‘अहम् ब्रह्मास्मि’
नहीं है सन्निहित
कोई अहंकार इस सूत्र में,
केवल अक्षुण विश्वास
अपनी असीमित क्षमता पर.
‘मैं’ ही व्याप्त समस्त प्राणी में
‘मैं’ ही व्याप्त सूक्ष्मतम कण में
क्यों मैं त्यक्त करूँ इस ‘मैं’ को,
करें तादात्म जब अपने इस ‘मैं’ का
अन्य प्राणियों में स्थित ‘मैं' से
होती एक अद्भुत अनुभूति
अपने अहम् की,
नहीं होता अहंकार या ग्लानि
अपने ‘मैं’ पर.
असंभव है आगे बढ़ना
अपने ‘मैं’ का परित्याग कर के,
यही ‘मैं’ तो है एक आधार
चढ़ने का अगली सीढ़ी ‘हम’ की,
अगर नहीं होगा ‘मैं’
तो कैसे होगा अस्तित्व ‘हम’ का,
सब बिखरने लगेंगे
उद्देश्यहीन, आधारहीन दिवास्वप्न से.
‘मैं’ केवल जब ‘मैं’ न हो
समाहित हो जाये उसमें ‘हम’ भी
तब नहीं होता कोई कलुष या अहंकार,
दृष्टिगत होता रूप
केवल उस ‘मैं’ का
जो है सर्वव्यापी, संप्रभु,
और हो जाता उसका ‘मैं’
एकाकार मेरे ‘मैं’ से.
असंभव है यह सोचना भी
कि नहीं कोई अस्तित्व ‘मैं’ का,
यदि नहीं है ‘मैं’
तो नहीं कोई अस्तित्व मेरा भी,
‘मैं’ है नहीं मेरा अहंकार
‘मैं’ है मेरा विश्वास
मेरी संभावनाओं पर
मेरी क्षमता पर,
जो हैं सन्निहित सभी प्राणियों में
जब तक है उनको आभास
अपने ‘मैं’ का.
...कैलाश शर्मा
वाकई आज सब जगह मैं हावी है। इसे कुतरना जरुरी हो गया है। अन्यथा स्वाभाविक जीवन खो जाएगा। गहराई में जाकर लिखी गई कविता, सुन्दर।
ReplyDeleteअंतर्मन को झंकृत करती हुई बहुत ही खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteरामराम.
"मैं" के व्याप्त रूप पर लिखी शानदार पोस्ट।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति है श्रीमन -
ReplyDeleteशुभकामनायें-
असंभव है आगे बढ़ना
ReplyDeleteअपने ‘मैं’ का परित्याग कर के,
यही ‘मैं’ तो है एक आधार
चढ़ने का अगली सीढ़ी ‘हम’ की,
अगर नहीं होगा ‘मैं’
तो कैसे होगा अस्तित्व ‘हम’ का,
सब बिखरने लगेंगे
उद्देश्यहीन, आधारहीन दिवास्वप्न से.
very right expression .
बहुत सुन्दर कृति !
ReplyDeleteबहुत ही गहन विचारों को व्यक्त करती कविता .. कितना तथ्य पूर्ण है यह कहना कि
ReplyDeleteअगर नहीं होगा ‘मैं’
तो कैसे होगा अस्तित्व ‘हम’ का,
वाह .. बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए
आपकी यह रचना कल मंगलवार (09-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteशुक्रिया...
Deleteवाह .. बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए
ReplyDeleteअगर नहीं होगा ‘मैं’
ReplyDeleteतो कैसे होगा अस्तित्व ‘हम’ का,
वाह !!! बहुत उम्दा भावपूर्ण लाजबाब प्रस्तुति के लिए बधाई ,,,
RECENT POST: गुजारिश,
gambhir aur chkshu ko kholti prastuti
ReplyDeleteYahee jeevanka saty hai...begad sukoon mila in bhashntar padhke...
ReplyDeleteबहुत सटीक लेखन
ReplyDeleteकिसी भी हाल में अहंकार ना आए यह जरुरी है ना कि मैं या हम
चुनने में बिफल रही कि कौन सी पंक्तियाँ ज्यादा अच्छी लगी
ReplyDeleteदिल को छु गई रचना
सादर
बहुत गहन भाव ....
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुंदर,अभिमान नही, आत्मविश्वास होना चाहिए,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे ,
रिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
बहुत खूब | उम्दा अभिव्यक्ति लाजवाब | मैं मैं करते करते अधिकाँश लोगों की गाडी आज छूटती जा रही है |
ReplyDeleteइसी मैं के मय ने मन को हमेशा नचाया है और गिराया ही है. बहुत गहरी रचना.
ReplyDeletesunder abhivyakti .aapne to bhism sahani ki yaad dila di.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत कुछ सीखने को मिलता है आपके पोस्ट से ... 'मैं' अहंकार नहीं, 'मैं' विश्वास है!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया विश्लेषण
ReplyDeleteअसंभव है आगे बढ़ना
ReplyDeleteअपने ‘मैं’ का परित्याग कर के,
यही ‘मैं’ तो है एक आधार
चढ़ने का अगली सीढ़ी ‘हम’ की,
एक ध्रुव सत्य
मैं जब हम में समाहित हो जाए तो अहम् की गुंजाईश कहाँ !
ReplyDelete‘मैं’ केवल जब ‘मैं’ न हो
ReplyDeleteसमाहित हो जाये उसमें ‘हम’ भी
तब नहीं होता कोई कलुष या अहंकार......गहन भाव ....
इस सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई
बहुत खूब, खूबशूरत अहसाह ,बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाकई आज सब जगह मैं हावी है,बहुत सुन्दर रचना कैलाश जी।
ReplyDelete''मैं '' का हम में परिवर्तित होना सच में आसान नहीं है
ReplyDeleteसार्थक लेखनी
शुक्रिया....
ReplyDeleteमैं के अभिमान को न दर्शा कर मै का आभास कराती एक सुंदर रचना
ReplyDeleteShivoham Shivoham ...Shiv Swaroopam...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअहम् ब्रह्मास्मि.... मैं ही ब्रह्म हूँ... की अच्छी व्याख्या आभार !!
ReplyDeleteयही तो तथ्य है..व सत्य है...इस मैं को जो खोज-समझ पाया वही जीवन्मुक्त, मुक्त, कैवल्यप्राप्त व ईश्वर प्राप्ति है...यदि मैं को हम में समाहित करेंगे तो संसार-कुचक्र में फंस जायेंगे...मैं अर्थात आत्म को ब्रह्म-स्वरुप ब्रह्म में लय करें....वही सत्य मार्ग है...
ReplyDeleteदृष्टिगत होता रूप
ReplyDeleteकेवल उस ‘मैं’ का
जो है सर्वव्यापी, संप्रभु,
और हो जाता उसका ‘मैं’
एकाकार मेरे ‘मैं’ से.
- अपने अस्तित्व के व्यापक बोध अहसास यही है!
अहम् ब्रह्मास्मि.... मैं ही ब्रह्म हूँ..सार्थक अभिव्यक्ति.बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति , लाजवाब
ReplyDelete‘मैं’ है नहीं मेरा अहंकार
ReplyDelete‘मैं’ है मेरा विश्वास
मेरी संभावनाओं पर
मेरी क्षमता पर,..
बहुत खूब ... मैं को भी परिभाषित कर दिया आपने ...
लाजवाब अभिव्यक्ति है ...
यही वह तत्व है जो सकल जगत को जोड़े हुये है..उत्कृष्ट रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, आभार
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे ,
राज चौहान
क्योंकि सपना है अभी भी
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
वाह ! 'मैं' की इतनी सुंदर व्याख्या..मैं जब अहम से मुक्त हो जाता है, तब ब्रह्म ही हो जाता है..
ReplyDeleteमैं क्या हूँ और मैं का क्या महत्व है-----गहन अर्थों की
ReplyDeleteदार्शनिक रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
utkrisht-***
ReplyDeleteबहुत गहन दर्शन
ReplyDeleteगहरी सोच से भरी रचना
ReplyDeleteनई पोस्ट
तेरी ज़रूरत है !!