Tuesday, August 28, 2012

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (२९वीं-कड़ी)

       सातवाँ अध्याय 
(ज्ञानविज्ञान-योग-७.१-१२

श्री भगवान 

पार्थ लगा मन पूर्ण रूप से
यदि तुम योगाभ्यास करोगे.
मेरे आश्रय में निश्चित ही 
तुम मेरा समग्र रूप जानोगे.  (१)

विज्ञान सहित जो तत्व ज्ञान है,
मैं सम्पूर्ण हूँ वर्णन करता.
जिसे जान लेने पर जग में,
कुछ और जानने योग्य न बचता.  (२)

मनुज सहस्त्रों में से कोई
एक सिद्धि को यत्न है करता.
सिद्धि यत्न करने वालों में,
मेरा तत्व कोई एक समझता.  (३)

है विभक्त आठ भेदों में 
मेरी प्रकृति जान लो अर्जुन.
पृथ्वी, जल, अग्नि व नभ, 
वायु, बुद्धि, दम्भ और मन.  (४) 

जो है विभक्त आठ भेदों में 
वह मेरी निक्रष्ट प्रकृति है.
जिससे जग हूँ धारण करता,
जीव रूप वह श्रेष्ठ प्रकृति है.  (५)

मेरी ही इन दोनों प्रकृति से
समस्त विश्व उत्पन्न है होता.
मैं ही सृजक सम्पूर्ण विश्व का,
एवं मैं ही उसका संहारक होता.  (६)

नहीं उच्चतर मुझसे अर्जुन
कोई वस्तु है सर्व विश्व में.
धागे में मनकों के जैसा 
विश्व पिरोया हुआ है मुझमें.  (७)

जल में स्वाद,प्रभा रवि शशि में,
हूँ ओंकार समस्त वेदों में.
शब्द हूँ मैं आकाश में अर्जुन,
व पुरुषत्व सभी पुरुषों में.  (८)

मैं पवित्र गंध पृथ्वी में,
व अग्नि में तेज भी मैं हूँ.
जीवन हूँ मैं सब प्राणी में
और तपस्वियों में तप हूँ.  (९)

सर्व चराचार जग का अर्जुन
बीज सनातन मुझे ही जानो.
बुद्धिमान की बुद्धि भी मैं हूँ,
तेजस्वी का तेज भी मानो.  (१०)

रहित काम और राग से जो हैं 
उन बलशाली का बल भी मैं हूँ.
जो अनुकूल धर्म के रहता 
प्राणीजन में वह काम भी मैं हूँ.  (११)

सत्, रज, तम भाव भी अर्जुन,
मुझ से ही उत्पन्न हैं मानो.
मैं न कभी आधीन हूँ उनके,
उनको मेरे आधीन ही जानो.  (१२)

          ........क्रमशः

कैलाश शर्मा 

16 comments:

  1. आपका यह प्रयास बेहद सराहनीय है ...बहुत - बहुत आभार इस प्रस्‍तुति के लिए

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  2. मैं पवित्र गंध पृथ्वी में,
    व अग्नि में तेज भी मैं हूँ.
    जीवन हूँ मैं सब प्राणी में
    और तपस्वियों में तप हूँ.
    बहुत सुन्दर.....आभार..

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  3. वाह वाह बहुत ही सुन्दर व्याख्या की है।

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  4. सत्, रज, तम भाव भी अर्जुन,
    मुझ से ही उत्पन्न हैं मानो.
    मैं न कभी आधीन हूँ उनके,
    उनको मेरे आधीन ही जानो.
    नतमस्तक हूँ आपके इस प्रयास पर !

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  5. रहित काम और राग से जो हैं
    उन बलशाली का बल भी मैं हूँ.
    जो अनुकूल धर्म के रहता
    प्राणीजन में वह काम भी मैं हूँ....

    मैं ही मैं हूँ ... प्रभु कृष्ण के बोलों को जन जन तक आम भाषा में पहुंचाने का आपका प्रयास सराहनीय है ...
    अनुपम व्याख्या है ...

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  6. बेहतरीन प्रस्‍तुति.....

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  7. बहुत ही सुन्दर व्याख्या

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  8. पढ़ने का आनन्द अवर्णनीय है।

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  9. बाल गीतकार ब्लोगर सम्मान आपको नहीं मिलेगा तो फिर किसे मिलेगा जिसने बाल गीतों को बोध कथा की सीख और सांगीतिकता एक साथ दी .बधाई भाई साहब !
    ब्लोगर सम्मान मुबारक !कैंटन (मिशगन )के शतश :प्रणाम !नेहा एवं आदर सेवीरुभाई .
    बुधवार, 29 अगस्त 201
    मिलिए डॉ .क्रैनबरी से
    मिलिए डॉ .क्रैनबरी से

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया...

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  10. विज्ञान सहित जो तत्व ज्ञान है,
    मैं सम्पूर्ण हूँ वर्णन करता.
    जिसे जान लेने पर जग में,
    कुछ और जानने योग्य न बचता. (२)
    वाह क्या सारल्य है भाई साहब .बहुत बढ़िया भावनुवाद /काव्यानुवाद चल रहा है .मूल रचना सा सशक्त .बधाई लखनऊ सम्मान .

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  11. जल में स्वाद,प्रभा रवि शशि में,
    हूँ ओंकार समस्त वेदों में.
    शब्द हूँ मैं आकाश में अर्जुन,
    व पुरुषत्व सभी पुरुषों में.

    कितना अद्बुत ज्ञान है यह..सारा जगत प्रभुमय है, आभार!

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  12. मैं ही सृजक संपूर्ण विश्व का
    एवं मैँ ही उसका संहारक होता ।
    बहुत उत्तम पद्यानुवाद.....।
    शुभकामनाएं ।

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  13. श्रीकृष्ण सर्वत्र है....
    शर्मा जी आपकी कृष्ण भक्ति
    उत्कृष्ट है....
    आपको साधुवाद...

    सप्रेम हरि स्मरण...
    आभार राधे राधे

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  14. अभी आता ही होगा
    साँवरा मेरा,
    मैं राह उसी की
    तका करता हूँ ।
    कविता सविता
    नहीं कुछ जाँनू ,
    मन में जो आया
    सो बका करता हूँ ।।

    प्रेम से कहो श्रीराधे
    जय श्री कृष्ण

    हरीबोल

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