Tuesday, November 29, 2011

अब मन बृज में लागत नाहीं

सूनी सूनी हैं अब ब्रज गलियाँ,
उपवन में न खिलती कलियाँ.
वृंदा सूख गयी अब वन में,
खड़ी उदास डगर पर सखियाँ.


जब से कृष्ण गये तुम बृज से,
अब मन बृज में लागत नाहीं.


माखन लटक रहा छींके पर,
नहीं कोई अब उसे चुराता.
खड़ीं उदास गाय खूंटे पर,
बंसी स्वर अब नहीं बुलाता.


तरस गयीं दधि की ये मटकी,
कान्हा अब कंकड़ मारत नाहीं.


क्यों भूल गये बचपन की क्रीडा,
क्यों भूल गये बृज की माटी तुम?
एक बार तुम मिल कर जाते,
यूँ होती नहीं गोपियाँ गुमसुम.


अंसुअन से स्नान करत अब,
यमुना तट पर जावत नाहीं.  

56 comments:

  1. bahut sunder abhivyakti.

    sach ab brij ki galiyan sooni hain har gopi krishn ki yaad me krishna hai.

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  2. क्या बात है ?..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  3. brij ke nandlala bagair brij kahan ... marm ukerti rachna...

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  4. बहुत ही सुंदर भाव ..............

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  5. कान्हा बिन अब सूना गोकुल।

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  6. कृष्णमय कर गयी यह सुन्दर रचना!

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  7. जब से कृष्ण गये तुम बृज से,
    अब मन बृज में लागत नाहीं.
    भावमयी प्रस्तुति....

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  8. बहुत सुन्दर .. दुःख में डूबी गोपियों का दर्द .. राधा की पीड़ा इस कविता में समाई है..

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  9. बेहतरीन अभिवयक्ति....

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  10. अब मन ब्रिज में ......../ अविस्मरनीय श्रधा ,समर्पण का मन जब विहवल हो परिकल्पप्नाओं को स्वर देता है तो मन उद्वेलित होता है ,ढूढता है ,अपना पाथेय ......../ बहुत सुन्दर सृजन /

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  11. क्यों भूल गये बचपन की क्रीडा,
    क्यों भूल गये बृज की माटी तुम?
    एक बार तुम मिल कर जाते,
    यूँ होती नहीं गोपियाँ गुमसुम.

    सूरदास दवारा रचित एक पद्य याद आ गया
    बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजें
    श्रद्धा भाव से ओतप्रोत रचना ..!

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  12. बहुत सुंदर भावों से सजी मनमोहक रचना .... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर अपप्का स्वागत है ...

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  13. बहुत सुंदर भावों से...बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति.....

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  14. आंसू से स्नान करत अब सब,
    यमुना तट पर जावत नाहीं.
    कैलाश जी गोपी विरह के भावो को आपने जीवन्त कर दिया…………बृज का कण कण पुकार रहा है आ जाओ सांवरिया तुम बिन सूनी सारी नगरिया………अद्भुत गंगा बहा दी। इससे बाहर आने को मन नही कर रहा।

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  15. कमाल का लिखा है आपने। एक दम से सूरदास याद आ गए।

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  16. सुंदर रचना....
    गहरे भाव....

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  17. गोपियों के विरह का यथार्थ चित्रण .. सुन्दर प्रस्तुति

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  18. सुंदर अभिवयक्ति..!


    मेरी नई कविता अनदेखे ख्वाब

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  19. आंसू से स्नान करत अब सब,
    यमुना तट पर जावत नाहीं.
    गोपियों के विरह का चित्रण .. सुन्दर प्रस्तुति

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  20. अपने चर्चा मंच पर, कुछ लिंकों की धूम।
    अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।।

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  21. वाह शर्मा जी आप ने तो ब्रज की सैर करा दी
    जय श्री कृष्ण

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  22. कान्हा बिन बृज की तड़पन को सटीक शब्द दिए हैं आपने.. धन्यवाद !!

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  23. नए शब्दों से परिचय हुआ ....
    सुंदर रचना रची है आपने...

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  24. वाह ...बहुत खूब लिखा है आपने ।

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  25. कृष्णमय...भाव पूर्ण भाव

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  26. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! मनमोहक प्रस्तुती!

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  27. मनोहर... सुन्दर गीत सर...
    सादर बधाईयां...

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  28. वाह !!! कैलाश जी,
    अद्भुत उपमा ,
    आंसू से स्नान करत अब सब,
    यमुना तट पर जावत नाहीं.

    ब्रज के सूनेपन का मार्मिक वर्णन.

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  29. बहुत सुन्दर.....उत्तम.
    जय श्री क्रष्ण.

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  30. क्यों भूल गये बचपन की क्रीडा,
    क्यों भूल गये बृज की माटी तुम?
    एक बार तुम मिल कर जाते,
    यूँ होती नहीं गोपियाँ गुमसुम।

    सचमुच बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

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  31. आदरणीय कैलाश जी भाईसाहब
    सादर प्रणाम !


    भक्ति रस में भीगी इस रचना के लिए आभार !
    क्यों भूल गये बचपन की क्रीडा
    क्यों भूल गये बृज की माटी तुम
    एक बार तुम मिल कर जाते
    यूं होती नहीं गोपियां गुमसुम

    अंसुअन से स्नान करत अब
    यमुना तट पर जावत नाहीं


    बहुत सुंदर ! मधुर ! मनहर !

    बधाई और मंगलकामनाएं …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  32. सुन्दर भाव, हृदयस्पर्शी रचना!

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  33. कैलाश जी,..
    बहुत अच्छी भावपूर्ण सुंदर रचना,..
    पोस्ट में आने के लिए आभार ,.

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  34. कैलाश जी
    बहुत ही सुन्दर रचना ... सच में अब बृज रुपी इस संसार में मन नहीं लगता है .. आपने भावो को इतने अच्छे शब्द दिए है कि क्या कहू.... आपको और आपकी लेखनी को नमन है ...

    बधाई !!
    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html

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  35. पढ़कर मन प्रसन्न हो गया.

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  36. माखन लटक रहा छींके पर,
    नहीं कोई अब उसे चुराता.
    खड़ीं उदास गाय खूंटे पर,
    बंसी स्वर अब नहीं बुलाता.

    कृष्ण के चले जाने से गोपियों का मन-आंगन सूना हो गया।
    बहुत सुंदर रचना।

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  37. जब से कृष्ण गये तुम बृज से,
    अब मन बृज में लागत नाहीं....

    गोपियों के दर्द को शब्द दे दिए आपने ... कृष्ण का मोह ही ऐसा है ... बहुत खूब .....

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  38. कान्हा बिन सब सून..मन की अटरिया और वृन्दावन की डगरिया ......

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  39. कान्हा बिन सब सून..मन की अटरिया और वृन्दावन की डगरिया ......

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  40. क्यों भूल गये बचपन की क्रीडा
    क्यों भूल गये बृज की माटी तुम
    एक बार तुम मिल कर जाते
    यूं होती नहीं गोपियां गुमसुम.

    कैलाश जी अपने तो प्रेम रस में सरावोर कर दिया. बहुत प्रेम पगी रचना.

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  41. its always a great pleasure to read about lord krishna...
    n above lines were just WOW !!

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  42. namaskar kailash ji .......
    bahut hi anupam prastuti . aapne to hamen braj ki yaad dila di .krishn aur braj ....dono hi chal-chitra ki tarah annkho ke samne ..........aa gaye . bahut -bahut badhai .

    http://sapne-shashi.blogsopt.com

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  43. बहुत अच्छी भावपूर्ण सुंदर रचना,..

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  44. जब से कृष्ण गये तुम बृज से,
    अब मन बृज में लागत नाहीं.bahut sundar.

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