भूल कर शिकवे गिले, आओ गले आज मिलें,
थाम लो तुम हाथ मेरा, आओ चलो साथ चलें.
रंग बिखरे हैं आज बागों में,
आओ कुछ फूल जूड़े को चुन लें.
गीत गाती हैं ये हवायें भी,
आओ कुछ गीत प्यार के सुन लें.
शिकायतें कल की, मिल के कल सुलझा लेंगे,
ख़ुशनुमा आज है, क्यों न इसे मिलकर जीलें.
रात अंधियारी आज न होगी,
चाँद रुकने को आज सहमत है.
नज़र ज़माने की न फ़िक्र करो,
उसे तो प्यार से हमेशा नफ़रत है.
खेलने दो उंगलियाँ मेरी, गेसुओं को नहीं शिकायत है,
बंद करके स्वप्न मुट्ठी में, किसी नयी डगर पर निकलें.
ख़्वाब जागे हैं आज फिर दिल में,
अश्क बनकर क्यों इनको ढलने दें.
आज जब डगर खुशनुमां इतनी,
क्यों न कदमों को आज चलने दें.
चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
वक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.
कैलाश शर्मा
आदरणीय महाशय के चरणों में मै अपना शीश झुकता हूँ.. बेहद भावुक रचनाएँ है आपकी.. जब मैंने अपने दादाजी को ( जो 85 वर्ष के है )आपकी रचनाएँ सुनाईं तो उन्होंने भी काफी पसंद किया था आपको.. मेरा प्रणाम स्वीकार करें और आशीर्वाद दें..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार..
Deleteसुन्दर अति सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर ,कोमल भावाभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनायें ....
रंग बिखरे हैं आज बागों में,
ReplyDeleteआओ कुछ फूल जूड़े को चुन लें.
गीत गाती हैं ये हवायें भी,
आओ कुछ गीत प्यार के सुन लें.
वाह बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ...आभार
चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
ReplyDeleteवक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.....बहुत सुन्दर .
वाह!!!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर...........
रात अंधियारी आज न होगी,
चाँद रुकने को आज सहमत है.
नज़र ज़माने की न फ़िक्र करो,
उसे तो प्यार से हमेशा नफ़रत है.
बेहद खूबसूरत..........
सादर.
बेहद खुबसुरती से भावों को उकेरा है ..बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteआज जब डगर खुशनुमां इतनी,
ReplyDeleteक्यों न कदमों को आज चलने दें.
प्रेरक रचना ... बहुत खूबसूरत
बेहद खूबसूरत भाव या कहिये मखमली रचना ...बहुत खूब
ReplyDeleteचाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
ReplyDeleteवक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलेंगे .... आज तो जीने दो
शिकायतें कल की, मिल के कल सुलझा लेंगे,
ReplyDeleteख़ुशनुमा आज है, क्यों न इसे मिलकर जीलें……सकारात्मकता लिये बेहद उम्दा रचना ……वर्तमान का महत्त्व बताती हुयी
बेहद खूबसूरत रचना ...बहुत खूब
ReplyDeleteवाह, बस पढ़ते गये और डूबते गये।
ReplyDeleteशिकायतें कल की, मिल के कल सुलझा लेंगे,
ReplyDeleteख़ुशनुमा आज है, क्यों न इसे मिलकर जीलें.
बेहद खूबसूरत रचना .........
Wah, Bahut khub sir:-)
ReplyDeleteItni sundar rachnakee tareef ke liye alfaaz nahee!
ReplyDelete@ अंधेरी रात में कैसे निकलें
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अंदाज़ ...
चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
ReplyDeleteवक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.
बढ़िया प्रस्तुति भाई साहब सुन्दरम मनोहरं -.
कृपया यहाँ भी पधारें
रविवार, 29 अप्रैल 2012
परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब
http://veerubhai1947.blogspot.in/
रविवार, 29 अप्रैल 2012
महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शोध की खिड़की प्रत्यारोपित अंगों का पुनर चक्रण
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/शुक्रिया .
आरोग्य की खिड़की
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behtarin, lajab rachna
ReplyDeleteचाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
ReplyDeleteवक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकले,...
वाह !!!! बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट कैलाश जी
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
बहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
चाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
Deleteवक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.
बहुत खूब सर
ख़ूबसूरत भाव लिए रचना बहुत अच्छी लगी |}
Deleteआशा
मन के तार को छेड़ दिया सुन्दर रचना ने..
ReplyDeleteचाँद को आज मत छेड़ो, आगोश चांदनी में खुश है,
ReplyDeleteवक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.
अनुपम भाव संयोजित किए हैं आपने इस रचना में ।
वक़्त होगा कभी तो पूछेंगे, अंधेरी रात में कैसे निकलें.....बहुत सुन्दर भाव !
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR .AABHAR
ReplyDeleteek sama sa bandhti hai post.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रोमानी सा गीत...
ReplyDeleteरात अंधियारी आज न होगी,
ReplyDeleteचाँद रुकने को आज सहमत है.
नज़र ज़माने की न फ़िक्र करो,
उसे तो प्यार से हमेशा नफ़रत है.
वाह बहुत सुंदर कोमल भावों से सजी खूबसूरत रचना...
भूल कर शिकवे गिले, आओ गले आज मिलें,
ReplyDeleteथाम लो तुम हाथ मेरा, आओ चलो साथ चलें.
जीवन का दर्शन छिपाए है यह संक्षिप्त सी रचना .जीवन है भी आगे की ओर , जो बीत गया सो बीत गया ,कहीं शिकवे शिकायतों में ही रात ढल जाए .?
कृपया यहाँ भी पधारें
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
सावधान !आगे ख़तरा है
सावधान !आगे ख़तरा है
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रविवार, 29 अप्रैल 2012
परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब
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रविवार, 29 अप्रैल 2012
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आरोग्य की खिड़की
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sunder andaz.....
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत एहसास
ReplyDeleteलफ्जों के ये नगीने तो निकले कमाल के
ग़ज़लों ने खुद पहन लिए ज़ेवर ख्याल के ||
रात अंधियारी आज न होगी,
ReplyDeleteचाँद रुकने को आज सहमत है....
बहुत खूब .... दिलकश रचना है ...
behad khoobsurat bhav piroye sunder rachna..
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