बात जब तेरी उठी
दर्द हो गये हरे,
हो गये बयन निशब्द
नयन ताकते रहे.
थे तिरोहित कर दिये
नयन के सब अश्रु जल,
वक़्त की चादर तले
ढक दिये सब बीते पल.
रंग मेहंदी देख कर
कसक अंतस में जगी,
याद भी गहरा गयी
स्वप्न सालते रहे.
चाँद था आकाश में
चांदनी गुमसुम मगर.
था उजाला व्योम में
पर अंधेरी थी डगर.
दूर दीपक देख कर
आस फिर से जग गयी,
आस की धूमिल किरण
तिमिर ढांकते रहे.
मंजिल नहीं हर राह की,
कुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
लेजायें जाने किस गली.
नयन में सागर उठा
डूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.
कैलाश शर्मा
दर्द हो गये हरे,
हो गये बयन निशब्द
नयन ताकते रहे.
थे तिरोहित कर दिये
नयन के सब अश्रु जल,
वक़्त की चादर तले
ढक दिये सब बीते पल.
रंग मेहंदी देख कर
कसक अंतस में जगी,
याद भी गहरा गयी
स्वप्न सालते रहे.
चाँद था आकाश में
चांदनी गुमसुम मगर.
था उजाला व्योम में
पर अंधेरी थी डगर.
दूर दीपक देख कर
आस फिर से जग गयी,
आस की धूमिल किरण
तिमिर ढांकते रहे.
मंजिल नहीं हर राह की,
कुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
लेजायें जाने किस गली.
नयन में सागर उठा
डूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.
कैलाश शर्मा
चाँद था आकाश में
ReplyDeleteचांदनी गुमसुम मगर.
था उजाला व्योम में
पर अंधेरी थी डगर.
behtareen abhivyaktiyon ka guchchaa hai kavita
थे तिरोहित कर दिये
ReplyDeleteनयन के सब अश्रु जल,
वक़्त की चादर तले
ढक दिये सब बीते पल.
waah kya baat hai!!!! uncle bahut khub likha hai aapne shaandaar prastuti ....
मंजिल नहीं हर राह की,
ReplyDeleteकुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
लेजायें जाने किस गली.
.......सुन्दर प्रस्तुति|
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
Deleteशुक्रवारीय चर्चा मंच पर
charchamanch.blogspot.com
वाह...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना..
सादर.
रंग मेहंदी देख कर
ReplyDeleteकसक अंतस में जगी,
याद भी गहरा गयी
स्वप्न सालते रहे...गहन भाव
चाँद था आकाश में
ReplyDeleteचांदनी गुमसुम मगर.
था उजाला व्योम में
पर अंधेरी थी डगर....
सरल शब्दों में लय में बंधी उत्तम रचना ...
सुन्दर कविता...बहुत बढ़िया... अंतिम पंक्तिया दिल को छू रही हैं..
ReplyDeleteसुन्दर कविता...बहुत बढ़िया... अंतिम पंक्तिया दिल को छू रही हैं..
ReplyDeleteवक़्त की चादर तले
ReplyDeleteढक दिये सब बीते पल...
बहुत अच्छी रचना... आभार
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
रंग मेहंदी देख कर
ReplyDeleteकसक अंतस में जगी,
याद भी गहरा गयी
स्वप्न सालते रहे.
खूबसूरत अभिव्यक्ति!!
स्वप्न बांधते रहे और आस की धूमिल किरणों से भरते रहे..अच्छी लगी..
ReplyDeleteआपको लोहड़ी की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
कल 13/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआभार!
मंजिल नहीं हर राह की,
Deleteकुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
लेजायें जाने किस गली.
नयन में सागर उठा
डूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.
Behad sundar!
बात जब तेरी उठी
ReplyDeleteदर्द हो गये हरे,
हो गये बयन निशब्द
नयन ताकते रहे....बहुत सुन्दर ..हम भी निशब्द होगए..
अद्भुत अभिव्यक्ति, बस निशब्द हो पढ़ रहे हैं।
ReplyDeleteथे तिरोहित कर दिये
ReplyDeleteनयन के सब अश्रु जल,
वक़्त की चादर तले
ढक दिये सब बीते पल.
....बहुत सुन्दर गहन भावभिव्यक्ति !
रंग मेहंदी देख कर
ReplyDeleteकसक अंतस में जगी,
याद भी गहरा गयी
स्वप्न सालते रहे.
"स्वप्न झरे फूल से मीत चुभे शूल से..." वाह आपकी पंक्तियों से नीरज जी याद आ गए...बहुत सुन्दर रचना..बधाई
नीरज
श्रद्देय नीरज जी प्रारंभ से मेरे बहुत प्रिय कवि रहे हैं और उनकी रचनायें पढ़ और सुन कर बड़ा हुआ हूँ. लेकिन मैं उनकी रचनाओं की श्रेष्ठता के करीब पहुँचने की स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकता. आपको मेरी रचना पसन्द आयी, इसके लिये आभार.
DeleteVery Nice post
ReplyDeleteBahut badhiya rachna...
ReplyDeleteचाँद था आकाश में
ReplyDeleteचांदनी गुमसुम मगर.
था उजाला व्योम में
पर अंधेरी थी डगर.
मन के भावों को खूबसूरती से लिखा है
चाँद था आकाश में
ReplyDeleteचांदनी गुमसुम मगर.
था उजाला व्योम में
पर अंधेरी थी डगर.
मन के भावों को खूबसूरती से लिखा है
बात जब तेरी उठी
ReplyDeleteदर्द हो गये हरे,
हो गये बयन निशब्द
नयन ताकते रहे.
bahut sundar....bhav purn
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteसुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति,बधाई.
ReplyDeleteनयन में सागर उठा
ReplyDeleteडूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.
laajwaab.....
बात जब तेरी उठी
ReplyDeleteदर्द हो गये हरे,
हो गये बयन निशब्द
नयन ताकते रहे.
बहुत ही प्रभावी सम्प्रेषण.
सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteगहरे जज्बात।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुतिकरण।
नयन ताकते रहे, स्वप्न बांधते रहे ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
my heartfelt thanks for your motivation dear Kailash Sharmaji..and please do write more superb poems..u r a 'mahaan kavi'..God love u..
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण कविता .
ReplyDelete'चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.'
अर्थपूर्ण एवं चित्रात्मक प्रयोग !
बहुत ही खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रेम गीत...
ReplyDeleteबेबसी ,इंतज़ार और बेकरारी का आलम ही कुछ ऐसा बंधा ...कि शब्दों से रची रचना बेहद खूबसूरत बन गई ...
ReplyDeleteएहसास का सुन्दर स्वर
ReplyDeleteप्रकृति उपालंभ
:)
ReplyDeleteस्नेहसिक्त रचना
ReplyDeleteबात जब तेरी उठी
ReplyDeleteदर्द हो गये हरे,
हो गये बयन निशब्द
नयन ताकते रहे.excellent.
मंजिल नहीं हर राह की,
ReplyDeleteकुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
लेजायें जाने किस गली.
वाह ...सुन्दर पंक्तियाँ
बहुत अच्छी रचना,अंतिम ४ पंक्तियाँ सुंदर लगी,बेहतरीन ,...
ReplyDeleteनई रचना-काव्यान्जलि--हमदर्द-
बहुत ही उत्तम रचना, बधाई।
ReplyDeletebahut sundar kavita
ReplyDeleteसुंदर ..गुनगुनाने लायक ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सुंदर शब्द रचना , सुंदर भावाभिव्यक्ती ...
ReplyDeleteअति सुंदर रचना...
नयन में सागर उठा
ReplyDeleteडूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.
वाह अद्भुत भाव। आभार व मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें।
निशब्द करती खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteसादर.
मंजिल नहीं हर राह की,
ReplyDeleteकुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
लेजायें जाने किस गली.
..............NAMASKAR KAILASH JI . BAHUT SUNDER TAKTE NAYEN .ABHAR SUNDER RACHNA KE LIYE
नयन में सागर उठा
ReplyDeleteडूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.
एहसासों की सुंदर अभिव्यक्ति. एक और खूबसूरत प्रस्तुति. बधाई कैलाश जी.
बहुत ही उत्तम रचना|मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteभावविह्वल करती श्रेष्ठ रचना .
ReplyDeleteचाँद था आकाश में
चांदनी गुमसुम मगर.
था उजाला व्योम में
पर अंधेरी थी डगर.
मंजिल नहीं हर राह की,
ReplyDeleteकुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
लेजायें जाने किस गली.
उम्दा...
आपने बहुत ही खूबसूरती से संजोया है इन शब्दों को...
मेरे ब्लॉग पर आपका सादर आमन्त्रित करता हूँ...
baar baar padhne ko jee chahta hai
ReplyDeleteमंजिल नहीं हर राह की,
ReplyDeleteकुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
लेजायें जाने किस गली.
नयन में सागर उठा
डूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.
BAHUT HI SUNDAR KRITI LAGI BILKUL SANGRAHNEEY RACHANA ....NEERAJ JI KI RACHANA SE BHI GAMBHIR ......BADHAI
कोमल भावों को सहेजता सुंदर गीत।
ReplyDeletevery beautiful creation....!!!
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ती ...
ReplyDeleteगहन भावों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteचीथड़े टुकड़ों में हम
ReplyDeleteस्वप्न बांधते रहे.
एहसासों की... खूबसूरत प्रस्तुति बेहतरीन रचना के लिए आभार
चाँद था आकाश में
ReplyDeleteचांदनी गुमसुम मगर.
था उजाला व्योम में
पर अंधेरी थी डगर.....vaah...laajabaab..bahut khoobsurat rachna.padhne me thodi der ho gai maaf kijiyega.
kailash ji..bahut sundar likha hain aapne.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत और भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteपढकर दिल भावविभोर हो गया है.
प्रस्तुति के लिए आभार,कैलाश जी.
नयन में सागर उठा
ReplyDeleteडूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.
बहुत सुन्दर सर...
सादर बधाई.
नयन में सागर उठा
ReplyDeleteडूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.
बहुत बढ़िया गीत
रंग मेहंदी देख कर
ReplyDeleteकसक अंतस में जगी,
याद भी गहरा गयी
स्वप्न सालते रहे.
गहन भाव ....बहुत सुंदर रचना ....
दूर दीपक देख कर
ReplyDeleteआस फिर से जग गयी,
आस की धूमिल किरण
तिमिर ढांकते रहे.
ये आस कभी टूटे ना...भावपूर्ण रचना...
behad khubsoorat rachna
ReplyDeleteमंजिल नहीं हर राह की,
ReplyDeleteकुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
लेजायें जाने किस ग....aiseee sthiti utpann ho hee jaati hai...jandagi ke sangharsh aaur us darmyan uthi manah sthiti ka behtarin chitran...aapki ye chaar chaar laiyine cricket ke chauke kee tarah hai..ran bhee badhate hain aaur har bhar ontho se niklata hai wah...kamal hai..sadar badhayee aaur amantran ke sath
खूबसूरत !
ReplyDeleteदर्द तू बस हरा ही
क्यों है होता
दर्द अगर इंद्रधनुष होता
सात रंग देखता आदमी
दर्द कुछ भूलता
खुश कुछ तो होता !
मंजिल नहीं हर राह की,
ReplyDeleteकुछ राह हैं अंधी गली.
सब मोड़ हैं अनजान से,
ले जायें जाने किस गली.
नयन में सागर उठा
डूब साहिल भी गया,
चीथड़े टुकड़ों में हम
स्वप्न बांधते रहे.
बहुत सुंदर रचना