अहसासों के सूने जंगल में
ढूंढ रहा वे अहसास
जो हो गये गुम जीवन में
जाने किस मोड़ पर.
हर क़दम पर चुभती हैं
किरचें टूटे अहसासों की,
सहेज कर जिनको उठा लेता,
शायद कभी मिल जायें
सभी टूटे टुकड़े
और जुड़ जाये फिर से
टूटे अहसासों का आईना.
बेशक़ होंगे निशान
हरेक जोड़ पर
और न होगी वह गर्मी
उन अहसासों में,
लेकिन कुछ तो भरेगा शून्य
अंतस के सूनेपन का.
काश जान पाता दर्द
टूटे अहसासों का,
नहीं लगाता आँगन में
पौधे कोमल अहसासों के.
...कैलाश शर्मा
उत्कृष्ट रचना |
ReplyDeleteजीवन के शून्य को भारती ... उसकी चाह में जीती ... सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और उम्दा प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteसच्चाई को समर्पित सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत विचारणीय बात कह दी आपने इस अहसास वाली कविता से। ये हम सब के साथ हो रहा है कि हम चाह कर भी घर, समाज और परिवेश के संवेदनशील प्राणियों को वह प्रेम नहीं दे पा रहे हैं, जो दिया जाना चाहिए। मात्र प्रेम देने का अहसास लेके घूम रहे हैं। तब पछतावे के अतिरिक्त कुछ नहीं होता हमारे पास जब हमें लगता है कि चाहे गए रास्ते पर नहीं चल कर हम कहीं और ही भटक रहे हैं।
ReplyDeleteकाश जान पाता दर्द
ReplyDeleteटूटे अहसासों का,
नहीं लगाता आँगन में
पौधे कोमल अहसासों के.……………हम ये सच जानते हुये भीलगा देते हैं कोमल पौधे अहसासों के और दर्द में डूबने के लिये
काश जान पाता दर्द
ReplyDeleteटूटे अहसासों का,
नहीं लगाता आँगन में
पौधे कोमल अहसासों के.
बिलकुल सच्ची बात
खुबसूरत अभिव्यक्ति
जीवन से जुड़ी रचना ....संवेदनशील भाव
ReplyDeleteलाजवाब भावभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteलेकिन कुछ तो भरेगा शून्य
ReplyDeleteअंतस के सूनेपन का.bahut khoob .....mere dil ki bhi bat kah dee .....dhanyavad ....
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteबढियां रचना! बधाइयाँ!
ReplyDeleteसंवेदनशील प्रस्तुति ,सुन्दर रचना!
ReplyDeleteकौन लगाता है ये कोमल एहसासों के पौधे...
ReplyDeleteये तो खुद-ब-खुद पनप आते हैं दिलों में..
सुन्दर!!!!
अनु
बेशक़ !
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना
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ReplyDeleteटूटे अहसासों की पूर्ति ,बहुत अच्छा प्रस्तुति !
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काश जान पाता दर्द
ReplyDeleteटूटे अहसासों का,
नहीं लगाता आँगन में
पौधे कोमल अहसासों के.
सच ... मन को छूती प्रस्तुति
सादर
wah ! umda rachna...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया अंकल
ReplyDeleteसादर
काश जान पाता दर्द
ReplyDeleteटूटे अहसासों का,
नहीं लगाता आँगन में
पौधे कोमल अहसासों के.....बहुत सुन्दर
बहुत खुबसूरत रचना.. सुंदर अभिव्यति!!
ReplyDeleteबहु८त ही मार्मिक रचना है !
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteजीवन में अहसास ही तो नहीं मिलते ...बाकि सब मिल जाता है
ReplyDeleteहर घटना एक स्मृति छोड़ जाती है..कुछ अच्छी, कुछ व्यथित करती।
ReplyDeletesundar abhivyakti..
ReplyDeletebehtareen
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ReplyDeleteकाश जान पाता दर्द
टूटे अहसासों का,
नहीं लगाता आँगन में
पौधे कोमल अहसासों के.------
संवेदना के पौधे भी वर्तमान में सूख जाते हैं
सुंदर अहसास की रचना
बधाई
आग्रह है पढ़े "अम्मा"
बेशक़ होंगे निशान
ReplyDeleteहरेक जोड़ पर
और न होगी वह गर्मी
उन अहसासों में,
लेकिन कुछ तो भरेगा शून्य
अंतस के सूनेपन का....
वाह ! बहुत बेहतरीन भावों से सँजोया है आपने।
बहुत सुन्दर और गहन..........
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