(चित्र गूगल से साभार)
शब्द थे
खो जाते
भाव के
बवंडर में
और रह
जाता खड़ा
बन के मौन
पुतला
तुम्हारे
सामने.
सोचा बाँध
कर रख दूं
एक पोटली
में
उन शब्दों को
जो कह
न पाया,
और सौंप
दूँ तुम्हें
तुम्हारे आने
पर.
तुम्हारी मंज़िल की राह
नहीं जाती अब इस गली से,
नहीं जाती अब इस गली से,
आज भी खड़ा
हूँ
प्रतीक्षा में दरवाज़े पर
लेकर
शब्दों की पोटली
जो
कुलबुला रहे हैं
बाहर आने
को.
कैलाश शर्मा
शब्द पोटली में आखिर कब तक रहेंगे ........ विषैले न हो जाएँ घुटकर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...शब्दों को कितना भी पोटली में बांधिए , हवामें खुशबु की तरह बिखर ही जायेंगे
ReplyDeleteअनुपम भाव ... लिये बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह्ह ....मनोभावों की सुंदर तस्वीर ......उम्दा
ReplyDeleteसादर नमस्कार भाईसाहब !
उन शब्दों को राह मिले।
ReplyDeleteशब्दों का प्रेमिल लक्ष्य पूर्ण हो, यही कामना है।
ReplyDeleteपोटली खुले, शब्द शब्द छलके, और वो इनके रंग में हों सराबोर
ReplyDeleteमनहर प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
simply superb.
ReplyDeleteशब्द निकल तो रहे हैं पोटली से इस कविता के माध्यम से !
ReplyDeleteसुन्दर !
बंद पोटली के भी कुछ न कुछ भाव नज़र आ ही जाते हैं सामने ....बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteपोटली से निकल अभिव्यक्ति पायें ये शब्द...... सुंदर कविता
ReplyDeleteshabdo ki potli say kuch shabdo ki khusboo yahan bhi pahunch gayi hai.....sundar prastuti
ReplyDeleteसोचा बाँध कर रख दूं
ReplyDeleteएक पोटली में
उन शब्दों को
जो कह न पाया,
और सौंप दूँ तुम्हें
तुम्हारे आने पर.
kya ye sambhav hai agar hai to avashy kijiye .sundar bhavabhivyakti badhai .
शब्द की कैसी विडम्बना है ये जिन्हें मुखर होना चाहिए वे पोटली में बंधे हैं ! मंजिल की राह भी बदल गयी है ! उन्हें उन्मुक्त कर दें वे खुद ब खुद मंजिल तलाश लेंगे ! बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteपोटली में बंधे शब्द, बहुत सुंदर
ReplyDeleteशब्दों को पोटली में.अब पोटली से निकल कागज़ पर
ReplyDeleteसोचा बाँध कर रख दूं
एक पोटली में
उन शब्दों को
जो कह न पाया,
और सौंप दूँ तुम्हें
तुम्हारे आने पर.
सुन्दर भाव लिए बेहतरीन प्रसतुति,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द.
ReplyDeleteशब्दों और व्यक्तित्व की व्यथा बढिया है।
ReplyDeleteस्वागत है शब्दों का भाई जी !
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों के साथ सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteumda prastuti
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeletesundar prastuti...
ReplyDeleteवाह .....खुबसूरत।
ReplyDeletenc sr
ReplyDeleteआज भी खड़ा हूँ
ReplyDeleteप्रतीक्षा में दरवाज़े पर
लेकर शब्दों की पोटली
जो कुलबुला रहे हैं
बाहर आने को------
वाह जीवन की सच्चाई,भावपूर्ण रचना
बधाई
उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeletelatest postऋण उतार!
शब्द थे खो जाते
ReplyDeleteभाव के बवंडर में
और रह जाता खड़ा
बन के मौन पुतला
तुम्हारे सामने.
भावप्रवण प्रस्तुति.
शब्द थे खो जाते
ReplyDeleteभाव के बवंडर में
और रह जाता खड़ा
बन के मौन पुतला
तुम्हारे सामने.
....शब्दों कि पोटली आखिर खुल ही गयी ....पर विस्तार रफ्ता रफ्ता ...भावमयी रचना
शब्द इस शब्दों की पोटली से बह न जाए ...
ReplyDeleteकाश वो जल्दी आ जाएं ...
मधुर भाव लिए ...
Beautiful!
ReplyDeleteजो शब्दों से कहा जाता है वह सीमित है..निशब्द में तो वह सब भी पहले ही कह दिया गया है..आभार!
ReplyDeleteपोटली बाँध ली तो क्या -अर्थ फिर भी छलक रहे हैं !
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव....
ReplyDeleteशब्दों की पोटली....खामोश रहकर भी बहुत कुछ कह गयी......
~सादर!!!
आपकी यह रचना दिनांक 07.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर रचना शनिवार 08.06.2013 को निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है! कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
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