(क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग-योग-१३.२७-३४)
समत्व भाव से सब प्राणी में
परमात्मा को जो है देखता.
जो विनाश अविनाशी समझे
मुझे वस्तुतः वही देखता. (१३.२७)
सम भाव से स्थित ईश्वर को
सब में है जो समान समझता.
नष्ट स्वयं को न करे आत्म से
वही परम गति प्राप्त है करता. (१३.२८)
प्रकृति सभी कर्म करती है
आत्मा नहीं कर्म का कर्ता.
जो भी इसको जान है लेता
वही परम सत्य का ज्ञाता. (१३.२९)
समस्त चराचर प्राणि भेद को
एक प्रकृति में स्थित है देखता.
ब्रह्म प्राप्त करता वह साधक
प्रकृति में से ही विस्तार देखता. (१३.३०)
है निर्गुण अनादि अव्यय परमेश्वर
यद्यपि निवास शरीर में होता.
फिर भी न वह कुछ कर्म है करता
और न लिप्त कर्मफलों से होता. (१३.३१)
जैसे आकाश सूक्ष्म होने से
सर्वव्याप्त कर लिप्त न होता.
तदा शरीर में स्थित आत्मा
गुण दोषों से लिप्त न होता. (१३.३२)
जैसे एक सूर्य हे अर्जुन!
सम्पूर्ण लोक प्रकाशित करता.
वैसे ही स्वामी परमात्मा
समस्त शरीर प्रकाशित करता. (१३.३३)
अपने ज्ञान चक्षुओं द्वारा
जो क्षेत्र क्षेत्रज्ञ का भेद जानता.
करता प्राप्त परम पद है वो
प्रकृतिमुक्ति की युक्ति जानता. (१३.३४)
**तेरहवां अध्याय समाप्त**
......क्रमशः
.....कैलाश शर्मा
समत्व भाव से सब प्राणी में
परमात्मा को जो है देखता.
जो विनाश अविनाशी समझे
मुझे वस्तुतः वही देखता. (१३.२७)
सम भाव से स्थित ईश्वर को
सब में है जो समान समझता.
नष्ट स्वयं को न करे आत्म से
वही परम गति प्राप्त है करता. (१३.२८)
प्रकृति सभी कर्म करती है
आत्मा नहीं कर्म का कर्ता.
जो भी इसको जान है लेता
वही परम सत्य का ज्ञाता. (१३.२९)
समस्त चराचर प्राणि भेद को
एक प्रकृति में स्थित है देखता.
ब्रह्म प्राप्त करता वह साधक
प्रकृति में से ही विस्तार देखता. (१३.३०)
है निर्गुण अनादि अव्यय परमेश्वर
यद्यपि निवास शरीर में होता.
फिर भी न वह कुछ कर्म है करता
और न लिप्त कर्मफलों से होता. (१३.३१)
जैसे आकाश सूक्ष्म होने से
सर्वव्याप्त कर लिप्त न होता.
तदा शरीर में स्थित आत्मा
गुण दोषों से लिप्त न होता. (१३.३२)
जैसे एक सूर्य हे अर्जुन!
सम्पूर्ण लोक प्रकाशित करता.
वैसे ही स्वामी परमात्मा
समस्त शरीर प्रकाशित करता. (१३.३३)
अपने ज्ञान चक्षुओं द्वारा
जो क्षेत्र क्षेत्रज्ञ का भेद जानता.
करता प्राप्त परम पद है वो
प्रकृतिमुक्ति की युक्ति जानता. (१३.३४)
**तेरहवां अध्याय समाप्त**
......क्रमशः
.....कैलाश शर्मा
गूढ़ ज्ञानोक्ति.....
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
Deleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
आभार...
Deleteश्रीमदभगवदगीता का इतना सरल और सहज पद्य-अनुवाद आश्चर्य चकित करने वाला है, इन गूढ सुत्रों का सहज भाषा में पढना परम शांति दायक लगता है, बहुत बहुत आभार व शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बेहद सुन्दर कैलाश जी, श्रीमद्भगवद्गीता में ही जीवन का सार है आपका आभार।
ReplyDeleteबहुत उम्दा,सुंदर सहज पद्य अनुवाद,,,आभार
ReplyDeleteRECENT POST : अभी भी आशा है,
बहुत सुंदर, शुभकामनाये
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
दिल चाहता है
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_971.html
बहुत सुंदर ..... आत्मा का गहन ज्ञान समेटे हुये सुंदर अनुवाद
ReplyDeleteसुन्दर अनुवाद
ReplyDeleteआत्मसात करने वाले शब्द.
ReplyDeleteअनुनाद करता अनुवाद..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
ग्यान का गहरा सागर...आभार
ReplyDeleteगूढ़ ज्ञान को सरल भाषा में लिखने का भागीरथी प्रयास को नमन है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर, शुभकामनाये
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत सुन्दर ,
ReplyDeleteविश्व, ईश्वर और स्वयं की सापेक्षिक स्थिति..
ReplyDeletebehad sundar aatm gyan ki baaten
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजो समभाव से सब को देखता है
ReplyDeleteवही मुझे देख पाता है बहुत ही सरल भाव से गीता अनुवाद.. बहुत सुंदर...
ज्ञान चक्षुओं को खोलने से ही परम मुक्ति संभव है... सुन्दर भाव पद, बधाई.
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर
ReplyDeletebahut rochak
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