाई आपको /
ब्लोगर्स मीट वीकली (४)के मंच पर आपका स्वागत है आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आभार/ इसका लिंक हैhttp://hbfint.blogspot.com/2011/08/4-happy-independence-day-india.htmlधन्यवाद /
ढूँढ रहा हूँ आजादी को, नज़र उठा कर चारों ओर,
ReplyDeleteकहते सब आज़ाद देश है, ढूँढ रहा मैं उसका छोर.
बेहद सार्थक एवं सटीक अभिव्यक्ति ...आभार ।
Brilliantly expressed the grave problems prevailing in our country which we are tend to feel more on National Holidays !!
ReplyDeleteसच्चाई को उजागर करती रचना
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं….!
जय हिंद जय भारत
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प्रासंगिक आवाह्न सुंदर कविता के माध्यम से............
ReplyDeleteभूखा मरने की आज़ादी, रोक मगर हक़ को अनशन पर,
ReplyDeleteजीवन भर था रहा नग्न, अब कफ़न चुराने बैठे चोर.
सारगर्भित पंक्तियों ने मन को झकझोर दिया.
बहुत ही सटीक सार्थक चित्रण
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