तड़प रहा गांधी का अंतस,
आज देश का हाल देखकर.
क्या मेरी वह राह गलत थी,
पायी थी आजादी चलकर?
रोक लगी क्यों सत्याग्रह पर,
अनशन हुआ गैर कानूनी?
भ्रष्ट लोग गद्दी पर जब हों,
न्याय, सत्य होते बेमानी.
नहीं किया संघर्ष था मैंने,
ऐसी आज़ादी पाने को.
अपना स्वार्थ हुआ सर्वोपरि,
भूल गए हैं जन सेवा को.
गर्व मुझे कुछ जन अब भी,
चलते हैं मेरे रस्ते पर.
जो बनते हैं मेरे वारिस,
भूल गये मेरी शिक्षा पर.
अब मेरी तस्वीर हटा दो,
दफ़्तर की दीवारों से तुम.
झुक जाती हैं मेरी नज़रें,
काले कार्य देखकर हरदम.
नहीं किया संघर्ष था मैंने,
ReplyDeleteऐसी आज़ादी पाने को.
गांधीजी जिंदा होते तो शायद ऐसी दुराचार देखकर आज आत्महत्या कर लेते ...
बहुत सुन्दर कविता ...
बहुत ही सुन्दर कविता है .
ReplyDeleteनित्तंत सामयिक विषय पर सटीक पंक्तिया
सुन्दर रचना....
ReplyDeleteअब मेरी तस्वीर हटा दो,
ReplyDeleteदफ़्तर की दीवारों से तुम.
झुक जाती हैं मेरी नज़रें,
काले कार्य देखकर हरदम.
सच कह रही है ये रचना... ये वह आज़ादी नहीं है जिसकी कल्पना गांधीजी के साथ - साथ हर एक आम इन्सान ने कि थी अपने ही देश में हम आज अपनों के ही गुलाम बन कर रह गए हैं....
सच ही आज गाँधी कि आत्मा रो रही होगी ..बहुत अच्छी और सार्थक रचना
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा ...बेहद सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअंततः गाँधी कि जीत हुई है अनशन के लिए तैयार हैं अन्ना, यह भारत की जनता कि जीत है...
ReplyDeleteअब मेरी तस्वीर हटा दो,
ReplyDeleteदफ़्तर की दीवारों से तुम.
झुक जाती हैं मेरी नज़रें,
काले कार्य देखकर हरदम....
सच कह रहे हैं सर, भारत को आज लोभातिरेक की बेड़ियों में जकड़ा है...
पूरे आवेग से सत्य का गर्जन ही इन बेड़ियों का निराकरण हो सकता है...
बहुत सुन्दर गीत ...
सादर...
What Gandhi said we have forgotten after independence because we have lost our sense and duty what we have to do , for sake of our country. It is needed to revive the value and word of Gandhi."DO OR DIE ". Thanks a lot.
ReplyDeleteगांधी अगर आज तुम होते.....
ReplyDeleteपर अब क्रांति बीज बोया जा चुका है .अब सुधर जरूर आएगा .सार्थक प्रस्तुति .आभार
ReplyDeleteblog paheli no.1
आदरणीय कैलाश जी भाईसाहब
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
भ्रष्ट लोग गद्दी पर जब हों,
न्याय, सत्य होते बेमानी
'तड़प रहा गांधी का अंतस' के माध्यम से आपने वर्तमान परिस्थितियों पर अच्छी रचना लिखी है ।
अब वक़्त आ गया है भ्रष्टों को गद्दी से खींच कर नीचे पटकने का !
मैंने भी लिखा है -
काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है
सह चुके हद से ज़ियादा हम तेरी मनमानियां
फ़ैसला करने को जनता हिंद की तैयार है
हार्दिक मंगलकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
ye shadyantr kab se chal rahe hain baapu ji.
ReplyDeletebahut sunder prabhavshali abhivyakti.
बेहद सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
शुभकामनायें आपको !
ReplyDeletegandhi ke dard ko bakhoobi ubhaara
ReplyDeleteवास्तव में गांधी का दर्द यही होता । शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteसार्थक पंक्तियाँ.
ReplyDeleteअब तो वास्तव में कांग्रेसी कार्यालयों से गांधी की तस्वीर हटा लेनी चाहिए।
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सार्थक रचना ..आज गाँधी कि आत्मा रो रही होगी ....
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग्स पर भी आएं-
http://ghazalyatra.blogspot.com/
http://varshasingh1.blogspot.com/
very nice......keep it up.
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ सार्थक रचना ! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
नहीं किया संघर्ष था मैंने,
ReplyDeleteऐसी आज़ादी पाने को.
बहुत सुन्दर कविता ...
बेहद सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति .......
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सार्थक रचना .......
ReplyDeleteअब मेरी तस्वीर हटा दो,
ReplyDeleteदफ़्तर की दीवारों से तुम।
झुक जाती हैं मेरी नज़रें,
काले कार्य देखकर हरदम।
गांधी जी का क्षोभ वास्तविक है।
भ्रष्टाचार भी गांधी जी के नाम पर होने लगे हैं।
बहुत प्र भावी ... ज्वलंत प्रशों को उठाती .. कमाल की रचना है ...
ReplyDeleteअब मेरी तस्वीर हटा दो,
ReplyDeleteदफ़्तर की दीवारों से तुम।
झुक जाती हैं मेरी नज़रें,
काले कार्य देखकर हरदम।....बहुत सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति .......
लोकपाल बिल बनने से कुछ हो या न हो लेकिन लोगों को कुछ पा लेने का अहसास तो हो ही जाएगा।
ReplyDeleteहम तो शुरू से ही कह रहे हैं कि सच्चे रब से डरो, जैसी उसकी ढील है वैसी ही सख्त उसकी पकड़ है।
अभी इंटेलेक्चुअल बने घूम रहे हैं लेकिन अगर भूकंप, बाढ़ और युद्धों ने घेर लिया तो कोई भी फ़िलॉस्फ़र बचा न पाएगा।
ईमानदारी के लिए ईमान चाहिए और वह रब को माने बिना और रब की माने बिना मिलने वाला नहीं है।
लोग उससे हटकर ही अपने मसले हल कर लेना चाहते हैं,
यही सारी समस्या है।
ख़ैर ,
आज सोमवार है और ब्लॉगर्स मीट वीकली 5 में आ जाइये और वहां शेर भी हैं।
Sach kaha aapne.. Gandhiji ki aatma yahi kah rah hogi abhi..
ReplyDeleteभ्रष्ट लोग गद्दी पर जब हों,
ReplyDeleteन्याय, सत्य होते बेमानी
देश के वर्तमान हालातों को बयाँ करती पंक्तियाँ .....
The way u weave politics, plight and problems in your lines are worth a read.
ReplyDeleteLoved it :)
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteनहीं किया संघर्ष था मैंने,
ReplyDeleteऐसी आज़ादी पाने को.
अपना स्वार्थ हुआ सर्वोपरि,
भूल गए हैं जन सेवा को.
बहुत सार्थक रचना /वाकई गांधीजी को सच में शर्म आती होगी की इस देश को आजाद करने के लिए उन्होंने और अनगिनत लोगों ने अपनी कुर्बानी दी थी / आजादी के बाद भी हम कहाँ आजाद हुए हैं /बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती हुई शानदार प्रस्तुति /बधाई आपको /मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद /मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /आभार /
सटीक सामायिक रचना....
ReplyDeleteतड़प रहा गांधी का अंतस,
ReplyDeleteआज देश का हाल देखकर.
क्या मेरी वह राह गलत थी,
पायी थी आजादी चलकर?
बापू शायद यही सोच रहे होंगे.बेमिसाल रचना जो आजादी का मायने क्या है ? सोचने के लिये बाध्य करती है.
सार्थक रचना
ReplyDeleteयदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक विचार हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html