Saturday, November 12, 2011

एक बार बचपन मिल जाये

                            जीवन की सरिता में बहते,
                            थक कर खड़ा आज मैं तट पर.
                            बहता समय देख कर सोचूँ,
                            एक बार बचपन मिल जाये.


                            छोटी बातों में खुशियाँ थीं,
                            कंचों ही का था ढ़ेर खज़ाना.
                            काग़ज़ का एक प्लेन बनाकर,
                            दुनियां भर में उड़ कर जाना.


                            कहाँ खो गया है वह बचपन,
                            जीवन की इस दौड़ भाग में.
                            कच्चे अमरूद पेड़ से तोड़ें,
                            पीछे पीछे माली चिल्लाये .


                            भौतिक सुविधायें बहुत जुड़ गयीं,
                            पर मासूम  खुशी अब  ग़ुम है.
                            बारिस आती  अब भी गलियों में.
                            पर काग़ज़ की वो कश्ती ग़ुम है.


                            पल में रोना, फिर हंस जाना,
                            जीवन कितना सहज सरल था.
                            मुझसे ले लो मेरी सब दौलत,
                            माँ बस तेरा चुम्बन मिल जाये.


                            जाना सभी छोड़ कर जग में,
                            क्यों यह समझ नहीं मैं पाया.
                            जैसा जग में आया निर्मल,
                            वैसा ही क्यों मैं रह न पाया.


                            अब इस जीवन  संध्या में,
                            नयी सुबह की आस व्यर्थ है.
                            उंगली अगर पकड़ले बचपन,
                            कुछ पल को बचपन आ जाये.
                            Kailash C Sharma
                         

61 comments:

  1. एक बार गया बचपन फिर से लौट के नहीं आता ...उसी दर्द को बखूबी उतारा है आपने अपनी कलम में ...

    ReplyDelete
  2. एक नज़र मेरे बचपन पर भी डाल के पढ़े

    http://apnokasath.blogspot.com/

    ReplyDelete
  3. छोटी बातों में खुशियाँ थीं,
    कंचों ही का था ढ़ेर खज़ाना.
    काग़ज़ का एक प्लेन बनाकर,
    दुनियां भर में उड़ कर जाना.


    कहाँ खो गया है वह बचपन,
    जीवन की इस दौड़ भाग में.
    कच्चे अमरूद पेड़ से तोड़ें,
    पीछे पीछे माली चिल्लाये .
    kaash ! per wo phir nahi aate

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छे से आपने बचपन को उकेरा है अपनी पंक्तियों में ।
    भावपूर्ण रचना !

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर कविता... बचपन तो आपने जी ही लिया इन सुंदर पंक्तियों के माध्यम से.. आभार!

    ReplyDelete
  6. मन के भावों की सुन्दर प्रस्तुति ...

    अब इस जीवन संध्या में
    नयी सुबह की आस व्यर्थ है.
    उंगली अगर पकड़ले बचपन,
    कुछ पल को बचपन आ जाये.

    मन में यही आस जीने के लिए प्रेरित करती है

    ReplyDelete
  7. छोटी बातों में खुशियाँ थीं,
    कंचों ही का था ढ़ेर खज़ाना.
    काग़ज़ का एक प्लेन बनाकर,
    दुनियां भर में उड़ कर जाना.


    कहाँ खो गया है वह बचपन,
    जीवन की इस दौड़ भाग में.
    कच्चे अमरूद पेड़ से तोड़ें,
    पीछे पीछे माली चिल्लाये .

    bilkul sahi likha hai .. bachpan kho sa gaya hai aaj...
    aaj ke bachche bhi is bachpane se dur hain...

    jai hind jai bharat

    ReplyDelete
  8. vaah bahut khoobsurat bhaav pyaari kavita.

    ReplyDelete
  9. बचपन की यादें बहुत अनमोल होती हैं।

    सादर

    ReplyDelete
  10. मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी...
    बचपन के दिन भी क्या दिन थे...उड़ते फिरते तितली बन...

    ReplyDelete
  11. बचपन की यादों को ताज़ा करती बढ़िया रचना

    Gyan Darpan
    .

    ReplyDelete
  12. किसी के बच्चों के साथ बचपन की थोड़ी सी भरपाई हो जाती है. जब हम सही में उनके साथ खेलते है. सुन्दर लिखा है.

    ReplyDelete
  13. भौतिक सुविधायें बहुत जुड़ गयीं,
    पर मासूम खुशी अब ग़ुम है.
    बारिस आती अब भी गलियों में.
    पर काग़ज़ की वो कश्ती ग़ुम है.

    सबकुछ होते हुए भी हम अपने जीवन के सबसे अनमोल खजाना खो चुके हैं।

    ReplyDelete
  14. कहाँ खो गया है वह बचपन,
    जीवन की इस दौड़ भाग में.
    bhut achchi abhivyakti.

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर कविता बचपन को याद करना सुखद होता है |

    ReplyDelete
  16. “एक बार बचपन मिल जाये...”
    वाह वाह सर....
    कितनी भावमयी रचना है...
    सादर बधाई....

    ReplyDelete
  17. बचपन की और लौटना कितना सुखद है... चाहे वो यादों के माध्यम से ही क्यूँ न हो!
    सुंदर रचना!

    ReplyDelete
  18. अब इस जीवन संध्या में,
    नयी सुबह की आस व्यर्थ है.
    उंगली अगर पकड़ले बचपन,
    कुछ पल को बचपन आ जाये.........Bahut sundar aur pyara geet Kailash ji....

    ReplyDelete
  19. बीता वक्त .... बचपन .... दुबारा मिल जाये .... कशमकश .... बहुत खूब कैलाश जी

    ReplyDelete
  20. बचपन की बातें ही कुछ और होती है. सुंदर रचना.

    ReplyDelete
  21. apne jiwan ko kaise bhi jiya ja sakta hai khas taur par tab jab aap apni sari jimmedariyon ko pura kar chuke hon.

    bahut sunder prastuti.

    ReplyDelete
  22. कहाँ खो गया है वह बचपन,
    जीवन की इस दौड़ भाग में.
    कच्चे अमरूद पेड़ से तोड़ें,
    पीछे पीछे माली चिल्लाये .
    Kmaal ki panktiyan ...Bahut hi Sunder rachna

    ReplyDelete
  23. अब इस जीवन संध्या में,
    नयी सुबह की आस व्यर्थ है.
    उंगली अगर पकड़ले बचपन,
    कुछ पल को बचपन आ जाये......

    बचपन के दिन काश की फिर लौट आते... बहुत सुन्दर रूप में संजोया है आपने बचपन की यादों को.... अनमोल खजाना है यह जीवन का...सुंदर रचना

    ReplyDelete
  24. सुंदर अहसास।

    'ये दौलत भी ले लो
    ये शोहरत भी ले लो
    भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी...
    पर लौटा दो मुझको
    वो बचपन की यादें
    वो कागज की कश्‍ती
    वो बारिश का पानी...... '

    ReplyDelete
  25. "बारिस आती अब भी गलियों में, पर काग़ज़ की वो कश्ती ग़ुम है."

    behatreen rachna sir.. :)

    ReplyDelete
  26. अद्भुत- वो बचपन की यादों में गोता लगाना.

    ReplyDelete
  27. जाना सभी छोड़ कर जग में,
    क्यों यह समझ नहीं मैं पाया.
    जैसा जग में आया निर्मल,
    वैसा ही क्यों मैं रह न पाया.

    जीवन का सबसे निर्मल समय बचपन ही होता है।
    बहुत अच्छी कविता।

    ReplyDelete
  28. अब इस जीवन संध्या में,
    नयी सुबह की आस व्यर्थ है. उंगली अगर पकड़ले बचपन,
    कुछ पल को बचपन आ जाये.

    कुछ फिर वापस नहीं आता. बहुत सुंदर कविता.

    ReplyDelete
  29. पूरी तरह पठनीय ...
    with experiments...sadhuvaad

    ReplyDelete
  30. awesome expressions of inner conflicts at old age :)

    Nice read as ever !!

    ReplyDelete
  31. very intersting sirG...


    M to yhi kahunga ki...
    bikhar gya h pani gar
    to samet na sakenge
    goojar gya h waqt jo
    mudkar use dekh na sakenge
    bachhpan to door chand yadon ke siva
    ye pal bhi hum sahej na sakenge.


    Bachhpan ki sirf yaade shesh h or .. or yaado me doobna sukoon de jata h...

    ReplyDelete
  32. बचपन को याद करती कविता सशक्‍त है।

    ReplyDelete
  33. शाश्वत चाहना.सुंदर.

    ReplyDelete
  34. उंगली अगर पकड़ले बचपन,
    कुछ पल को बचपन आ जाये.
    बहुत खूब ... बचपन की चाहत बेशक बचपन में न हो पर बाकी उम्र में तो बचपन की तलाश रहती ही है

    ReplyDelete
  35. सिर्फ बचपन ही होता है जहां हमेशा वापस लौटने को मन करता है ... बहुत ही गहरी बात सहज रूप से कही है अपने ... दिल में उतरती है ये रचना ...

    ReplyDelete
  36. अच्छी रचना..बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  37. बाल दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  38. आदरणीय कैलाश जी बहुत सुन्दर रचना बचपन की यादों में खो गया मन ..सच में कितना सरल सहज था प्यार और दुलराना ...बचपन के दिन भी क्या दिन थे ...बधाई हो
    भ्रमर ५

    पल में रोना, फिर हंस जाना,
    जीवन कितना सहज सरल था.
    मुझसे ले लो मेरी सब दौलत,
    माँ बस तेरा चुम्बन मिल जाये.


    जाना सभी छोड़ कर जग में,
    क्यों यह समझ नहीं मैंपाया.
    जैसा जग में आया निर्मल,
    वैसा ही क्यों मैं रह न पाया.

    ReplyDelete
  39. बचपन की याद दिलादी आपने बहुत ही सुंदर रचना बधाई तो लेनी ही पड़ेगी

    ReplyDelete
  40. wow... beautiful...
    awesome...
    sab to theek hai, bt mai aaj bhi aeroplane banati hu papers ka... jo bhi poetry ya story ya article acchha ahi lagta, use uda deti hu hawa mei...

    ReplyDelete
  41. जीवन की सरिता में बहत
    थक कर खड़ा आज मैं तट पर.
    बहता समय देख कर सोचूँ,
    एक बार बचपन मिल जाये... kas! ye hi sach ho jaaye....

    ReplyDelete
  42. आपकी पोस्ट सोमबार १४/११/११ को ब्लोगर्स मीट वीकली (१७)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह हिंदी भाषा की सेवा अपनी रचनाओं के द्वारा करते रहें यही कामना है /आपका "ब्लोगर्स मीट वीकली (१७) के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें /आभार /

    ReplyDelete
  43. बचपन तो सच में अनमोल होता है
    सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार

    ReplyDelete
  44. बहुत भावपूर्ण |
    आशा

    ReplyDelete
  45. बचपन तो नही. हाँ, पर उसकी यादें लौट-लौट कर आती हैं...बहुत ही भावपूर्ण पोस्ट |

    ReplyDelete
  46. बारिस आती अब भी गलियों में.
    पर काग़ज़ की वो कश्ती ग़ुम है.

    बहुत सुन्दर भावों से परिपूर्ण रचना|

    ReplyDelete
  47. इसकी तलाश ताउम्र रहती है ...बहुत खूब लिखा है आपने ।

    ReplyDelete
  48. भावुक मन को ऐसी तलाश हमेशा रहती है !

    ReplyDelete
  49. @उंगली अगर पकड़ले बचपन, कुछ पल को बचपन आ जाये.

    बहुत सुन्दर!

    ReplyDelete
  50. दिल को छू लेने वाले भाव सजाये हैं आपने इस कविता में। बहुत अच्छी लगी कविता।

    माँ के आँचल में छुप जाना
    घुटनो के बल चलते-चलते
    बचपन था एक खेल सुहाना
    कहीं खो गया चलते-चलते।
    ..कभी लिखी कविता की ये पंक्तियाँ याद आ गईं आपकी कविता पढ़कर।




    कितनी दूर अभी है चलना

    ReplyDelete
  51. umra ka safarnama. bahut sundar abhivyakti...

    छोटी बातों में खुशियाँ थीं,
    कंचों ही का था ढ़ेर खज़ाना.
    काग़ज़ का एक प्लेन बनाकर,
    दुनियां भर में उड़ कर जाना.

    माँ के आँचल में छुप जाना
    घुटनो के बल चलते-चलते
    बचपन था एक खेल सुहाना
    कहीं खो गया चलते-चलते।

    shubhkaamnaayen.

    ReplyDelete
  52. काश यह सपना पूरा हो जाए ....
    प्यारी रचना के लिए आभार भाई जी !
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  53. जाना सभी छोड़ कर जग में,
    क्यों यह समझ नहीं मैं पाया.
    जैसा जग में आया निर्मल,
    वैसा ही क्यों मैं रह न पाया......shaandaar panktiyan...

    ReplyDelete
  54. जीवन की सरिता में बहते,
    थक कर खड़ा आज मैं तट पर.
    बहता समय देख कर सोचूँ,
    एक बार बचपन मिल जाये.

    मैं भी हमेशा यही चाहूँ...!
    काश एक बार तो यैसा हो जाये.... !

    ReplyDelete
  55. जीवन कितना सहज सरल था.
    मुझसे ले लो मेरी सब दौलत,
    माँ बस तेरा चुम्बन मिल जाये.........निशब्द किया आप की रचना ने.....

    ReplyDelete
  56. बहुत प्यारी कविता है..दिल भर आया...
    सादर नमन.

    ReplyDelete
  57. ek bar bachapan mil jaye
    bahut hi sundar abhivykti hai...

    ReplyDelete
  58. kaash bachpan hmara daman fir thaam le

    ReplyDelete
  59. जाना सभी छोड़ कर जग में,
    क्यों यह समझ नहीं मैं पाया.
    जैसा जग में आया निर्मल,
    वैसा ही क्यों मैं रह न पाया.

    ReplyDelete