सातवाँ अध्याय
(ज्ञानविज्ञान-योग-७.१३-२३)
त्रिगुण भाव से मोहित होकर,
सारा जगत भ्रमित है रहता.
लेकिन मेरे अव्यय स्वरुप से,
इस कारण अनजान है रहता. (१३)
मेरी दैवी गुणमयी ये माया,
पार है मुश्किल से कर पाते.
जो आता है शरण में मेरी
वे दुस्तर माया से तर जाते. (१४)
अधम,मूर्ख,दुष्कर्मी जन का
ज्ञान नष्ट माया से होता.
मेरी शरण नहीं वह आता,
जो आसुरी स्वभाव का होता. (१५)
सत्कर्मी जो मुझको भजते
साधक चार प्रकार के होते.
पीड़ित दुःख से या जिज्ञासु,
धन इक्षुक या ज्ञानी होते. (१६)
ज्ञानी भक्त श्रेष्ठ इन सब में,
भक्ति अनन्य,एकाग्र है रहता.
बहुत अधिक उसे मैं प्रिय हूँ,
वह भी मुझे बहुत प्रिय रहता. (१७)
सभी भक्त महान हैं होते,
लेकिन ज्ञानी मेरा स्वरुप है.
हो एकाग्र चित्त वो मुझ में
माने मुझमें ही परमगति है. (१८)
कई जन्म लेने के बाद में,
समझे जग वासुदेव रूप है.
मुझे प्राप्त होता वह ज्ञानी,
पर ऐसा महात्मा दुर्लभ है. (१९)
नष्ट ज्ञान कामनाओं से,
अन्य देव की शरण में जाते.
वशीभूत अपने स्वभाव से
विहित नियम उनके अपनाते. (२०)
भक्त जो जिस देवमूर्ति की
पूरी श्रद्धा से पूजा है करता.
उस उस भक्त की श्रद्धा को
मैं उस देव में स्थिर करता. (२१)
उस श्रद्धा से युक्त है होकर
देव है जिसको वह अराधता.
उससे ही वांक्षित फल पाता,
लेकिन मैं ही वह फल दाता. (२२)
अल्पबुद्धि इन भक्तों को
पाने वाला फल नश्वर है.
पूजक देव उन्हें ही पाते,
मुझको पाते मेरे भक्त हैं. (२३)
......क्रमशः
कैलाश शर्मा
बहुत सुन्दर... ज्ञान का अपार भंडार है आपके शब्दों में ... आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (01-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
ReplyDeleteअधम,मूर्ख,दुष्कर्मी जन का
ज्ञान नष्ट माया से होता.
मेरी शरण नहीं वह आता,
जो आसुरी स्वभाव का होता. (१५)
अति भाव पूर्ण सांगीतिक प्रस्तुति अर्थ पूर्ण कथात्मक .
तीन गुणों से बँधे हुये हम।
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ReplyDeleteगीता में ज्ञान का अपार भण्डार है
ReplyDeleteउसे अपने शब्दों को काव्य में रचकर मिसाल बना दिया,
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई,,,
RECENT POST,परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletenamaskaar ksilash ji
ReplyDeletebahut sundar ...aapke paas gyan ka bhandaar hai .... shabdo ka khajana .....badhai aapko
कैलाश जी आपकी ब्लॉग पर ही गीता का ज्ञान मिल रहा है वैसे तो कभी पढ़ी नहीं बहुत अच्छा लिखते हैं आप हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteएक लम्बे अंतराल के बाद कृपया इसे भी देखें-
जमाने के नख़रे उठाया करो
सर बहुत ही सराहनीय कार्य |उम्दा पद्यानुवाद |
ReplyDeleteकई जन्म लेने के बाद में,
ReplyDeleteसमझे जग वासुदेव रूप है.
मुझे प्राप्त होता वह ज्ञानी,
पर ऐसा महात्मा दुर्लभ है
बेहद सुन्दर और बेहतरीन......सुन्दर प्रस्तुति