नहीं अच्छे लगते
सपने बन्द आँखों के,
नहीं होता है नियंत्रण
इनके आने पर
या टूट जाने पर.
खुली आँखों के सपने
रहते हैं अपनी मुट्ठी में,
जब चाहो
जिधर चाहो
मोड़ दो रुख
परिस्थितियों के अनुसार.
और रख सकते हो
उनको अपनी सीमाओं में,
नहीं होता है डर
उनके टूट जाने का.
bahut hee badhiyaa kailash bhai!
ReplyDeleteji... khuli aankhon ke sapne vastvikata ke kareeb hote hain aur band ke koso door...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर।
ReplyDeleteसादर
यह सपने तो आखिर सपने हैं चाहे बंद आँखों से देखे जाएँ या खुली आँखों से ....!
ReplyDeleteवाह ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteनहीं होता है डर
ReplyDeleteउनके टूट जाने का.
बहुत सुंदर ,अच्छी लगी, बधाई .
वाह बहुत सुन्दर ख्याल्।
ReplyDeleteखूबसूरत कविता ... नई बात कह रहे हैं आप कविता में
ReplyDeleteखुली आँखों के सपने
ReplyDeleteरहते हैं अपनी मुट्ठी में...
बहुत अच्छी और सकारात्मक सोच... आभार
Bahut khub,,,, sapna hai ya hakikat,,,,
ReplyDeletejai hind jai bharat
खुली आंखों के सपने नहीं टूटते...
ReplyDeleteएकदत सही।
सार्थक संदेश देती हुई एक सुंदर कविता।
सर बहुत ही खूबसूरत कविता बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteनहीं होता है डर
ReplyDeleteउनके टूट जाने का.
बहुत सुंदर ,.... बधाई .
खुली आँखों के सपने... टूटने का दर नहीं होता...
ReplyDeleteवाह! सार्थक, सकारात्मक रचना सर...
सादर....
"खुली आँखों के सपने
ReplyDeleteरहते हैं अपनी मुट्ठी में,"
सच कहा आपने सपने देखना जरूरी भी विकास के लिए परन्तु बंद आँखों के सपने व्यर्थ ही रह जाते है. सुंदर विचार पेश करती अच्छी प्रस्तुति.
नहीं अच्छे लगते
ReplyDeleteसपने बन्द आँखों के,
नहीं होता है नियंत्रण
इनके आने पर
या टूट जाने पर.
Khoob....Bahut Sunder
सपनों का संसार ,चाहे खुली आँखों का ,या बंद आँखों का ,स्वप्न ही होता है ,शायद ही सच होता है ...../
ReplyDeleteसुंदर परिकल्पनाएं खूबसूरती लिए ........शुक्रिया जी .
बहुत सटीक प्रस्तुति, सोचने पर विवश करती रचना
ReplyDeleteसटीक शब्द दिया है भावों को आपने बधाई.. कैलाश जी.
ReplyDeleteकैलाश जी !!!
ReplyDeleteखुली आँखों के सपने
रहते हैं अपनी मुट्ठी में,
जब चाहो
जिधर चाहो
मोड़ दो रुख
परिस्थितियों के अनुसार.
और रख सकते हो
उनको अपनी सीमाओं में,
यथार्थ परक भाव पूर्ण एवं प्रेरक प्रस्तुति ..
सादर अभिनन्दन !!!
सपने तो वैसे सपने ही है जगती आँखों से हो या बंद आँखों से.......असल तो यतार्थ का ये ठोस धरातल ही है...........वैसे पोस्ट अच्छी लगी आपकी|
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर बात ! लेकिन खुली आँखों के सपने हमारी मुट्ठी में होते तो हैं पर सभी के पूरे नहीं होते...
ReplyDeleteखुली आँखों के सपने यथार्थ में अधिक बदलते हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात है
खुली आँखों के सपने
रहते हैं अपनी मुट्ठी में,
जब चाहो
जिधर चाहो
मोड़ दो रुख
खूबसूरत कविता... नये भाव हैं इनमे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कोमल भावों को संजोये हुए शब्द ...
ReplyDeleteलाजवाब कविता
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत प्यारी और कोमल रचना.
ReplyDeleteकोमल भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteबधाई
आशा
सुंदर, बहुत ही भावपूर्ण ।
ReplyDeletesach kaha sir...kash band aankhon ke sapano par bhi hamara niyantran hota.....sundar rachana....kabhi mere yahan bhi aayen sir, aapaka hardik swagat hai...
ReplyDeleteवाह सपने,दोनों रूपों को खूबसूरती से निखारा है सपने जीने का सहारा आपने बहुत अच्छा लिखा...
ReplyDeleteकई जिस्म और एक आह!!!
सपने तो फिर भी सपने ही होते हैं। इनके टुटने का डर हमेशा बना होता है।
ReplyDeleteखुली आँखों के सपने
ReplyDeleteरहते हैं अपनी मुट्ठी में,
जब चाहो
जिधर चाहो
मोड़ दो रुख
परिस्थितियों के अनुसार.
जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
बहुत बढ़िया!!
ReplyDeleteसच कहा ... बंद आँखों के सपने तो छलावा होते हैं ... बस में नहीं होते ...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ............
ReplyDeleteसपने खुली आँखों से ही देखने चाहिए।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteनिहार रंजन