Tuesday, March 19, 2013

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (४७वीं कड़ी)

मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश: 

        ग्यारहवाँ अध्याय 
(विश्वरूपदर्शन-योग-११.३५-४६


संजय: 
राजन, केशव वचनों को सुनकर
किया प्रणाम था कंपित कर से।
नमस्कार पूर्वक था अर्जुन बोला 
भय और हर्ष से रुधित गले से.  (११.३५)


अर्जुन:
सुनकर कीर्ति आपकी भगवन 
न केवल मैं, यह विश्व है हर्षित.
राक्षस भाग रहे सब भय से,
और सिद्धगण नमित व हर्षित.  (११.३६)

क्यों न नमन ये करें आपको,
आप तो ब्रह्मा से महान हैं.
आप ही अक्षर हैं परमेश्वर 
सत् व असत् व परे आप हैं.  (११.३७)

आदि देव व पुराण पुरुष हैं
परम निधान आप ही जग के.
आप ही ज्ञाता, आप ज्ञेय हैं,
व्याप्त हैं कण कण में जग के.   (११.३८)

आप ही अग्नि यम वायु वरुण हैं,
आप प्रजापति, प्रपितामह आप हैं.
सहस्त्र नमस्कार आपको भगवन,
बारंबार आपको प्रभु नमस्कार हैं.  (११.३९)

सर्व दिशा से नमन आपको,
सामर्थ्य आपकी प्रभु अनंत है.
व्याप्त किये हैं सर्व जगत को,
आप अतः प्रभु सर्व रूप हैं.  (११.४०)

हे कृष्ण यादव मित्र संबोधन
सखा आपको मान मैं बोला.
महिमा से अज्ञान हे भगवन! 
मैं यह प्रमाद, प्रेमवश बोला.  (११.४१)

हास परिहास या दिनचर्या में 
किया हो यदि अपमान आपका.
हे अच्युत! हे अप्रमेय! आपसे  
मैं उन सब की क्षमा मांगता.  (११.४२)

पिता समस्त चराचर जग के,
पूज्यनीय, गुरुओं के गुरुवर.
नहीं समान तीनों लोकों में,
कैसे संभव अन्य श्रेष्ठतर?  (११.४३)

करके प्रणाम दंडवत स्वामी
मैं हूँ आपकी कृपा चाहता.
मेरे अपराध क्षमा कर दीजे
जैसे पिता मित्र प्रिय करता.  (११.४४)

कभी किसी ने न जो देखा 
रूप देखकर हर्षित मन मेरा.
मुझे वह पहला रूप दिखायें 
भय से विचलित है मन मेरा.  (११.४५)

मुकुट गदा चक्र से शोभित
रूप मुझे भगवन दिखलायें.
हे विश्वमूर्ते! हे सहस्त्रबाहो!
रूप चतुर्भुज मुझे दिखायें.  (११.४६)


                   ..........क्रमशः


पुस्तक को ऑनलाइन ऑर्डर करने के लिए इन लिंक्स का प्रयोग कर सकते हैं :
1) http://www.ebay.in/itm/Shrimadbhagavadgita-Bhav-Padyanuvaad-Kailash-Sharma-/390520652966
2) http://www.infibeam.com/Books/shrimadbhagavadgita-bhav-padyanuvaad-hindi-kailash-sharma/9789381394311.html 

कैलाश शर्मा 

23 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर पदानुभाव,आभार.

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  2. कभी किसी ने न जो देखा
    रूप देखकर हर्षित मन मेरा.
    मुझे वह पहला रूप दिखायें
    भय से विचलित है मन मेरा.
    ...
    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

    आभार आपका

    सादर

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  3. मुकुट गदा चक्र से शोभित
    रूप मुझे भगवन दिखलायें.
    हे विश्वमूर्ते! हे सहस्त्रबाहो!
    रूप चतुर्भुज मुझे दिखायें...

    आ हा .. क्या मधुर काव्य बह रहा है ...
    कृष्ण के पूर रूप को साक्षर करती बेहतरीन पंक्तियाँ ...

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  4. बढ़िया प्रस्तुति |
    आभार आदरणीय-

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  5. वाह...!
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आभार!

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  6. बेहतरीन आदरणीय, मुकुट गदा चक्र से शोभित
    रूप मुझे भगवन दिखलायें.
    हे विश्वमूर्ते! हे सहस्त्रबाहो!
    रूप चतुर्भुज मुझे दिखायें.

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  7. जय श्री कृष्ण...

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  8. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति!

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  9. आध्यात्म को समझना सहज नहीं है,आपकी लेखनी ने
    इसे सहज बना दिया है
    सुंदर सार्थक रचना
    बधाई

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  10. सचमुच आपके शब्दों ने बहुत सरल बना दिया है इन्हें... सुन्दर प्रस्तुति... आभार

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  11. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  12. मुकुट गदा चक्र से शोभित
    रूप मुझे भगवन दिखलायें.
    हे विश्वमूर्ते! हे सहस्त्रबाहो!
    रूप चतुर्भुज मुझे दिखायें...


    वाह,,बहुत सुंदर सहज ,समझ में आ जाने वाली (भाव पद्यानुवाद)की प्रस्तुति,,

    Recent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,

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  13. ईश्वर का विश्वरूप देखने के बाद का आनन्द..

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  14. संजय:
    राजन, केशव वचनों को सुनकर
    किया प्रणाम था कंपित कर से।
    नमस्कार पूर्वक था अर्जुन बोला
    भय और हर्ष से रुधित गले से.

    बहुत आकर्षक प्रस्तुति ( ,रुंधना ,रुंधित ?).शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .

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    1. रुधित का अर्थ है भरे गले से (choked voice)...जैसे निम्न प्रयोग में :
      तेषां तु पुरुषेन्द्राणां रुदतां रुधित सवनः
      परासादाभॊग संरुद्धॊ अन्वरौत्सीत स रॊदसी...

      आभार...

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  15. शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .

    सारगर्भित सारतत्व पिरोये गीता का अद्भुत प्रस्तुति .शुक्रिया .

    पूजना (पूजनीय ),पूज्य ,पुजापा ,पूज्यनीय प्रयोग में दो दो विशेषण क्यों ?

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    Replies
    1. पूजना (पूजनीय ),पूज्य ,पुजापा ,पूज्यनीय प्रयोग में दो दो विशेषण क्यों?

      ...आपका तात्पर्य मैं नहीं समझ पाया. मेरे विचार से इन शब्दों में एक ही विशेषण है जैसे पूजनीय = पूज+ अनीय प्रत्यय.

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  16. अद्वितीय... बहुत प्रभावशाली. बधाई स्वीकारें.

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  17. सर्व दिशा से नमन आपको,
    सामर्थ्य आपकी प्रभु अनंत है.
    व्याप्त किये हैं सर्व जगत को,
    आप अतः प्रभु सर्व रूप हैं.

    अनंत प्रभु को नमन...

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  18. बहुत बढिया जी

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