श्रीमद्भगवद्गीता का सन्देश सदैव ही जन मानस को प्रभावित करता रहा है और कई बार मन में विचार आया कि इसके भावों को सरल हिंदी पद्य में प्रस्तुत करूँ. लेकिन गीता के महत ज्ञान को अपने शब्दों में ढालने का साहस नहीं जुटा पाया. प्रभु की प्रेरणा से अंतर्मन से आवाज आयी कि अपना कर्म करना तुम्हारा दायित्व है, परिणाम के बारे में मत सोचो. मेरा प्रयास श्रीमद्भगवद्गीता के भावों को सरल और सहज हिंदी पद्य के रूप में प्रस्तुत करने का है. कितना सफल हो पाता हूँ इसका निर्णय तो प्रभु की इच्छा और आप के प्रोत्साहन पर निर्भर है.
प्रथम अध्याय
(अर्जुन विषाद योग - १.३२)
धृतराष्ट्र :
धर्मक्षेत्र इस कुरुक्षेत्र में, एक दूसरे के सम्मुख,
मेरे पुत्र और पांडव, हैं दोनों लडने को तत्पर.
देख नहीं सकतीं मेरी आँखें, क्या वहां हो रहा,
संजय वह दिखलाओ, तुम मेरी आँखें बनकर. (१.१)
धर्मक्षेत्र इस कुरुक्षेत्र में, एक दूसरे के सम्मुख,
मेरे पुत्र और पांडव, हैं दोनों लडने को तत्पर.
देख नहीं सकतीं मेरी आँखें, क्या वहां हो रहा,
संजय वह दिखलाओ, तुम मेरी आँखें बनकर. (१.१)
संजय:
गुरु द्रोण से बोला दुर्योधन,
देख व्यूह रचना पांडव की.
द्रुपद पुत्र ने व्यूह रचा है,
अक्षौहिणी सेना पांडव की. (१.२-३)
गुरु द्रोण से बोला दुर्योधन,
देख व्यूह रचना पांडव की.
द्रुपद पुत्र ने व्यूह रचा है,
अक्षौहिणी सेना पांडव की. (१.२-३)
भीमसेन और अर्जुन जैसे
इस सेना में श्रेष्ठ वीर
हैं.
युयुधान, विराट, द्रुपद भी
उन्ही समान ही शूरवीर
हैं. (१.४)
धृष्टकेतु, चेकितान, शैब्य
जैसे योद्धा महान हैं.
कुन्तिभोज व पुरुजित भी,
काशी नरेश वीर्यवान
हैं. (१.५)
वीर युधामन्यु, अभिमन्यु,
वीर्यवान उत्तम मौजा भी.
सब ही हैं श्रेष्ठ महारथी
पाँचों पुत्र द्रौपदी के
भी. (१.६)
हे द्विज श्रेष्ठ! हमारे
योद्धा
अब उनको भी आप जानिये.
वे हैं मेरी सेना के नायक,
उनके भी हैं नाम
जानिये. (१.७)
आप, भीष्म व कृपाचार्य हैं,
कर्ण और अश्वत्थामा भी हैं.
सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा
और विकर्ण सेना नायक
हैं. (१.८)
मेरे लिये प्राण दे सकते
ऐसे यहाँ अन्य योद्धा हैं.
शस्त्रों में हैं पूर्ण
निपुण
व युद्धकला के ज्ञाता
हैं. (१.९)
भीष्म और ऐसे वीरों से
अपनी असीम सेना है रक्षित.
भीम संरक्षित होने पर भी
पांडव सेना लेकिन सीमित. (१.१०)
सैन्यव्यूह के सब द्वारों
पर
अपने अपने स्थानों पर डट
कर.
करें भीष्म पितामह की रक्षा
आप सभी सब ओर से
मिलकर. (१.११)
परम
प्रतापी भीष्म पितामह
दुर्योधन मन
हर्षित करके.
संख बजाया ऊंचे स्वर में
संख बजाया ऊंचे स्वर में
भीषण सिंहनाद है करके. (१.१२)
उसके बाद अचानक सबने
अपना अपना शंख बजाया.
बजने लगे
नगाड़े, दुन्दुभि,
भेरी, तुरही से जग थर्राया. (१.१३)
भेरी, तुरही से जग थर्राया. (१.१३)
श्वेत अश्व वाले रथ पर
बैठ कृष्ण अर्जुन जब आये.
हृषिकेश, अर्जुन ने अपने
बैठ कृष्ण अर्जुन जब आये.
हृषिकेश, अर्जुन ने अपने
दिव्य शंख थे वहां बजाये. (१.१४)
ह्रषीकेश ने ‘पांचजन्य’,
अर्जुन ने ‘देवदत्त’ बजाया.
वृकोदरा भीम ने अपना
‘पौण्ड्र’ महाशंख बजाया. (१.१५)
कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने भी
‘अनन्तविजय’ शंख बजाया.
‘सुघोष’ शंख नकुल द्वारा
‘मणिपुष्पक’ सहदेव बजाया. (१.१६)
अपने अपने शंख बजाये,
महा धनुर्धर काशिराज ने.
सात्यकि व धृष्टद्युम्न ने
और विराट व शिखंडी ने. (१.१७)
हे राजन! राजा द्रुपद ने
और द्रौपदी के पुत्रों ने.
अपने अपने शंख बजाये,
महाबाहु अभिमन्यु ने. (१.१८)
सभी महारथियों ने जब
अपने अपने शंख बजाये.
गूंजे तुमुल घोष से नभ थल,
कौरव पुत्र ह्रदय थर्राये. (१.१९)
धृतराष्ट्र के सब पुत्रों को
अपने अपने शंख बजाये.
गूंजे तुमुल घोष से नभ थल,
कौरव पुत्र ह्रदय थर्राये. (१.१९)
धृतराष्ट्र के सब पुत्रों को
युद्धभूमि में खड़े देखकर.
अर्जुन ने अपना धनुष उठाया
शस्त्रास्त्र चलने को तत्पर. (१.२०)
हे राजन! तब ह्रषीकेश से
अर्जुन ने अनुरोध किया ये.
रथ को दोनों सेनाओं के
कृपया मध्य खड़ा कीजिये.
(१.२१)
अर्जुन
पहले इन सबको मैं देखलूँ
आये लेकर युद्ध कामना.
कौन कौन से योद्धा इनमें
जिनसे मुझे युद्ध है करना.
(१.२२)
जो धृतराष्ट्र पुत्र दुर्बुद्धि
दुर्योधन के हित को आये.
मैं उनको देखना चाहता
युद्धिभूमि में हैं जो आये. (१.२३)
संजय
हे राजन! अर्जुन कहने पर
माधव ने उस उत्तम रथ को.
मध्य में दोनों सेनाओं के
लाकर खड़ा कर दिया उसको. (१.२४)
भीष्म, द्रोण व राजाओं के
सम्मुख रथ स्थापित करके.
एकत्र कौरवों को तुम देखो
श्री कृष्ण बोले अर्जुन से. (१.२५)
कौरव दल पर नजर उठायी.
गुरु, आचार्य, पितामह के संग,
खड़े पुत्र, पौत्र, हितैषी, भाई. (१.२६)
देख बन्धु बांधव को सम्मुख,
गुरु, आचार्य, पितामह के संग,
खड़े पुत्र, पौत्र, हितैषी, भाई. (१.२६)
देख बन्धु बांधव को सम्मुख,
श्वसुर और हितैषी जन को.
देख इष्ट बंधुओं को युद्धोधत
अर्जुन बोले श्री कृष्ण को. (१.२७)
बंधु बांधव खड़े देख कर
अर्जुन करुणायुक्त हो गये.
होकर के अवसाद से पूरित,
वे ग्लानि से व्यथित हो गये. (१.२८)
अर्जुन
कृष्ण देख इनको युद्धोद्दत,
हाथ पैर हैं शिथिल हो रहे.
सूख रहा अवसाद से मुंह है
हाथ पैर हैं शिथिल हो रहे.
सूख रहा अवसाद से मुंह है
कम्पित
हैं मेरे गात हो रहे. (१.२९)
फिसल रहा गांडीव हाथ से
और त्वचा संतप्त हो रही.
कठिन खड़ा होना पैरों पर,
मेरी बुद्धि भ्रमित हो रही. (१.३०)
और त्वचा संतप्त हो रही.
कठिन खड़ा होना पैरों पर,
मेरी बुद्धि भ्रमित हो रही. (१.३०)
नजर अपशकुन आते मुझको,
स्वजन मार कर क्या हित होगा?
नहीं चाहता विजय, राज्य सुख,
क्या सुख इनको पाकर के होगा? (१.३१ )
स्वजन मार कर क्या हित होगा?
नहीं चाहता विजय, राज्य सुख,
क्या सुख इनको पाकर के होगा? (१.३१ )
मुझको नहीं विजय की इच्छा.
नहीं राज्य सुख भोग कामना.
राज्य, भोग और जीवन से
माधव कहो हमें क्या करना. (१.३२)
.........क्रमश:
कैलाश शर्मा
bahut sundar kaelashji dhanyavad jo aapne saral bhasha men ise post kiya .aabhar.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteवाह, अद्भुत भावानुवाद, लगा संस्कृत जैसा ही पढ़ रहा हूँ।
ReplyDeleteवाह बेहद खूबसूरत.....बहुत सुन्दरता से ढाला है आपने शब्दों में ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर......
ReplyDeleteभाषा आसान होने से रुचिकर भी लगता है...
आभार आपका.
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteआकर्षक भागवद पद्यांश ,,,यथेष्ट अनुराग व मानयोग सृजन शुभकामनयें सर /
ReplyDeleteआभार ।
ReplyDeleteवाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,..अद्भुत भावानुवाद, प्रभावी रचना,..
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
अति सुंदर भावानुवाद .....
ReplyDeleteक्या बात है!! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteइसे देखें-
फेरकर चल दिये मुँह, था वो बेख़ता यारों!
आईना अब भी देखता है रास्ता यारों!!
सफल ,सुंदर प्रस्तुति और भावपूर्ण भावानुवाद..
ReplyDeleteएक संपूर्ण पद्यानुवाद यहाँ भी है -
ReplyDeletehttp://www.rachanakar.org/2011/12/blog-post_18.html
कृपया देखें
बहुत सुंदर...आभार
Deletebahut sundar prayas...Kailash ji....badhai..
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावानुवाद !
ReplyDeletesach koi bhi rachna jitni durah hoti hai use padhne wale, samjhne wale utne kam hote hai... aapki yah saral shabdon mein geetawali bahut achhi lagi..
ReplyDeleteHaardik shubhkamnaon sahit..sadar
आपने तो इसे बहुत सटीक भावार्थ के साथ अपने शब्दों में उतार दिया ... बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
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