इन हथेली की लकीरों से, कहाँ तक़दीर बनती है,
मुसाफ़िर ही सदा चलते, कभी मंज़िल न चलती है.
चलो अब घर चलें, सुनसान कोने राह तकते हैं,
सुबह ढूंढेंगे फ़िर सपने, अभी तो शाम ढलती है.
यकीं है आख़िरी पल तक, वो इक बार आयेंगे,
रुको कुछ देर तो यारो, अभी तो साँस चलती है.
उठे न उंगलियां तुम पर, यही कोशिश रही अपनी,
शिकायत क्या करें उससे, जो गुनहगार कहती है.
रवायत इश्क़ की तेरी, समझ पाया न ये दिल है,
नहीं अब वक़्त भी बाक़ी, घड़ी की सुई चलती है.
कि देने छांव रिश्तों को, बनाया आशियां हमने,
दीवारें हो गयीं ज़र्ज़र, कि छत भी अब टपकती है.
....कैलाश शर्मा
बहुत ही सुन्दर रचना।
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर भाव..आभार..
ReplyDeleteचलो अब घर चलें, सुनसान कोने राह तकते हैं,
ReplyDeleteसुबह ढूंढेंगे फ़िर सपने, अभी तो शाम ढलती है.
बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज़ है और उतनी ही खूबसूरती से उन्हें अभिव्यक्ति दी है ! बहुत सुंदर !
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteरवायत इश्क़ की तेरी, समझ पाया न ये दिल है,
नहीं अब वक़्त भी बाक़ी, घड़ी की सुई चलती है.
कि देने छांव रिश्तों को, बनाया आशियां हमने,
दीवारें हो गयीं ज़र्ज़र, कि छत भी अब टपकती है.
कि देने छांव रिश्तों को, बनाया आशियां हमने,
ReplyDeleteदीवारें हो गयीं ज़र्ज़र, कि छत भी अब टपकती है...gazab ...kya khoob likha ....
वाह कैलाश जी .. लाजवाब गज़ल कही है आपने .. हरेक अश'आर पे मुँह से दाद निकलती है .. आखिरी शेर तो गज़ब का बन पड़ा है
ReplyDeleteकि देने छांव रिश्तों को, बनाया आशियां हमने,
दीवारें हो गयीं ज़र्ज़र, कि छत भी अब टपकती है.
क्या बात है ..
ऐसी सुन्दर प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार!
खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई !
ReplyDeleteWaah! bahut khoob...
ReplyDeleteAntim panktiyan- jawab nahi...behtareen
बहुत ही बढियां रचना. ये पंक्तियाँ विशेष रूप से अच्छी लगी:
ReplyDelete"यकीं है आख़िरी पल तक, वो इक बार आयेंगे,
रुको कुछ देर तो यारो, अभी तो साँस चलती है."
-अभिजित (Reflections)
बहुत बढिया रचना!
ReplyDeleteबहुत ही बढियां रचना. उठे न उंगलियां तुम पर, यही कोशिश रही अपनी,
ReplyDeleteशिकायत क्या करें उससे, जो गुनहगार कहती है.
रवायत इश्क़ की तेरी, समझ पाया न ये दिल है,
नहीं अब वक़्त भी बाक़ी, घड़ी की सुई चलती है.
कि देने छांव रिश्तों को, बनाया आशियां हमने,
दीवारें हो गयीं ज़र्ज़र, कि छत भी अब टपकती है.
कि देने छांव रिश्तों को, बनाया आशियां हमने,
ReplyDeleteदीवारें हो गयीं ज़र्ज़र, कि छत भी अब टपकती है.
वाह!!!क्या बात है,इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई,,,
बहुत सुंदर गजल ,,,
recent post : ऐसी गजल गाता नही,
वाह! खुबसूरत और सार्थक सन्देश ......
ReplyDeleteसमेट के बैठ जाओ ,बचे हुए सपनों को
कि तोड़ने को आज की भीड़ लपकती है ...
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल बुधवार (05 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (05-06-2013) के "योगदान" चर्चा मंचःअंक-1266 पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी...
Delete
ReplyDeleteचलो अब घर चलें, सुनसान कोने राह तकते हैं,
सुबह ढूंढेंगे फ़िर सपने, अभी तो शाम ढलती है.-----
सहजता से जीवन का गहन अहसास कराती रचना
बहुत खूब
सादर
आग्रह है
गुलमोहर------
चलो अब घर चलें, सुनसान कोने राह तकते हैं,
ReplyDeleteसुबह ढूंढेंगे फ़िर सपने, अभी तो शाम ढलती है.
यकीं है आख़िरी पल तक, वो इक बार आयेंगे,
रुको कुछ देर तो यारो, अभी तो साँस चलती है.
बहुत खूबसूरत गज़ल
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति ..आभार . धरती माँ की चेतावनी पर्यावरण दिवस पर
ReplyDeleteसाथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
सराहनीय -.सुन्दर पोस्ट हेतु आभार . . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
ReplyDeleteBHARTIY NARI .
हर शेर बहुत मन भाया.
ReplyDeleteबहुत अच्छे डाक्टर साहेब , बेहतरीन भाव समेटे हैं सारे शब्द । शेर गज़ल की तो हमें पहचान नहीं , हां दिल को छूते हैं जब शब्द तो सुकून मिलता है । शुक्रिया
ReplyDeleteउठे न उंगलियां तुम पर, यही कोशिश रही अपनी,
ReplyDeleteशिकायत क्या करें उससे, जो गुनहगार कहती है.
यह ग़ज़ल तो संकलन योग्य है कैलाश भाई,
दिल को छू गयी !!
बधाई आपको !
चलो अब घर चलें, सुनसान कोने राह तकते हैं,
ReplyDeleteसुबह ढूंढेंगे फ़िर सपने, अभी तो शाम ढलती है.
- शेर-गज़ल हमें भी नहीं मालूम पर कहने का ढंग और उनमें निहित भाव गहन प्रभाव डालता है !
रवायत इश्क़ की तेरी, समझ पाया न ये दिल है,
ReplyDeleteनहीं अब वक़्त भी बाक़ी, घड़ी की सुई चलती है.
कि देने छांव रिश्तों को, बनाया आशियां हमने,
दीवारें हो गयीं ज़र्ज़र, कि छत भी अब टपकती है.
वाह बहुत खूबसूरत गज़ल
bahut sundar gazal
ReplyDeleteवाह ! सुंदर शब्द और दिल को छूने वाले भाव..
ReplyDeleteशिकायत क्या करें उससे, जो गुनहगार कहती है........बहुत खूब।
ReplyDeleteवाह.......खुबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteउठे न उंगलियां तुम पर, यही कोशिश रही अपनी,
ReplyDeleteशिकायत क्या करें उससे, जो गुनहगार कहती है.
अच्छी ग़ज़ल
वाह वाह ...लाजवाब रचना अंतिम पंक्तियाँ अत्यंत प्रभावशाली लगी।
ReplyDeletebahut sundar rachna....badhayi
ReplyDeleteरवायत इश्क़ की तेरी, समझ पाया न ये दिल है,
ReplyDeleteनहीं अब वक़्त भी बाक़ी, घड़ी की सुई चलती है......बहुत सुन्दर
रवायत इश्क़ की तेरी, समझ पाया न ये दिल है,
ReplyDeleteनहीं अब वक़्त भी बाक़ी, घड़ी की सुई चलती है.
sundar gajal sir..
very nice
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, भावरवायत इश्क़ की तेरी, समझ पाया न ये दिल है,
ReplyDeleteनहीं अब वक़्त भी बाक़ी, घड़ी की सुई चलती है.
सभी शेर एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteउठे न उंगलियां तुम पर, यही कोशिश रही अपनी,
ReplyDeleteशिकायत क्या करें उससे, जो गुनहगार कहती है.
बहुत सुंदर रचना. अदभुत भावाभिव्यक्ति.
यकीं है आख़िरी पल तक, वो इक बार आयेंगे,
ReplyDeleteरुको कुछ देर तो यारो, अभी तो साँस चलती है.
बहुत खूबसूरत... लाज़वाब रचना... आभार
चलो अब घर चलें, सुनसान कोने राह तकते हैं,
ReplyDeleteसुबह ढूंढेंगे फ़िर सपने, अभी तो शाम ढलती है.
अदभुत रचना ,सुन्दर ग़ज़ल
वाह! सुन्दर
ReplyDeleteयकीं है आख़िरी पल तक, वो इक बार आयेंगे,
ReplyDeleteरुको कुछ देर तो यारो, अभी तो साँस चलती है...
प्यार पे यकीन अंतिम समय ... बहुत ही लाजवाब है ...
पूरी गज़ल सुन्दर शेरों से सज्जित है ...
कि देने छांव रिश्तों को, बनाया आशियां हमने,
ReplyDeleteदीवारें हो गयीं ज़र्ज़र, कि छत भी अब टपकती है.
बेहतरीन सरजी.. !!
बेहतरीन गज़ल...
ReplyDeleteयकीं है आख़िरी पल तक, वो इक बार आयेंगे,
ReplyDeleteरुको कुछ देर तो यारो, अभी तो साँस चलती है.
वाह ! बहुत खूब :)
Good content. You write beautiful things.
ReplyDeletemrbahis
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