आते हैं याद
हीर और रांझा,
शीरीं और फ़रहाद,
लैला और मज़नू
और न जाने कितने अनाम प्रेमी
जिनका अद्वितीय प्रेम
बहुत था ऊँचा
शारीरिक आकर्षण से
और दे दी थी जान
एक दूसरे के लिये.
प्यार पहले भी करते थे
चाहत पहले भी थी,
कभी कभी होती थी
एक तरफ़ा भी,
पर नहीं लांघते मर्यादा
कभी प्यार की,
प्यार सिर्फ़ प्यार था
न कुछ कम न ज़्यादा.
प्यार के बीच दीवारें
पहले भी खड़ी होती थीं
दिल पहले भी टूटते थे,
लेकिन नहीं चाहा कभी
हो प्यार अपना बदनाम
या उठे कोई उंगली उस पर.
छुपा कर अपना दर्द
और पी कर अपने आंसू
दफ़न कर देते अपना प्रेम
दिल के एक अँधेरे कोने में,
जहां से झाँक उठती
कभी वे यादें
जिन्हें दबा देते
अकेले में कुछ आंसू बहाकर.
कहाँ गया वह प्यार?
शारीरिक आकर्षण बन गया
प्रेम का पर्यायवाची,
दिलों का मिलन
एक दिवास्वप्न,
किसी तरह
पाने की चाहत सर्वोपर.
और उस चाहत को
करने को पूरा
सभी तरीके जायज़.
प्यार नहीं मुहताज़
उसकी मर्ज़ी का,
अगर मैं चाहूँ उसे पाना
तो बनना होगा
उसे सिर्फ़ मेरी ही,
वरना वीभत्स कर दूँगा
चेहरा तेजाब से,
कर दूँगा छलनी सीना
गोलियों से
और करूँगा यही हाल उसका
जो बनेगा दीवार बीच में.
मैं देवदास नहीं
जो देखता रहे अपनी पारो को
किसी और की होते.
हां, यही है मेरा प्यार
अगर नहीं वह मेरी
तो नहीं बन पायेगी
किसी और की,
और उसे मरना होगा
मेरे प्यार के लिये.
कैलाश शर्मा
हीर और रांझा,
शीरीं और फ़रहाद,
लैला और मज़नू
और न जाने कितने अनाम प्रेमी
जिनका अद्वितीय प्रेम
बहुत था ऊँचा
शारीरिक आकर्षण से
और दे दी थी जान
एक दूसरे के लिये.
प्यार पहले भी करते थे
चाहत पहले भी थी,
कभी कभी होती थी
एक तरफ़ा भी,
पर नहीं लांघते मर्यादा
कभी प्यार की,
प्यार सिर्फ़ प्यार था
न कुछ कम न ज़्यादा.
प्यार के बीच दीवारें
पहले भी खड़ी होती थीं
दिल पहले भी टूटते थे,
लेकिन नहीं चाहा कभी
हो प्यार अपना बदनाम
या उठे कोई उंगली उस पर.
छुपा कर अपना दर्द
और पी कर अपने आंसू
दफ़न कर देते अपना प्रेम
दिल के एक अँधेरे कोने में,
जहां से झाँक उठती
कभी वे यादें
जिन्हें दबा देते
अकेले में कुछ आंसू बहाकर.
कहाँ गया वह प्यार?
शारीरिक आकर्षण बन गया
प्रेम का पर्यायवाची,
दिलों का मिलन
एक दिवास्वप्न,
किसी तरह
पाने की चाहत सर्वोपर.
और उस चाहत को
करने को पूरा
सभी तरीके जायज़.
प्यार नहीं मुहताज़
उसकी मर्ज़ी का,
अगर मैं चाहूँ उसे पाना
तो बनना होगा
उसे सिर्फ़ मेरी ही,
वरना वीभत्स कर दूँगा
चेहरा तेजाब से,
कर दूँगा छलनी सीना
गोलियों से
और करूँगा यही हाल उसका
जो बनेगा दीवार बीच में.
मैं देवदास नहीं
जो देखता रहे अपनी पारो को
किसी और की होते.
हां, यही है मेरा प्यार
अगर नहीं वह मेरी
तो नहीं बन पायेगी
किसी और की,
और उसे मरना होगा
मेरे प्यार के लिये.
कैलाश शर्मा
सात्विक प्यार आज भी है ,जो स्वार्थरहित होता है -
ReplyDeleteपर आकर्षण,फैशन को प्रेम का नाम देकर देनेवालों ने प्रेम के साथ अन्याय किया है
सर वो प्रेम आज के प्रेम से परे था, परे है और परे ही रहेगा. बहरहाल बेहद सुन्दर रचना है आपने सात्विक प्रेम को हमसे रूबरू करवाया आपका धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteअनुपम भाव लिये ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआज प्यार के यही मायने है,,,,प्यार सिर्फ शारीरिक आकर्षण बन कर रह गया है,,,,
ReplyDeleteअगर मैं चाहूँ उसे पाना
तो बनना होगा
उसे सिर्फ़ मेरी ही,
वरना वीभत्स कर दूँगा
चेहरा तेजाब से,,,,,,बेहतरीन भावमय प्रस्तुति,,,,,कैलाश जी बधाई,,,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
वो दुनिया के लिए 'दो' हो सकते हैं संबोधन के लिए, मगर सच्चा प्यार तो 'एक रूप' होता है, उसमें किसी को अलग से पहचान की मांग नहीं रहती.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना आभार
aaj kal to prem ke naam par sirf khilwad hi hai..
ReplyDeletemile to apne nahi to kisi ka hone nahi denge....
yahi sab ho raha hai..
sarthak , satik rachana....
आदर्शों का प्यार और आज के आदर्श..
ReplyDeleteप्यार में स्वार्थ आ गया...फिर वह प्यार कहाँ?
ReplyDeleteहमारे वक्त का सारा विद्रूप इस रचना में मुखरित हुआ है .अब लम्पटगीरी भी माई वेलेंटाइन,माई लव कहलाता है।मासूम चेहरे पे तेज़ाब फैंकने वाला
ReplyDeleteलम्पट परले दर्जे का अपराधी प्रेमी कहलाता है न्यूज़ बनती बनती है -प्रेमी ने प्रेमिका के चेहरे पे तेज़ाब फैंका .यह भाषा का दिवालिया पन है .
इसी दौर में सहज दैहिक आकर्षण पर पहरा है .नृशंस ह्त्या को कह देतें हैं आनर किलिंग .अरे भैया कैसा आनर ?यह तो डिसआनर है क़ानून व्यवस्था का .
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी ,आपका स्वागत है |
ReplyDeleteजहाँ सच्चा प्यार होता है ...वहाँ आज भी आँखों की ज़बानी ही बातें होती है...
ReplyDelete~ज़िंदगी भले किसी और के नाम हो जाए...
दिल में बसी...सिर्फ़ वही एक कहानी होती है...
~सादर !
प्यार तो प्यार होता है, क्या आज, क्या कल प्यार तो शाश्वत होता है। प्यार में क्या शर्त, क्या लेन-देन, प्यार तो बस समर्पण ही होता है।
ReplyDeleteआज प्यार के नाम पर अपने अहंकार को जीताना है..सुन्दर रचना.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteऐसा करने वाले लोग विकृत मानसिकता के होते हैं .... इसे प्यार नहीं कहा जा सकता ... आज की सच्चाई को कह रही है आपकी रचना
ReplyDeleteतो बनना होगा
ReplyDeleteउसे सिर्फ़ मेरी ही,
वरना वीभत्स कर दूँगा
चेहरा तेजाब से,
कर दूँगा छलनी सीना
गोलियों से
चिंतनीय स्थिति ही ....क्या कहें इसे कि संस्कारों की कमी
हमारे वक्त का सारा विद्रूप इस रचना में मुखरित हुआ है .अब लम्पटगीरी भी माई वेलेंटाइन,माई लव कहलाता है।मासूम चेहरे पे तेज़ाब फैंकने वाला
ReplyDeleteलम्पट परले दर्जे का अपराधी प्रेमी कहलाता है न्यूज़ बनती बनती है -प्रेमी ने प्रेमिका के चेहरे पे तेज़ाब फैंका .यह भाषा का दिवालिया पन है .
इसी दौर में सहज दैहिक आकर्षण पर पहरा है .नृशंस ह्त्या को कह देतें हैं आनर किलिंग .अरे भैया कैसा आनर ?यह तो डिसआनर है क़ानून व्यवस्था का .
हमारे वक्त का सारा विद्रूप इस रचना में मुखरित हुआ है .अब लम्पटगीरी भी माई वेलेंटाइन,माई लव कहलाता है।मासूम चेहरे पे तेज़ाब फैंकने वाला
लम्पट परले दर्जे का अपराधी प्रेमी कहलाता है न्यूज़ बनती बनती है -प्रेमी ने प्रेमिका के चेहरे पे तेज़ाब फैंका .यह भाषा का दिवालिया पन है .
इसी दौर में सहज दैहिक आकर्षण पर पहरा है .नृशंस ह्त्या को कह देतें हैं आनर किलिंग .अरे भैया कैसा आनर ?यह तो डिसआनर है क़ानून व्यवस्था का
प्यार ढक गया है
ReplyDeleteसामान की चकाचौंध से !
प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति......
ReplyDeleteaaj ke pyar ki sashakt paaribhasha di hai. sach me pyar ek doshpoorn durvyan aur vyaparik roop le raha hai. man ki nirmalta, sadgi aur sacchayi se iska door door tak koi vasta nahi raha.
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति.....|
ReplyDeleteप्यार शर्तो पर नही फलता..सुन्दर भाव..
ReplyDeleteBahut hee achhee rachana!
ReplyDeleteसत्य के धरातल पर प्यार ...बिना छल कपट पर ये परवान चढ़ेगा क्या ?
ReplyDeleteबहुत ही खूब |
ReplyDeleteसादर |
असली चीज़ें सामने कहाँ आतीं हैं,मुलम्मेवाली ही सब जगह दिखती हैं !
ReplyDeletebahut sundar yehi vastvikata hai aaj ki ....
ReplyDeleteउत्कृष्ट खुबसूरत अभिवयक्ति.....|
ReplyDeletehttp://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post_17.html
not so creative line but true lines.
ReplyDeleteआते हैं याद
ReplyDeleteहीर और रांझा,
शीरीं और फ़रहाद,
लैला और मज़नू
और न जाने कितने अनाम प्रेमी
जिनका अद्वितीय प्रेम
बहुत था ऊँचा
शारीरिक आकर्षण से
और दे दी थी जान
एक दूसरे के लिये.
ऐसा प्यार आज भी है
जहाँ खुद को गवां अपने यार में अपना अक्स पहचाना है !!
क्यूंकि प्यार में होता है सदा देना ही देना
सोचना भी नहीं कुछ है लेना !!
यही बयान करती पोस्ट
चार दिन ज़िन्दगी के .......
बस यूँ ही चलते जाना है !!
आज 29/10/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteसुंदर रचना... मैंने प्रत्येक हिंदी प्रेमी को एक मंच देने के लिये एक समूह बनाया है इस समूह में आप भी शामिल हो... अधिक जानकारी के लिये... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com
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