अंतराल
जीवन और मृत्यु का
क्यों होता
कभी सुख दायक
कभी पीड़ा से भरा,
क्यों मिलता है कभी दुःख
करने पर सत्कर्म भी
और जो लीन पाप कर्म में
क्यों पाते वे सुख समृद्धि.
मानता हूँ प्रभु,
कर्म पर ही है मेरा अधिकार
और मेरे ही कर्म
होकर लिप्त आत्मा में
करते प्रवेश नव शरीर में
पुनर्जन्म पर,
और पाता है मानव
सुख दुःख
पूर्वजन्म कर्मानुसार.
अनभिज्ञ पूर्वजन्म कर्मों से
जब पाते हैं कष्ट इस जन्म में
देते हैं दोष
भगवान, भाग्य या हालात को.
प्रभु! काश बदल देते ये नियम
मिल जाता उसी जन्म में
शुभ या अशुभ कर्मों का फल,
नहीं ढ़ोना होता बोझ कर्मों का
अगले जन्मों तक,
और प्रारंभ करते नवजीवन
कर्मों की स्वच्छ स्लेट से.
या कर देते संलिप्त आत्मा में
कर्मों के साथ उनकी स्मृति भी
नव जन्म लेने पर,
जिससे न होती शिकायत
तुम से, हालात से या भाग्य से,
भिज्ञ हो जाते कारणों से
सुख दुःख के जीवन में.
कितना कठिन होता है
भोगना कर्म फल
होकर अनभिज्ञ कारणों से.
.....कैलाश शर्मा
अनभिज्ञ पूर्वजन्म कर्मों से
ReplyDeleteजब पाते हैं कष्ट इस जन्म में
देते हैं दोष
bahut sunder bhav , shubhkamnaye
अपराधी कभी समृद्धि में नहीं जीते ....
ReplyDeleteवह बस आँखों का छलावा है .
ईश्वर की बेजान मूर्तियाँ उनके स्वर्ण मंदिर में होती हैं
जिनके साथ भी वे छल करते हैं !
उनके ही करीब गुनाह करते हैं और विकृत अस्तित्व लिए सबको डराते हैं ....
........
हम अवश शिथिल,भयभीत रहते हैं ज़रूर ...
आँखों से आंसू भी निकलते हैं
पर प्राण प्रतिष्ठित प्रभु हमारी ऊँगली थामे रहते हैं
........ कैसा प्रश्न ?
वह तो हर पल हमारी खुशियों के लिए
हमारे संग रोता है
परिस्थिति की मांग पर
अपनों को खोता है
पर अपराधी को माफ़ नहीं करता
इस अभिव्यक्ति के माध्यम से बहुत ही खूबसूरत आनदाज़ में अपने वो प्रश्न उठाएँ है जो सभी के मन में इस दिनों उठ रहें है या उठ रहे होंगे। किन्तु फिर भी "छोटा मुंह बड़ी बात" :)मैं ऐसा मानती हूँ सर कि यहाँ किए कर्मो का फल इंसान को यहीं मिल जाता है। हाँ यह बात अलग है कि जब हम दुखी होते हैं या पीड़ित होते है तो समझ नहीं पाते कि यह किन कर्मो कि सजा है।
ReplyDeleteआपकी यह रचना दिनांक 21.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/
ReplyDeleteपर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
आभार...
Deleteजीवन की एक बहुत बड़ी समस्या के निदान की मांग बहुत ही सटीक ढंग से इश्वर से की है आपने! बधाइयाँ सर!
ReplyDeleteकिन्तु इस सोच का भी कौन सा प्रामाणिक आधार है कि पूर्वजन्म के कर्मों का फल इंसान इस जन्म में भोगता है ! एक विश्वास तो यह भी है कि अनेकों योनियों में जन्म लेने के बाद बड़ी मुश्किल से मानव जन्म मिलता है तो ईश्वर मनुष्य को किस रूप के कर्मों का दण्ड या पुरस्कार देता है ! मेरा मार्गदर्शन करेंगे तो आभारी रहूँगी ! रचना बहुत ही सारगर्भित एवं गहन है ! साभार !
ReplyDeleteश्रीमद् भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि सभी लोकों में पुनर्जन्म अवश्य होता है और जब प्राणी परमात्मा को प्राप्त कर लेता है वह जन्म मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है. जब तक प्राणी परमात्मा को प्राप्त नहीं होता, वह निरंतर अपनी प्रकृति और कर्मों के अनुसार जन्म और मृत्यु के बंधन में बंधा रहता है और तदानुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है. गीता में कहा गया है कि प्राणी अपने प्रक्रतिजन्य गुणों को भोगने के लिए अपने आसक्ति गुणों के कारण अच्छी या बुरी योनि में जन्म लेता है.
Deleteभगवान न किसी को दंड देते हैं न पुरुष्कार, जो कुछ व्यक्ति भोगता है वह अपने कर्मों के अनुसार ही होता है. यह एक बहुत विशद विषय है जिसका पूर्ण उत्तर देना यहाँ कठिन है. गीता का अध्ययन आपके बहुत प्रश्नों का उत्तर दे देगा. मैं कोशिश करूँगा कि इस विषय पर अलग से एक विस्तृत आलेख पोस्ट करूँ..
आभार ..
सही कहा, कैलाश जी, कर्म का यह सिद्धांत यथार्थ है. इस आशय से मानव जन्म दुर्लभ है कि जीवात्मा के महान शुभ कर्मों के फलस्वरूप यह मनुष्य भव मिलता है. दूसरे न्युनाधिक कर्म शेष होते है अतः मनुष्य भव में भी उन्हे भोगना पडता है. कई कारणोँ से दुष्कर्मों की श्रेणियाँ बनती है मन के भावों का महत्वपूर्ण स्थान है. मजे ले कर किया गया दुष्कर्म, पाप की अज्ञानता में हुआ दुष्कर्म, ना चाहते हो गया दुष्कर्म तीव्र से मंद प्रतिफल देता है.
Deleteबहुत ही सहज परंतु उलझा हुआ प्रश्न खडा कर दिया है आपने इस सुंदर रचना द्वारा. जन्म/पुनर्जन्म की भी अलग अलग धर्मों में अलग अलग व्याख्या है. सुश्री साधना वेद जी की ही तरह हम भी जिज्ञासु हैं.
ReplyDeleteरामराम.
कितना कठिन होता है
ReplyDeleteभोगना कर्म फल
होकर अनभिज्ञ कारणों से.
बिल्कुल सटीक प्रश्न किया है आपने प्रभु से और उन्हे देना होगा जवाब ………कुछ वक्त पहले मैने भी ऐसा ही प्रश्न किया था ।
भोगे तो जाते है एक जन्म में भी, लेकिन कभी कभी कर्मो का पोटला भारी हो जाता है, एक जन्म में न्याय नहीं होता, और चलती रहती है श्रंखला आयुष्य अनुसार अन्म जन्मान्तर!!
ReplyDelete
ReplyDeleteकर्मो का है सब खेल !!
दिल न दुखे किसी का
हम से रब कराये ऐसे मेल !!
पोस्ट !
वो नौ दिन और अखियाँ चार
हुआ तेरह ओ सोहणे यार !!
uljha hua prashn iska javaab shayd sabke andar hai lekin use janana koi nahi chahta ..sundar rachna ..
ReplyDeleteअनुत्तरित प्रशन! क्या मालूम पुनर्जन्म और उस जन्म के कर्म का... अपनी पीड़ा से मुक्ति के लिए खुद को सांत्वना देना होता है, ऐसा सोच कर. अन्यथा जीवन जीना कठिन हो जाएगा. मन में विचारों को जन्म देती रचना, बधाई.
ReplyDeletesab poorvjanm ke karmon ka fal ..विचारणीय प्रस्तुति . बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार . ये है मर्द की हकीकत आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
ReplyDeleteबड़ा जटिल प्रश्न है ये.....
ReplyDeleteऔर मनुष्य अपनी सुविधानुसार इसके कारण-निवारण खोज लेता है...
बेहद गूढ़ रचना.
सादर
अनु
बहुत अच्छा लगा इस प्रश्न को पढ़ कर.बहुत सहज और सरल तरीके से आपने अपना प्रश्न रखा. हर धर्म की अलग अलग व्याख्या रही है. कर्म के अनुसार कहीं पुनर्जन्म की बात है. कोई कहता है पाप की गठरी लिए ही इंसान का जन्म होता है. और बिना उनकी शरण में गए बिना पाप से मुक्ति नहीं. विज्ञान के कई लोगों की अवधारणा अलग है इस बारे में. वो प्रयोगशाला में जीवन निर्माण कर रहे है. अंग बना रहे है, जीन काट चाल, प्रकृति और रूप बदल रहे हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी लोग उत्तर तलाश रहे हैं लेकिन प्रश्न यूँ का यूँ है. शायद अरबों बरस बाद हम भी इस धरती से लुप्त हो जायेंगे और प्रश्न यूँ का यूँ ही रह जाएगा.
ReplyDeleteप्रश्न यही गहरे होते हैं, मैं ही क्यों?
ReplyDeletein prashno kay uttar dhundhne say bhi nahi milte
ReplyDeleteप्रश्न करने का दौर तो सदैव चलता आया है और चलता रहेगा ... पर इनका हल क्या है वो सोचना ज़रूरी है |
ReplyDeleteबहुत गहन और सुन्दर रचना......कई बार जब दिल भर आता है तो 'क्यों' को जन्म देता है....
ReplyDeleteआपके चिंतन को सलाम ...वाकई आनंद आ गया ..पुनर्जनम से जुड़े पहलू और उससे जुड़े कर्मा की बात का शानदार बिश्लेषण ..सादर प्रणाम के साथ
ReplyDeleteकितना कठिन होता है
ReplyDeleteभोगना कर्म फल
होकर अनभिज्ञ कारणों से.
sahee prashn!
ReplyDeleteकर्मफल हर आदमी को भोगना पड़ता है और मेरा विश्वास है इसी जन्म मे ही भोगना पड़ता है लेकिन कभी कभी सगत दोष से दुसरे के कर्मो का फल भी भुगतना पड़ता है. केदारनाथ में प्रकृति का रूद्र रूप मनुष्य का प्रकृति से छेड़ छाड़ का नतीजा है.इसमें मरने वालो की कोई गलती नहीं थी
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अपने को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य आइस सोच लेता है की पिछले जन्मों के कर्मों का फल है ..... अनुत्तरित प्रश्न
ReplyDeleteकितना कठिन होता है
ReplyDeleteभोगना कर्म फल
होकर अनभिज्ञ कारणों से.
सच है पर शायद कर्म फल एक माध्यम है जो जीने में सहायता करता है
बहुत खूबसूरत रचना.बहुत कुछ सोचने पे विवश करती सार्थक रचना
ReplyDeleteकर्म का फल तो मिलना ही है कारण भले अनभिज्ञ हो .....
ReplyDeleteसुन्दर रचना !
सच कहा है .. बहुत ही मुश्किल है कारणों से अनभिग्य हो उनका फल भोगना ..
ReplyDeleteपर इसके अलावा और चारा भी क्या है ... नहीं तो मन को शान्ति भी तो नहीं अहि फिर ...
गहरी बात सहज कही है ...
कितना कठिन होता है
ReplyDeleteभोगना कर्म फल
होकर अनभिज्ञ कारणों से.
लेकिन भोगना भी पड़ता ही है.
सुंदर रचना.
सही जीवन-दर्शन
ReplyDeleteकोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .....
ReplyDeleteलाजवाब रचना .सोचने पे विवश करती सार्थक रचना
ReplyDeleteजीवन जीना है...और कम से कम अब तो अपनी तरफ से गलतियां नहीं करनी चाहिए....पिछले जन्म का तो पता नहीं...पर इस जन्म का तो है...
ReplyDeleteबढ़िया रचना...
बढ़िया सार्थक चिंतनशील प्रस्तुति ....
ReplyDeleteकितना कठिन होता है
ReplyDeleteभोगना कर्म फल
होकर अनभिज्ञ कारणों से..........
सुन्दर रचना.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
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