Tuesday, August 30, 2011

आसमान की चाहत

आसमान छूने की चाहत में
कितने दूर हो जाते हैं 
हम ज़मीन से.

रिश्तों की दीवारें
ढह जाती हैं
स्वार्थों की चोट से,
चढ़ जाती है 
स्नेह पर
गुरुत्व की परत,
चलते हैं
गढा कर नज़रें
आसमां पर
और कुचलते 
स्वप्न और अरमान 
अपनों के,
पैरों तले.

लेकिन पाते हैं एक दिन 
अपने आप को अकेला
दूर क्षितिज पर,
तरसते 
एक कोमल नन्हे हाथ को
जो पोंछ दे आंसू
अकेलेपन के.

46 comments:

  1. भावमय करती अभिव्‍यक्ति |चाहत अपना रंग दिखाती ही है |बहुत सुंदर |

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  2. एक कोमल नन्हे हाथ को
    जो पोंछ दे आंसू
    अकेलेपन के.

    भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  3. आसमान छूने की चाहत में
    कितने दूर हो जाते हैं
    हम ज़मीन से.
    बहुत ही सुन्दर ....

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  4. दृष्टि सदा ही क्षितिज पर रहती है।

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  5. सुन्दर-प्रस्तुति |
    बधाई ||

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  6. सुन्दर और बेहतरीन कविता!!

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  7. लेकिन पाते हैं एक दिन
    अपने आप को अकेला
    दूर क्षितिज पर,
    तरसते
    एक कोमल नन्हे हाथ को
    जो पोंछ दे आंसू
    अकेलेपन के.

    आज के मानव की त्रासदी को दर्शाती सुंदर भावपूर्ण कविता... आने वाले त्योहारों की बधाई स्वीकारें!

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  8. बहुत सुन्दर कविता है..........शानदार|

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  9. भावुक करती सुन्दर अभिव्यक्ति

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  10. सब कुछ कह दिया आपने कितनी सहजता और खूबसूरती से...

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  11. तरसते
    एक कोमल नन्हे हाथ को
    जो पोंछ दे आंसू
    अकेलेपन के.
    बेमिसाल पंक्तियाँ ......... सुंदर

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  12. गढा कर नज़रें
    आसमां पर
    और कुचलते
    स्वप्न और अरमान
    अपनों के,
    पैरों तले....

    सचमुच! सर ऐसे आसमान कहाँ मिलेगी भला...
    सुन्दर कविता... सादर बधाई...

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  13. वाह...बेजोड़ रचना...बधाई

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  14. कितनी गहरी मगर सटीक बात कही है……………शानदार्।

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  15. आसमान छूने की चाहत में
    कितने दूर हो जाते हैं
    हम ज़मीन से.
    गहरी बात ....

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  16. ना जाने हम इस बात को समय रहते क्यूँ नहीं समझ पाते ?

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  17. तरसते
    एक कोमल नन्हे हाथ को
    जो पोंछ दे आंसू
    अकेलेपन के


    बहुत सुन्दर भावयुक्त रचना !

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  18. रिश्तों की दीवारें
    ढह जाती हैं
    स्वार्थों की चोट से,
    चढ़ जाती है
    स्नेह पर
    गुरुत्व की परत,
    चलते हैं
    सौदाई रिश्ते कभी सगे नहीं होते , जब भी होते हैं ,छल ही करते हैं , थोड़े समय की शीतलता पुरे उम्र की दावानल बनती है ......../ मौलिक अहसास ,

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  19. रिश्तों की दीवारें
    ढह जाती हैं
    स्वार्थों की चोट से,
    चढ़ जाती है
    स्नेह पर
    yatharth ko bataati hui saarthak prastuti/dil ko choo gai.badhaai aapko/


    please visit my blog
    www.prernaargal.blogspot.com

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  20. इस कविता के भाव मन को छू गए।

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  21. एक कोमल नन्हे हाथ को
    जो पोंछ दे आंसू
    अकेलेपन के.

    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  22. यथार्थ दर्शाती रचना.....बहुत बढ़िया..

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  23. बेहतर प्रसतुति. भावनाओ का खूबसूरत संगम

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  24. यथार्थ को दर्शाती सुन्दर प्रस्तुति.....
    बधाई ||

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  25. लेकिन पाते हैं एक दिन
    अपने आप को अकेला
    दूर क्षितिज पर,

    बहुत खूब

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  26. दुर्भाग्य से सत्य ऐसा ही है। सजीव चित्रण।

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  27. बहुत सुंदर प्रस्तुति,


    एक चीज और, मुझे कुछ धर्मिक किताबें यूनीकोड में चाहिये, क्या कोई वेबसाइट आप बता पायेंगें,
    आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  28. sach mein hum are hath se waqt phisal jata hai muthi mein ret ki terh...........

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  29. आसमान छूने की चाहत में
    कितने दूर हो जाते हैं
    हम ज़मीन से.

    सही कहा है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए की हम चाहे कितनी भी ऊँची उड़ान भर लें आखिर आना तो धरती पर ही है न ...गहरे भाव सशक्त अभिव्यक्ति

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  30. जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
    दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
    ईद मुबारक

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  31. very very emotional and powerfully expressed..
    can only say WOW !!

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  32. मार्मिक भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति .......

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  33. उम्दा प्रस्तुती!

    ईद मुबारक आप एवं आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.एक ब्लॉग सबका

    ईद पर विशेष अनमोल वचन

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  34. सुन्दर प्रस्तुति...ईद मुबारक़

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  35. काश ये हमें तब याद रहता जब ऊंचाई छूने का जुनून सवार होता है...सुंदर रचना ।

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  36. जीवन-पथ के चौराहे पर यह अकेलापन और नन्हें हाथों से सहयोग व स्नेह की अपेक्षा , शायद यही जीवन का सच्चा मर्म है.अद्वितीय उद्गार.

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  37. aap jo khna chah rhe the use bkhoobi kh dala hai bina kisi lag lpet ke .bhut hi srl shbdo ko madhyam bnaya hai jisse bhav khoob ubhr kr pathko ke samne prstut huye hai .
    bdhai .

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  38. prabhavshali abhivykti ......

    yaha bhi aayen..
    http://rajninayyarmalhotra.blogspot.com/2011/09/blog-post.html#links

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  39. ये आज का सच है पर बहुत कष्टदायक भी .........

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  40. bahut hi umda behtreen prastuti.sorry der se padhi.

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  41. सच है ऐसे क्षितिज का क्या फायदा जो दूर कर दे अपनी ज़मीन से ...

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  42. बिल्कुल सही लिखा है
    वास्तव में आसमान छूने की
    चाहत मैं हम अपनों से दूर हो जाते
    हैं।मेरे ब्लाँग पर आने के लिये आभारी हूँ।

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