मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश:
तेरहवां अध्याय
(क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग-योग-१३.१२-१८)तेरहवां अध्याय
जो भी ज्ञेय तुम्हें बतलाता,
जिसे प्राप्त जन मोक्ष है पाता.
परम ब्रह्म अनादि है होता
सत् या असत् न वह कहलाता. (१३.१२)
हाथ पैर सब जगह हैं उसके
मुख सिर नेत्र सब जगह स्थित.
सभी दिशा में कान हैं उसके,
सबको व्याप्त जगत में स्थित. (१३.१३)
सब इन्द्रिय गुण आलोकित करता
लेकिन रहित इन्द्रियों से वह रहता.
जगपालक पर आसक्ति रहित है
निर्गुण है पर सब गुण का भोक्ता. (१३.१४)
अन्दर बाहर सब प्राणी के
सभी चराचर में वह स्थित.
सूक्ष्मरूप है कठिन जानना,
दूर भी है व पास भी स्थित. (१३.१५)
है यद्यपि अविभक्त ब्रह्म वह,
लगता सब जन में विभक्त वह.
वही है पालक और वही संहारक,
सर्व प्राणियों का जनक भी है वह. (१३.१६)
ज्योति ज्योतियों की है वह,
परे अंधकार से कहा है जाता.
ज्ञानगम्य, ज्ञानेय, ज्ञान वह,
ह्रदय प्राणियों में स्थित रहता. (१३.१७)
तुमको क्षेत्र ज्ञान ज्ञेय का
मैंने संक्षिप्त अर्थ बताया.
इसे जानता भक्त जो मेरा
उसने मेरा स्वरुप है पाया. (१३.१८)
उसने मेरा स्वरुप है पाया. (१३.१८)
.......क्रमशः
कैलाश शर्मा
goodh rahasy ki saral vyakhya ..
ReplyDeleteहै यद्यपि अविभक्त ब्रह्म वह,
ReplyDeleteलगता सब जन में विभक्त वह.
वही है पालक और वही संहारक,
सर्व प्राणियों का जनक भी है वह. (१३.१६)
thanks to such translation
सार्थक,सुंदर अनुवाद ,,,
ReplyDeleterecent post : मैनें अपने कल को देखा,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
सादर...!
शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है
ReplyDeleteआभार...
Deleteउनको तो बस महसूस ही किया जा सकता है. सरल व्याख्या.
ReplyDeleteहै यद्यपि अविभक्त ब्रह्म वह,
ReplyDeleteलगता सब जन में विभक्त वह.
वही है पालक और वही संहारक,
सर्व प्राणियों का जनक भी है वह. (१३.१६)bahut badhiya .......wayakhaya ...saral sugrahy ..
है यद्यपि अविभक्त ब्रह्म वह,
ReplyDeleteलगता सब जन में विभक्त वह.
वही है पालक और वही संहारक,
सर्व प्राणियों का जनक भी है वह. (१३.१६)..बहुत सुन्दर बोधगम्य सरल अनुवाद
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अन्दर बाहर सब प्राणी के
ReplyDeleteसभी चराचर में वह स्थित.
सूक्ष्मरूप है कठिन जानना,
दूर भी है व पास भी स्थित ...
तू ही तू है हर जगह ... घट घट में उसका वास है ...
आप अमृत रस पिला रहे हैं ... धन्यवाद ...
अन्दर बाहर सब प्राणी के
ReplyDeleteसभी चराचर में वह स्थित.
सूक्ष्मरूप है कठिन जानना,
दूर भी है व पास भी स्थित.
नमन उस परब्रह्म को...आभार!
बहुत खूब, खूबशूरत अहसाह ,बेहतरीन ,सटीक और सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteज्ञेय, ज्ञात, ज्ञाता,
ReplyDeleteहमरे तुमहि विधाता।
नमन ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुवाद .... आभार
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